Medical Reports Increase Anxiety: सभी लोगों को बीमारियों से बचने के लिए साल में एक या दो बार अपना हेल्थ चेकअप जरूर करवाना चाहिए. कई बार लोगों की तबीयत बिगड़ जाती है और इस दौरान उन्हें कई तरह के मेडिकल टेस्ट से गुजरना पड़ता है. हालांकि ये रिपोर्ट्स कई बार लोगों की एंजाइटी यानी चिंता बढ़ा देती हैं. एक हालिया स्टडी में पता चला है कि मेडिकल रिपोर्ट्स को देखकर अक्सर मरीजों की चिंता बढ़ जाती है. इसका मुख्य कारण है कि ये रिपोर्ट्स स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स के लिए लिखी जाती हैं और लोगों के लिए इन्हें समझना आसान नहीं होता है.
मेडिकल रिपोर्ट्स में कई ऐसे शब्द होते हैं, जिन्हें सिर्फ डॉक्टर्स ही समझ पाते हैं. जब ये रिपोर्ट्स मरीजों को दी जाती हैं, तो वे उन्हें समझने में मुश्किल महसूस करते हैं, जिससे उनकी चिंता और बढ़ जाती है. मेडिकल रिपोर्ट्स में इस्तेमाल किए गए शब्द मरीजों के लिए बेहद जटिल और तकनीकी होते हैं, जिससे उन्हें अपने स्वास्थ्य के बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाती है. यही कारण है कि मरीजों में मानसिक तनाव और अनावश्यक चिंता पैदा हो जाती है.
मिशिगन यूनिवर्सिटी की डॉक्टर कैथरीन लैपेडिस और उनके साथियों ने इस समस्या पर एक अध्ययन किया. इसमें उन्होंने जानने की कोशिश की क्या मरीज आम मेडिकल रिपोर्ट्स को समझ सकते हैं और अगर रिपोर्ट्स को मरीजों के लिए सरल भाषा में तैयार किया जाए तो क्या उनकी समझ में सुधार हो सकता है. इस अध्ययन में यह देखा गया कि मरीजों के लिए तैयार की गई मरीज-केंद्रित रिपोर्ट्स में मेडिकल शब्दों को सरल और आसान भाषा में प्रस्तुत किया जाता है. इस तरह की रिपोर्ट्स मरीजों को उनके स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में स्पष्ट जानकारी देती हैं.
उदाहरण के लिए अगर सामान्य रिपोर्ट में “प्रोस्टेटिक एडेनोकार्सिनोमा” जैसा कठिन शब्द होता है, तो मरीज-केंद्रित रिपोर्ट इसे सीधेतौर पर “प्रोस्टेट कैंसर” कहकर बताती है, जिससे मरीज को सही जानकारी मिलती है. इस स्टडी में 55 से 84 साल के 2238 वयस्कों को शामिल किया गया था, जिनका प्रोस्टेट कैंसर का कोई इतिहास नहीं था. इन लोगों को एक काल्पनिक स्थिति दी गई, जिसमें उन्हें यूरिन से जुड़ी समस्याओं के लिए जांच करवानी थी और बायोप्सी के परिणाम उन्हें ऑनलाइन पोर्टल पर भेजे गए थे. इसके बाद इनसे पूछा गया कि रिपोर्ट पढ़ने के बाद उनकी चिंता का स्तर क्या है.
अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि ज्यादातर लोग सामान्य मेडिकल रिपोर्ट्स को समझने में असमर्थ थे. जिन लोगों ने सामान्य रिपोर्ट पढ़ी उनमें से केवल 39% ही यह समझ पाए कि उन्हें कैंसर है. वहीं जिन लोगों ने मरीज-केंद्रित रिपोर्ट पढ़ी, 93% लोग सही-सही यह समझ गए कि उन्हें कैंसर है. इस अध्ययन से यह भी पता चला कि मरीजों की चिंता का स्तर उनके वास्तविक खतरे के स्तर से मेल खा रहा था. अध्ययन के लेखक का सुझाव है कि अस्पतालों को मरीज-केंद्रित रिपोर्ट्स को अपनी प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए, ताकि मरीजों को अपनी स्थिति को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिले.
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FIRST PUBLISHED : January 7, 2025, 14:13 IST