प्रतीकात्मक तस्वीर
महाराष्ट्र के पुणे शहर में दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल ने शनिवार को घोषणा की कि वह अब आपातकालीन विभाग में मरीजों से रुपये जमा नहीं कराएगा। यह कदम ऐसे समय आया है जब इलाज के लिए 10 लाख रुपये की अग्रिम राशि का भुगतान न करने पर एक गर्भवती महिला को कथित तौर पर लौटाने के लिए अस्पताल को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। भारतीय जनता पार्टी के विधान पार्षद अमित गोरखे के निजी सचिव की पत्नी को इस घटना के बाद दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित करना पड़ा, जहां जुड़वां बच्चों को जन्म देने के बाद उनकी मौत हो गयी थी।
अस्पताल के चिकित्सा निदेशक ने कही ये बात
यह घटना राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रही और पार्टी लाइन से हटकर नेताओं ने इसकी कड़ी आलोचना की और साथ ही नागरिक समूहों ने भी इसका विरोध किया। एक खुले पत्र में अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ.धनंजय केलकर ने कहा, ‘‘दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल के शुरुआती वर्षों में हमने कभी जमा राशि नहीं ली। लेकिन जैसे-जैसे गंभीर मामलों की संख्या बढ़ी और जटिल उपचार की लागत बढ़ी, अस्पताल ने कुछ उच्च लागत वाले मामलों में जमा राशि लेना शुरू कर दिया।’’ केलकर ने कहा, ‘‘हालांकि, कल की घटनाओं के मद्देनजर, हमने इस प्रथा का पुनर्मूल्यांकन किया है और एक प्रस्ताव पारित किया है कि अस्पताल अब आपातकालीन विभाग के माध्यम से प्रवेश करने वाले रोगियों से कोई जमा राशि नहीं लेगा। इसमें आपातकालीन प्रसव और बाल चिकित्सा संबंधी आपातकालीन मामले भी शामिल हैं। इसे तत्काल प्रभाव से लागू किया जाएगा।’’
अस्पताल ने बदली अपनी पॉलिसी
उन्होंने अस्पताल का बचाव करते हुए दोहराया कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से महिला के परिजनों से कहा था कि उनके पास जितना पैसा है वे उसका भुगतान करें, तथा हरसंभव मदद की पेशकश भी की थी, लेकिन वे किसी को बताए बिना मरीज को लेकर चले गए। उन्होंने कहा कि हालांकि इस घटना और दुर्भाग्यपूर्ण मौत के लिए अस्पताल को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराना तथ्यात्मक रूप से गलत और अनुचित है, फिर भी अस्पताल इस बात की जांच कर रहा है कि उसने मरीज के प्रति पर्याप्त संवेदनशीलता दिखाई थी या नहीं। शुक्रवार को विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अस्पताल में किए गए विरोध प्रदर्शन का जिक्र करते हुए डॉ. केलकर ने इसे ‘काला दिवस’ बताया।
(इनपुट-भाषा)