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Success Story: सहारनपुर के मयंक सिंह ने 5 सरकारी नौकरियों को छोड़ मल्चिंग विधि से सब्जियों की खेती शुरू की. आज उनकी कम लागत में लाखों में कमाई हो रही है. हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है.
अंकुर सैनी/सहारनपुरः खेती किसान अगर सही तकनीक से की जाए, तो बेहद मुनाफा होता है. कई किसान नई तकनीक का सहारा लेकर खेती कर रहे हैं और बंपर मुनाफा कमा रहे हैं. सहारनपुर के किसान मयंक सिंह भी एक ऐसे ही प्रगतिशील किसान हैं, जो मल्च विधि से खेती कर लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं. किसान मयंक सिंह 5 सरकारी नौकरियों को छोड़कर खेती किसानी कर रहे हैं और लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं.
किसान मयंक सिंह ने मल्च विधि से पहली बार खेती शुरू की है. वह अपनी पांच सरकारी नौकरियों को छोड़कर परंपरागत खेती में आए हैं. परंपरागत खेती के साथ-साथ वह आधुनिक खेती करना पसंद कर रहे हैं. मल्च विधि से मयंक सिंह ने बंद गोभी, ब्रोकली, स्ट्रॉबेरी, पत्ता गोभी, प्याज, टमाटर, हरी मिर्च, सरसों लगाई है.
मल्चिंग खेती के फायदे
मल्चिंग खेती, खेतों में पौधों के चारों ओर मिट्टी को ढकने की तकनीक है. मल्चिंग से मिट्टी की नमी बनी रहती है, मिट्टी का कटाव कम होता है और खरपतवार की समस्या कम होती है. मल्चिंग में जैविक और अकार्बनिक दोनों तरह की सामग्री का इस्तेमाल किया जा सकता है. मल्चिंग से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. मल्चिंग से पानी की बचत होती है. पौधों की जड़ों का विकास और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है. वहीं मल्च को तैयार करने के लिए पत्तियां, घास के टुकड़े, भूसा, गन्ने की पत्तियां,फसल अवशेष, प्लास्टिक शीटिंग, लैंडस्केप फ़ैब्रिक का प्रयोग होता है.
सब्जियों, फलों की खेती कर रहे मयंक सिंह
किसान मयंक सिंह ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि उन्होंने अपनी पांच सरकारी नौकरी को छोड़कर परंपरागत खेती को करना पसंद किया है. उन्होंने अपने गांव में अपनी जमीन में मल्च विधि से खेती शुरू की. मल्च एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका उपयोग मिट्टी में नमी बनाए रखने, खरपतवारों को दबाने, मिट्टी को ठंडा रखने और सर्दियों में पाले की समस्या से पौधों को सुरक्षित रखने के लिए मल्चिंग किया जाता है. कार्बनिक मल्च धीरे-धीरे अपघटित होने के कारण मिट्टी की संरचना, जल निकासी और पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता में सुधार करने में भी मदद करती है. मयंक सिंह बताते हैं कि सब्जी की खेती करने वाले किसानों के लिए मल्च एक सबसे अच्छा ऑप्शन है. जिसमें न तो मजदूर की आवश्यकता पड़ती और नहीं खाद इत्यादि की. इस विधि से फसल करने से किसान का खर्च भी काम आता है और सब्जी की गुणवत्ता भी बढ़ती है. मयंक ने बंद गोभी, ब्रोकली, स्ट्रॉबेरी, पत्ता गोभी, प्याज, टमाटर, हरी मिर्च, सरसों लगाई है. मंच को करने से लागत भी काम आती है एक एकड़ में मात्र 7 से 8 हजार रुपए खर्च होते है. जबकि मुनाफा तगड़ा होता है.