डाला (गुड्डू तिवारी/राकेश अग्रहरि)
डाला। नगर क्षेत्र के ऊंची पहाड़ी पर विराजमान श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर के 57वें स्थापना दिवस पर आयोजित पांच दिवसीय मानस प्रवचन के चौथे दिन बुधवार की संध्या सत्र में आचार्य बृजेश दिक्षित ने अपने अमृतमय वाणी से सीता जी की विदाई व राम वनवास के प्रसंग का बड़ा ही मार्मिक प्रवचन दिया।अपनी सशक्त वाणी से उन्होंने श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया।मानस परिवार समिति द्वारा आयोजित मानस प्रवचन में कथावाचक ने राम-सीता विवाह व विदाई का वर्णन करते हुए बताया कि चारों भाइयों का विवाह संपन्न हुआ।भगवान राम सीता, लक्ष्मण उर्मिला, भरत मांडवी, शत्रुघ्न श्रुति कीर्ति की जोड़ी बड़ी मनोहर लग रही थी विवाह में देवलोक से आए सभी देवता भगवान राम के मुख को चकोरी की भांति देखते रह गए।विदाई के पूर्व रामजी ने विनयशील शब्द के साथ अपनी सास सुनयना से कहा कि हे माता बालक समझकर हम पर आप अपना स्नेह बनाए रखना।ससुर व मामा पूज्यनीय नहीं हैं लेकिन आदरणीय हैं गुरु पिता के समान होता है भगवान राम ने वंहा सभी का आदरपूर्वक सम्मान किया।अयोध्या में सीता जी को माता कौशल्या, कैकेई व सुमित्रा ने पलक की भांति रखा लेकिन कुछ समय व्यतीत होने के बाद कैकेई ने राजा दशरथ से राम वनवास का वरदान मांग लिया।यह सुनकर राजा दशरथ मुर्छित होकर गिर पड़े।भगवान राम माता सीता व लक्ष्मण वनवास के लिए चल पड़े इसी बीच रानी कैकेयी ने राम, लक्ष्मण और सीता को वल्कल वस्त्र दिए।सीता को तपस्विनी के वेश में देखना सबसे अधिक दुखदायी था। महर्षि वशिष्ठ अब तक शांत थे।अब उन्हें क्रोध् आ गया। उन्होंने कहा, “सीता वन जाएगी तो सब अयोध्यावासी उसके साथ जाएंगे।एक बार फिर राम ने सबसे अनुमति माँगी।आगे-आगे राम उनके पीछे सीता उनके पीछे लक्ष्मण और उसके पीछे-पीछे नगरवासी दौड़ रहे थे।राजा दशरथ और माता कौशल्या भी पीछे-पीछे गए।सब रो रहे थे। सबकी आंखों में आंसू थे।आचार्य श्री दिक्षित ने कहा कि जंहा राम हैं वहीं अवध है इन सारी बातों को इतने सरल व भावुक भाषा में श्रद्धालु के समक्ष प्रस्तुत किया तो भक्त भी भावभिवोर हुए बिना नहीं रह सके।इस दौरान मानस परिवार सेवा समिति के अध्यक्ष नीरज पाठक, राजवंश चौबे, मनोज तिवारी, प्रदीप श्रीवास्तव, मुकेश जैन, इंदु शर्मा, रानी चौबे, सरिता तिवारी पुष्पा तिवारी आदि मौजूद रहे।