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Eye Treatment: गठिया में असहनीय दर्द से राहत दिलाने वाले इंजेक्शन ने आंखों की रोशनी लौटा दी है। इन मरीजों को दिमाग की टीबी थी। इस वजह से ऑप्टिव नर्व में गांठें बन गई थीं। गांठों की वजह से आंखों की रोशनी चली गई थी। बीआरडी मेडिकल कालेज के न्यूरोलॉजी विभाग में ऑप्टिव नर्व में गांठों को गलाने के लिए तीन मरीजों को यह इंजेक्शन लगाए गए। इस विधा से इलाज देश में सिर्फ एम्स दिल्ली में होता है। टीबी मरीजों के इलाज में इसका प्रयोग पांच दशक से चलन से बाहर मान लिया गया है।
इस इंजेक्शन का इस्तेमाल करने वाले न्यूरोलॉजी विभाग के डॉ. सुमित कुमार बताते हैं कि दिमाग में टीबी के कारण छोटी गांठें बन जाती हैं। इन्हें ट्यूबरक्लोसिस ट्यूमर भी कहते हैं। ज्यादातर यह गांठें दिमाग के पिछले हिस्से में आंख से जुड़ी नसों में बनती है। इन नसों को ऑप्टिक नर्व कहा जाता है। इसका सामान्य तौर पर इलाज सर्जरी से होता है। ऑप्टिक नर्व की सर्जरी में सफलता की दर सीमित होती है। इसमें चुनौतियां अधिक होती हैं। इसमें दिमाग के आसपास के हिस्सों से सर्जरी कर टीबी की गांठों को निकाला जाता है।
गठिया के इंजेक्शन का हुआ असर डॉ. सुमित ने बताया कि हड्डी रोग के चिकित्सक गठिया या यूरिक एसिड के मरीजों को हाई न्यूरॉनिक एसिड का इंजेक्शन लगाते हैं। इस इंजेक्शन में दर्द से त्वरित राहत देने की क्षमता होती है। साथ ही छोटी गांठों को यह एसिड गलाने लगता है। इसी का प्रयोग दिमाग की नस में बने टीबी की गांठ को गलाने में किया गया।
एम्स दिल्ली में गठिया के इंजेक्शन का प्रयोग
बीआरडी के न्यूरोलॉजी विभाग के डॉ. सुमित ने बताया कि वर्ष 1980 से पहले गठिया के इंजेक्शन का खूब प्रयोग होता था। लेकिन उसके बाद इसके प्रयोग में तेजी से कमी आने लगी। टीवी मरीजों के इलाज में इस इंजेक्शन के प्रयोग प्रचलित पद्धति में शामिल नहीं है। हालांकि एम्स दिल्ली में इस इंजेक्शन का प्रयोग मरीजों पर होता है। वहां पर दिमाग में टीबी की गांठ के अलावा स्त्रत्त्ी एवं प्रसूति रोग विभाग के चिकित्सक भी बच्चेदानी की गांठ को गलाने में इसका प्रयोग करते हैं। यह इंजेक्शन एंजाइम से बना हुआ है, जो की तेजाब की तरह असर करता है। इसे लगाने से पहले खतरे और फायदे का आंकलन किया जाता है। इसके बाद निर्णय लिया जाता है।