Kumbh Mela 2025: महाकुंभ में अखाड़ों के नगर प्रवेश की परंपरा नागा संन्यासियों के अद्भुत शौर्य और पराक्रम का प्रतीक है। सदियों पुरानी इस परंपरा के पीछे 17वीं शताब्दी का एक ऐतिहासिक युद्ध है, जिसमें नागा संन्यासियों ने अफगानी आक्रांताओं से प्रयागराज की रक्षा की थी। इस विजय के उपलक्ष्य में अखाड़ों के नगर प्रवेश की शुरुआत हुई, जो आज भी महाकुंभ का एक महत्वपूर्ण आयोजन है।
मुगलों से बड़ी-बड़ी जंग लड़ी
दरअसल, नागा साधुओं ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से बड़ी-बड़ी जंग लड़ी और जीती हैं। इन साधुओं के हथियार मुगलों की प्रशिक्षित सेना जैसे नहीं होते थे। फिर उन्होंने मुगलों को धूल चटाई। नागा साधुओं के पास उस दौर में साधारण बरछी-भाले-तलवार चिमटा-फरसा ही थे, वे इसी से आक्रांताओं से लड़ते थे। आक्रांताओं को हराकर जब नागा साधु अपने अखाड़ों में पहुंचे तो उनका स्वागत विजयी सैनानियों की तरह किया गया। तभी से हर कुंभ मेले में नागा साधुओं की पेशवाई की परंपरा शुरू हो गई।
नागा संन्यासियों का संगठन और प्रयाग की रक्षा दशनामी नागा संन्यासियों की यह गौरवशाली गाथा श्रीमहंत लालपुरी द्वारा लिखित पुस्तक “दशनाम नागा संन्यासी” में विस्तार से दिया गया है। इस युद्ध नागा संन्यासियों का नेतृत्व राजेंद्र गिरि नामक वीर योद्धा ने किया था। उन्होंने झांसी से 32 मील दूर मोठ नामक स्थान पर नागाओं को संगठित किया और 114 गांवों पर अधिकार स्थापित करके एक दुर्ग का निर्माण कराया।
17वीं शताब्दी में अफगानी सेना को खदेड़ा था
अफगानी आक्रमण और अत्याचार 17वीं शताब्दी के दौरान अफगानी और बंगश रोहिलों के अत्याचारों से प्रयाग की जनता त्रस्त थी। दिनदहाड़े लूटपाट, महिलाओं के सम्मान पर आघात और निरंतर हमले आम बात बन गए थे। लोग अपने गांव और शहर छोड़ने को मजबूर हो गए थे। उस समय मुगल शासक अहमद शाह ने अवध के नवाब सफदरजंग को सत्ता दी, जिससे अफगान विद्रोही हो गए। अफगानों ने फर्रुखाबाद के निकट राम चौतनी नामक स्थान पर सफदरजंग को हराकर प्रयाग को घेर लिया। दुर्ग के रक्षक कम संख्या में थे और अफगानों के हमलों का मुकाबला करने में असमर्थ थे। यहां भी स्थानीय शासक की फौज के साथ नागा संन्यासियों ने मोर्चा संभाला अफगानियों को मार भगाया। नागा संन्यासियों की विजय की गाथा फतेहगढ़ फर्रूखाबाद में लिखी गई।
जब खबर फैली कि प्रयाग पर संकट आ गया है। अफगानी आक्रांता ने प्रयाग पर चढ़ाई कर दी है तो यह खबर सुनकर राजेंद्र गिरि ने नागा संन्यासियों की विशाल वाहिनी तैयार की और प्रयाग पर हुए अफगानी आक्रमण का सामना किया। उन्होंने अफगानों की घेराबंदी तोड़ी और जनता को उनके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। उनके शिष्य उमराव गिरि और अनूप गिरि ने भी इस युद्ध में अद्वितीय पराक्रम दिखाया।
समय-समय पर नागा संन्यासियों ने सनातन धर्म को बचाए रखा
ग़ज़नवी और बाबर के समय में भी नागा संन्यासियों ने अपना बलिदान देकर सनातन धर्म को बचाए रखा और आक्रांताओं को दिल में खौफ बना कर रखा।
- साल 1001 से 1027 महमूद गज़नवी ने भारत पर कई हमले किए थे और प्रमुख हिंदू मंदिरों को नष्ट किया। सबसे प्रसिद्ध उदाहरण सोमनाथ मंदिर का है, जिसे गज़नवी ने 1025 में तोड़ा था। इन मंदिरों की रक्षा के लिए भारतीय राजाओं की सेनाओं के हरावल दस्तों के रूप में सबसे आगे नागा संन्यासियों की टोली मोर्चा संभालती थी।
- गज़नवी ने हिंदू मंदिरों को लूटने और नष्ट करने के लिए कई हमले किए थे और इन हमलों का प्रतिकार नागा साधुओं द्वारा किया गया था। हालांकि, इस समय उनके संघर्षों के बारे में ज्यादा विस्तृत जानकारी नहीं मिलती। ऐसा समझा जाता है कि नागा संन्यासियों का बलिदान की गाथाएं महज इसलिए दब कर रह गईं क्योंकि वो सामान्य जन-जीवन का हिस्सा नहीं रहे।
- सन् 1526 से 1530 के मध्य बाबर के समय में भी हिंदू मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया था, खासकर अयोध्या में राम मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर। बाबर के सेना प्रमुख मीर बख़्तियार ने अयोध्या के राम मंदिर को तोड़ा था। बाबर और उसके बाद के शासकों के खिलाफ नागा साधुओं ने स्थानीय स्तर पर संघर्ष किए।
- सन 1667 से 1690 के बीच औरंगज़ेब के अत्याचारी शासनकाल में नागा साधुओं के संघर्ष महत्वपूर्ण थे। औरंगज़ेब ने हिंदू मंदिरों को नष्ट करने की नीति अपनाई थी, और इस दौरान नागा साधुओं ने कई जगहों पर मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया।
- उत्तर भारत के कई विशालकाय और अद्भुत स्थापत्य कला के नमूने मंदिरों को भ्रष्ट करने के बाद सन् 1669 में औरंगज़ेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को नष्ट किया और वहाँ मस्जिद बनाई। इस घटना के बाद नागा साधु इस मंदिर की पुनर्निर्माण के लिए संघर्ष में जुटे। इस संघर्ष में नागा साधुओं ने औरंगज़ेब के शासन के खिलाफ जमकर विरोध किया।
- मथुरा और वृंदावन में सन् 1670 मे औरंगज़ेब ने मथुरा के प्रसिद्ध कृष्ण जन्मभूमि मंदिर को तोड़ा और वहाँ मस्जिद बनाई। नागा साधुओं ने इस मंदिर की रक्षा के लिए भी सशस्त्र क्रांति की। हालांकि इस समय के संघर्ष की विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है।
- नागा साधुओं ने औरंगज़ेब के खिलाफ संग्रामगढ़ में 1670 से 1680 के बीच एक बड़ा युद्ध लड़ा। जिसे हिंदू धर्म की रक्षा के प्रयास के रूप में देखा जाता है। इसमें नागा साधुओं के साथ सिख और मराठों का भी सहयोग था।
नागा साधु न केवल धार्मिक तपस्वी होते थे, बल्कि वे युद्ध के माहिर भी होते थे। उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से सीधी लड़ाइयाँ लड़ी। इन युद्धों में उनकी सैन्य संगठन क्षमता और वीरता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(आचार्य इंदु प्रकाश देश के जाने-माने ज्योतिषी हैं, जिन्हें वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का लंबा अनुभव है। इंडिया टीवी पर आप इन्हें हर सुबह 7:30 बजे भविष्यवाणी में देखते हैं।)