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Chaitra Navratri 2025 : चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है, जिसमें ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी. दुर्गा पूजा, श्री दुर्गा सप्तशती और अर्गला स्तोत्र का पाठ करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
हाइलाइट्स
- चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है.
- दुर्गा सप्तशती और अर्गला स्तोत्र का पाठ करें.
- अर्गला स्तोत्र से मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
Chaitra Navratri 2025 : नवरात्रि पूरे वर्ष में चार बार आती है. दो बार प्रत्यक्ष रूप से और दो बार गुप्त रूप से. इन चारों नवरात्रि में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व होता है. पौराणिक मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि में ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी. नवरात्रि में दुर्गा पूजा का विशेष विधान होता है. माता के नौ स्वरूप की 9 दिन में पूजा, अर्चना करके उन्हें प्रसन्न किया जाता है.
नवरात्रि में करें माता के लिए प्रसन्न : नवरात्रि के दौरान श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का बहुत अधिक महत्व होता है. इस पाठ को करने से उत्तम रूप उचित स्वास्थ्य एवं धन संपदा की प्राप्ति होती है. व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
कवच एवं अर्गला का पाठ : श्री दुर्गा सप्तशती देवी महात्तम में कवच के बाद अर्गला स्तोत्र को पढ़ने का विधान है. इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को सभी वाधाओं से मुक्ति मिल जाती है. यह स्रोत किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए भी सहायक है. इस ब्रह्मांड में कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका समाधान माता रानी की कृपा से ना हो सके. बस इस पाठ को आप सच्चे मन और शुद्धता के साथ करें.
अर्गला का महत्व : अर्गला स्तोत्र के सभी मंत्र स्वयं सिद्ध हैं. इन मन्त्रों में मारण और वशीकरण मन्त्रों का समायोजन है. अर्गला स्तोत्र की प्रत्येक मंत्र में हम मां भगवती से कामना करते हैं कि है मां! हमें रूप दो, जय दो, यश दो, और शत्रुओं का नाश करो. जातक जी शिकारी की इच्छा लेकर अर्गला स्तोत्र का पाठ करता है उसकी वह इच्छा पूरी हो जाती है. यह बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत है. जिसे नवरात्रि में पढ़ने से अति शीघ्र फल की प्राप्ति होती है.
कैसे करें अर्गला स्त्रोत्र पाठ : नवरात्रि के प्रथम दिवस में मध्यरात्रि में माता की चौकी के समक्ष सरसों के तेल या तिल के तेल का एक दीप जलाएं.उसके बाद मां चामुंडा देवी का ध्यान कर उनसे संवाद करके उन्हें आवाहन करें. मां भगवती के समक्ष अर्गला स्तोत्र का संकल्प कर अपनी इच्छा माता के सम्मुख व्यक्त करें. अर्गला स्रोत्र में मंत्र शक्ति का प्रयोग करें और यथासंभव तीन,पांच अथवा सात बार पाठ करें.