अयोध्या में करीब रामलीला मंचन का इतिहास पांच सौ साल पुराना है। रायगंज मोहल्ले में स्थित तुलसी चौरा में गोस्वामी तुलसीदास के शिष्य मेधा भगत ने पहली बार मंचन शुरुआत की थी
अयोध्या धाम में रामलीला की शुरुआत गोस्वामी तुलसीदास के शिष्य मेधा भगत ने उन्हीं के निर्देशन में की थी। रायगंज स्थित तुलसी चौरा में रामलीला मंचन शुरू हुआ था। कालांतर में हिचकोले खाती हुई रामलीला की परम्परा आगे बढ़ती रही। आरम्भिक काल में मंचीय के बजाय मैदानी रामलीला की परम्परा थी। मैदानी रामलीला अयोध्या स्टेट के श्री प्रताप धर्म सेतु वक्फ के तत्वावधान में राजद्वार में 80 के दशक तक संचालित थी और भरत मिलाप का आयोजन राजसदन के प्रवेश द्वार पर होता रहा। उधर मेधा भगत की परम्परा को पत्थर मंदिर के संस्थापक माणिक राम दास ने संभाला। उनकी परम्परा को इस मंदिर के पूर्वाचार्यों ने बढ़ाया। यह परम्परा अवध आदर्श रामलीला मंडली के रूप में आज भी जीवंत है।
राजेन्द्र निवास पर साठ के दशक में श्रीराम वन गमन प्रसंग से शुरू होती थी लीला
इस मंडली के माध्यम से अयोध्या की पारम्परिक रामलीला को महंत जयराम दास ने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई। वर्तमान में इस मंडली की कमान पत्थर मंदिर के महंत मनीष दास संभाल रहे हैं। विभिन्न कालखंडों में अलग-अलग स्थानों पर आयोजित रामलीला को राजेन्द्र निवास की रामलीला से थोड़ा स्थायित्व मिला। यहां करीब 1960 में शुरू हुई रामलीला आठ दिवसीय होती थी और रामलीला का शुभारम्भ श्रीराम वन गमन प्रसंग से होता था। इस क्षेत्र के निवासी व जानकी महल ट्रस्ट के लेखाकार रामकुमार शर्मा बताते हैं कि करीब तीन साल तक वनवास प्रसंग से ही रामलीला चलती रही। पुनः चौथे साल नारद मोह व भगवान राम के जन्म प्रसंग से लीला का श्रीगणेश हुआ। वह बताते हैं कि रामलीला के वस्त्र व मुकुट इत्यादि लक्ष्मण किला धीश के सहयोग से आता था व स्थानीय लोगों ही रामलीला के पात्रों का अभिनय करते थे। उस दौर में महंत रामचरन दास, महंत छविराम दास, श्रीनिवास रंगाचार्य व महंत दीनदयाल शरण प्रमुख आयोजकों में थे।
दूसरी ओर भगवदाचार्य स्मारक सदन में समानांतर रामलीला का मंचन शुरु हुआ। यहां दशरथ राजमहल बड़ा स्थान के तत्कालीन पीठाधीश्वर बिंदु गद्याचार्य रघुवर प्रसादाचार्य व अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष महंत ज्ञानदास के नेतृत्व में 1964 में रामलीला मंचन की शुरुआत हुई। बीते 61 वर्षों में यहां भी अलग-अलग कारणों से दो बार रामलीला का मंचन बाधित हुआ। मध्य के वर्षों में मणिराम छावनी के पीठाधीश्वर महंत नृत्यगोपाल दास की अध्यक्षता में संत तुलसीदास रामलीला समिति का नेतृत्व लंबे समय तक नगरपालिका परिषद अयोध्या के तत्कालीन अध्यक्ष महंत अवधेश दास शास्त्री ने संभाला। उनके निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी महंत नरहरि दास सामाजिक सहयोग से संयोजन करते रहे। कोरोना काल में उनके मृत्यु के बाद तीन वर्षों से महंत ज्ञानदास के उत्तराधिकारी महंत संजय दास व बड़ा भक्तमाल के महंत अवधेश दास ने फिर से रामलीला को जीवंत रूप दिया है। यहां पारम्परिक रामलीला का मंचन अवध आदर्श रामलीला मंडली की ओर से ही शुरू हुआ है।