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Agriculture Tips : सितंबर में मूली की अगेती खेती किसानों के लिए जल्दी मुनाफा दिलाने का बड़ा मौका मानी जाती है. इस समय बोई गई मूली जल्दी तैयार होकर बाजार में ऊंचे दाम पर बिकती है, लेकिन मौसम की मार, बीमारियों और फसल खराब होने का खतरा भी उतना ही रहता है. ऐसे में सवाल उठता है कि यह खेती सचमुच मुनाफे का सौदा है या फिर मौसम के साथ जुआ?
जिला उद्यान अधिकारी डॉ. पुनीत कुमार पाठक ने बताया कि मूली की फसल 30 से 35 दिनों में भी तैयार हो जाती है, लेकिन कई ऐसी किस्में हैं जो 40 से 45 दिन तक का समय लेती हैं. मूली की बुवाई कर किसान कम दिनों में अच्छा मुनाफा ले सकते हैं. मूली की फसल लगाते समय उन्नत किस्म का चयन करना चाहिए, ऐसी किस्मों की बुवाई करें जो ज्यादा से ज्यादा उत्पादन दे और लागत कम आए. कई किस्म हैं जो एक हेक्टेयर में 250 से 300 क्विंटल तक उत्पादन देती है. हालांकि मूली की बुवाई ऐसी जमीन में करें, जहां जल निकासी की बेहतर व्यवस्था हो.
मूली की किस्म अर्का निशांत जो 40 से 45 दिनों में तैयार हो जाती है, यह 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है. हिसार मूली नंबर 1 और कल्याणपुर मूली नंबर 1 जो 50 से 55 दिनों में तैयार होने वाली किस्म है. यह 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती हैं. इसके अलावा काशी हंस जो 40 से 45 दिनों में तैयार हो जाती है और किसान इससे 250 से 260 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन ले सकते हैं. इसके अलावा काशी श्वेता जो की सबसे कम दिन यानी 30 से 35 दिन में तैयार हो जाती है और यह 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक किसानों को उत्पादन देती है.
इन चीजों से आ सकती है अड़चन
हालांकि सितंबर में मूली की अगेती खेती के कुछ नुकसान भी हैं. सितंबर की शुरुआत में बारिश और अधिक तापमान के कारण बीज का अंकुरण और जड़ की बढ़वार प्रभावित हो सकती है. कई बार मौसम सही न रहने पर मूली में जल्दी फूल आने लगते हैं या फिर जड़ें फट जाती हैं. इस समय फसल पर कीट और रोगों का प्रकोप भी ज्यादा देखने को मिलता है, जैसे पत्ता झुलसा, एफिड या फ्ली बीटल. अगेती मूली का भंडारण लंबे समय तक करना मुश्किल होता है और इसे तुरंत बाजार में बेचना पड़ता है. इसके अलावा, कभी-कभी गर्मी और नमी के कारण मूली की जड़ मोटी कम बनती है और स्वाद में तीखापन आ जाता है.
मुनाफे का सौदा है अगेती खेती?
कुल मिलाकर, सितंबर में मूली की अगेती खेती किसानों के लिए जल्दी मुनाफा कमाने का अच्छा विकल्प है, लेकिन इसके लिए सही किस्म का चुनाव, समय पर बुवाई और रोग-कीट नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना बहुत जरूरी है.

