नागा साधुओं का अखाड़ा महाकुंभ में चर्चा का विषय बना हुआ है। कई नागा सालों से हठ योग कर रहे हैं तो कुछ नागा अपने उपासक की भक्ति में लीन दिख रहे हैं। नागा साधुओं ने अपने-अपने शिविरों में धूनी रमा रखी है, जो अपने आप में रहस्य है। नागा अपनी धूनी को काफी पवित्र मानते हैं, उनका मानना है धूनी पंचतत्व का रूप है। नागा इसी धूनी के पास बैठकर तपस्या करते हैं। आइए जानते हैं इस धूनी का रहस्य…
धूनी को मानते हैं पवित्र
नागा साधु धूनी को भगवान भोले शंकर का प्रतीक मानते हैं, इस कारण वे किसी भी सूरत में इसे अपवित्र नहीं होने देते। नागा साधु अपने जीवन में धूनी को अलग स्थान देते हैं, इसी धूनी के सामने वह ध्यान लगाते हैं तो वही, इसी धूनी पर वे अपना भोजन भी पकाते हैं। जानकार हैरानी हो सकती है नागा अपना भोजन स्वंय पकाते हैं। इसी धूनी पर नागा की पूरी दिनचर्या आधारित रहती है। वह इसी धूनी की भस्म से अपना श्रृंगार करते हैं और तपस्या भी करते हैं।
कुंभ तक करते हैं धूनी के सामने तपस्या
नागा धूनी को प्रत्यक्ष देवता के रूप में मानते हैं। इनको जो भी भोग वह देते हैं। वही, वह स्वंय भी ग्रहण करते हैं। धूनी अग्नि देव का रूप भी मानी जाती है। कुंभ मेले तक वे इसी धूनी के सामने अपनी तपस्या भी करते हैं। कुंभ मेले के बाद नागा साधु वन, हिमालय आदि विरान जगहों पर चले जाते हैं। नागा इसी धूनी को भगवान शंकर का प्रतीक मानते हैं।
धूनी के जरिए जुड़े होते हैं नागा
नागा साधुओं का मानना है कि इसी धूनी के जरिए वह अपने आराध्य भगवान शंकर से जुड़े होते हैं। वे इसी धूनी के जरिए देवताओं को भोग भी लगाते हैं। साथ ही इसी के सामने बैठकर शिवजी का ध्यान भी करते हैं। इस कारण वे इस धूनी का भस्म भी अपने शरीर पर लगाते हैं, जिससे उन्हें अपने आराध्य की अनुभूति होती है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)