Mahabharat Katha In Hindi: महाभारत के पात्रों में कर्ण जैसा दानवीर कोई नहीं था. कर्ण सूर्य देव का पुत्र था, जिसे कुंती ने दुर्वासा ऋषि के दिए मंत्र से विवाह पूर्व प्राप्त किया था. कर्ण को सूर्य देव से दिव्य कवच और कुंडल प्राप्त था, जिसके रहते, उसका कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता था. कर्ण जितना बड़ा पराक्रमी और धनुर्धर था, उससे बड़ा वह दानी व्यक्ति था. उसके बारे में कहा जाता है कि उसके दरवाजे से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता था, जिसने भी उससे कुछ मांगा, उसे वह मिला, चाहें परिस्थितियां कैसी भी क्यों न हों. महाभारत के युद्ध से पूर्व इंद्र देव को इस बात की चिंता थी कि कर्ण से उनके पुत्र अर्जुन का युद्ध हुआ तो कर्ण उस पर भारी पड़ सकता है.
इंद्र देव ने किया कर्ण से छल
एक दिन कर्ण स्नान करने के बाद सूर्य देव की पूजा कर रहा था, पूजा खत्म होते ही इंद्र देव ने ब्राह्मण रूप में आकर उससे कवच और कुंडल का दान मांग लिया. कर्ण ने बिना सोचे इंद्र देव को वह दिव्य कवच और कुंडल दान कर दिया. यदि इंद्र देव ने छल नहीं किया होता तो महाभारत के युद्ध में वह कवच और कुंडल कर्ण के पास होता तो उसे हरा पाना और भी कठिन होता.
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कहां रखा है कर्ण का कवच-कुंडल?
लोक मान्यताओं के अनुसार, इंद्र देव जब कर्ण का कवच और कुंडल दान के रूप में पा गए तो उसे वे स्वर्ग लेकर नहीं गए. यदि वे कर्ण का कवच और कुंडल साथ लेकर नहीं गए तो वह कहां पर है? इसे बारे में कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ के बीजापुर गांव में एक गुफा है, जिसके अंदर और बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं है. उस गुफा के अंदर से लगातार एक रोशनी निकलती रहती है.
अब उस गुफा के अंदर जब आने और जाने का रास्ता नहीं है तो सूरज की रोशनी भी उसके अंदर नहीं पहुंच पाती है. मगर उस खुफा के अंदर से रोशनी बाहर आती है. ऐसा माना जाता है कि इंद्र देव जब कर्ण का कवच और कुंडल लेकर जा रहे थे, तब सूर्य देव उनसे काफी नाराज हो गए और उनको श्राप दे दिया. श्राप के कारण इंद्र के रथ का पहिया इस जगह पर फंस गया था.
तब उस जगह पर ही एक गुफा तैयार की गई और वहीं पर कर्ण के कवचा और कुंडल को छिपा दिया गया था. वह कवच और कुंडली इतना शक्तिशाली था कि उसे इंद्र भी अपने साथ स्वर्ग नहीं ले जा पाए. ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ के बीजापुर के इस गुफा में ही कर्ण का कवच और कुंडल आज भी रखा हुआ है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि उस गुफा के पास इंद्र के रथ के पहिए के निशान भी मौजूद हैं.
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कोणार्क में छिपा रखा है कवच-कुंडल
एक अन्य मान्यता के अनुसार, पुरी के कोणार्क में कर्ण का कवच और कुंडल रखा गया है. कहा जाता है कि इंद्र देव ने इसे छल से हासिल किया था, इस वजह से उसे स्वर्ग नहीं ले जा सके. तब उन्होंने समुद्र तट पर इसे छिपा दिया. उनको ऐसा करते हुए चंद्र देव देख लिया था. चंद्र देव कर्ण के कवच और कुंडल को लेकर जाने लगे, तो समुद्र देव ने उनको रोक दिया. लोक मान्यताओं के अनुसार, तब से सूर्य देव और समुद्र देव कवच और कुंडल की रक्षा कर रहे हैं.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
Tags: Dharma Aastha, Mahabharat, Religion
FIRST PUBLISHED : December 28, 2024, 10:49 IST