रेणुकूट (अमिताभ मिश्रा)
रेणुकूट। हिण्डाल्को में चल रही श्री रामलीला मंचन के सप्तम दिवस का शुभारम्भ श्री गणेश पूजन व श्री राम आरती से हुआ।कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि डॉ.भास्कर दत्ता, डॉ. अजय गुगलानी, डॉ. मोनिका तथा डॉ. प्रेमलता यादव ने किया।हिण्डाल्को रामलीला परिषद् द्वारा आयोजित सातवें दिन सीता हरण, शबरी भक्ति, राम-सुग्रीव मित्रता, बाली वध, सीताजी की खोज और लंका दहन आदि लीलाओं का रामलीला के कलाकारों द्वारा बहुत सजीव मंचन किया गया।लीलाओं में लक्ष्मणजी द्वारा शूर्पनखा की नाक काट लेने पर शूर्पनखा अपने भाई रावण के दरबार पहुंच कर सीता जी की सुन्दर रूप का बखान करते हुए उनके हरण के लिए उकसाती हैं तब रावण अपने मामा मारीच के साथ वन में पहुंचते हैं और मारीच स्वर्ण मृग बन कर सीताजी को रिझाते हैं।सीताजी की जिद पर श्रीराम मृग पकड़ने उसके पीछे दौड़ते है। मारीच अपने मायाजाल से लक्ष्मण को श्रीराम की मदद को विवश कर देते और सीताजी के आग्रह पर लक्ष्मण रेखा खींच कर श्रीराम की मदद को चल देते हैं।मौका पाकर साधू वेश में रावण सीताजी का हरण कर लेते है और आकाश मार्ग से लंका की ओर ले चलते हैं।रास्ते में जटायू उन्हें भरसक रोकने का प्रयास करते हैं और रावण के प्रहार से मरनासन्न होकर धरती पर गिर जाते हैं।उधर कुटिया में लौटकर सीताजी को न पाकर दोनो भाई उन्हें ढूढ़ने निकलते हैं तब रास्ते में जटायू से उन्हें रावण द्वारा सीताजी के हरण की जानकारी मिलती है।आगे चलकर श्रीरामजी सुग्रीव से मिलते है और बाली-सुग्रीव युद्ध में बाली का वध करके सुग्रीव को राजगद्दी सौंप देते है।सुग्रीव व श्रीराम की मित्रता होती है और पूरी वानर सेना, सुसेन, हनुमानजी व सुग्रीव श्रीराम व लक्ष्मण के साथ सीताजी को लंका से लाने के लिए निकल पड़ते है।हनुमानजी सात समुंदर पार करके लंका पहुंच कर अशोक वाटिका में सीता माता से मिलकर उन्हें श्रीराम का संदेश देते है जिसे पाकर सीताजी भावुक हो उठती है।अंत में हनुमानजी विकराल रूप धारण करके पूरे लंका को तहस-नहस करते हुए आग लगा देते हैं और इसी के साथ सातवें दिन की लीलाओं का समापन होता है।इस अवसर पर रामलीला के अध्यक्ष पीके उपाध्याय व रामलीला के पदाधिकारी एवं कलाकार उपस्थित रहे।वहीं अष्टम दिवस का शुभारम्भ हिण्डाल्को सुरक्षा विभाग के कर्नल (से.नि.) संदीप खन्ना व उनकी धर्मपत्नी ने श्री गणेश पूजन व श्री राम आरती कर किया। लीला के मुख्य दृश्य- हनुमान जी सीता की खबर श्री रामजी को बताते हैं।सीता की सुधि पाकर राम भावुक हो जाते हैं और रावण के सर्वनाश का प्रण लेकर बानरी सेना को लंका की तरफ कूच करने का आदेश देते हैं।विश्वकर्मा नंदन नल व नील की सहायता से चार सौ योजन समुद्र पर पत्थरों के पुल का निर्माण करते हैं तथा लंका में प्रवेश करते हैं।श्री राम ने अंगद को दूत बनाकर रावण को अंतिम बार समझाने के लिए भेजा।वाक कला में निपुण अंगद ने रावण को हर भांति समझाया कि सीता को लौटा कर श्री राम की शरण में चले जाओ अन्यथा पूरे खानदान सहित समाप्त हो जाओगे पर हठी रावण ने अंगद की एक भी बात नहीं मानी।अंत में अंगद ने रावण को चुनौती देते हुए कहा कि “ये पैर तनिक भी विचलित यदि कर कोई असुर कुमार गया, श्री रामचन्द्र फिर लौटेंगे, मैं सीता जी हार गया।कोई भी असुर अंगद के पैर को हिला भी नहीं पाया। अंत में रावण को युद्ध की चुनौती देकर वापस रामदल में लौट आया।इसी के साथ अष्टम दिवस की रामलीला का समापन किया गया।