इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि विधवा बहू को अपने ससुर से भरण पोषण पाने के लिए उसका ससुराल में रहना जरूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि विधवा के अपने माता-पिता के साथ रहने का विकल्प चुनने से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि वह अपने ससुराल से अलग हो गई। यह निर्णय न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह एवं न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने राजपति बनाम भूरी देवी के के मामले में दिया है।
खंडपीठ ने कहा कि कानून की यह अनिवार्य शर्त नहीं है कि भरण-पोषण का दावा करने के लिए बहू को पहले अपने ससुराल में रहने के लिए सहमत होना चाहिए। जिस सामाजिक संदर्भ में कानून लागू होना चाहिए, उसमें विधवा महिलाओं का विभिन्न कारणों और परिस्थितियों के चलते अपने माता-पिता के साथ रहना असामान्य नहीं है। केवल इसलिए कि महिला ने अपने माता-पिता के साथ रहने का विकल्प चुना है, हम न तो इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि वह बिना किसी उचित कारण के अपने वैवाहिक घर से अलग हो गई थी और न ही यह कि उसके पास अपने दम पर जीने के लिए पर्याप्त साधन होंगे।
मामले के तथ्यों के अनुसार राजपति के बेटे की 1999 में हत्या कर दी गई थी। उसकी बहू ने आगरा फैमिली कोर्ट में भरण-पोषण के मुकदमे में दलील दी कि उसे अपने पति के नियोक्ता से केवल 80,000 रुपये टर्मिनल बकाया के रूप में मिले थे। उसने ससुर की उस संपत्ति पर भी अपना हक जताया, जिस पर उसके पति का अधिकार था।
दूसरी ओर ससुर ने दावा किया कि बहू लाभ का काम रही है। उसने उसके खाते में 20000 रुपये जमा किए। यह कहा कि उसे बहू को मिले टर्मिनल बकाया से कोई हिस्सा नहीं मिला। इस दावे पर विश्वास न करते हुए कि बहू ने दोबारा शादी की और लाभकारी रूप से कार्यरत थी। फैमिली कोर्ट ने बहू को 20,000 रुपये का मुआवजा दिया। साथ ही बहू को तीन हजार रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण के रूप में देने का आदेश दिया।
इस आदेश को ससुर ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। खंडपीठ ने पाया कि ससुर ने यह दिखाने के लिए कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया कि बहू ने टर्मिनल बकाया राशि का दुरुपयोग किया। केवल मौखिक कथन किए गए। बहू के पक्ष में ससुर द्वारा 20000 रुपये की सावधि जमा का साक्ष्य था। न्यायालय ने पाया कि टर्मिनल बकाया राशि के दुरुपयोग के संबंध में कोई सबूत नहीं था। इसके अलावा ससुर ने पुनर्विवाह और लाभकारी रोजगार के समर्थन में कोई सबूत पेश करके कभी साबित नहीं किया। इस पर हाईकोर्ट ने माना कि बहू अपने ससुर से भरण-पोषण पाने की हकदार है क्योंकि ससुराल वालों से अलग अपने माता-पिता के साथ रहने से वह भरण-पोषण का दावा करने से वंचित नहीं हो सकती।