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World Glaucoma Week 2025: देश में काला मोतिया के मरीजों की संख्या बढ़कर 1.20 करोड़ पहुंच गई है. ऐसे में जरूरी है कि आंखों का ठीक से ख्याल रखते हुए प्रॉपर जांच कराएं. अब सवाल है कि आखिर काला मोतिया है क्या? क्या…और पढ़ें
काला मोतिया के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए आज चौथा दिन है. (Canva)
हाइलाइट्स
- काला मोतिया के मरीजों की संख्या 1.20 करोड़ पहुंची.
- 40+ उम्र वालों को हर 2-3 साल में आंखों की जांच करानी चाहिए.
- तनाव और उच्च रक्तचाप से काला मोतिया का खतरा बढ़ता है.
World Glaucoma Day 2025: आज विश्व ग्लूकोमा सप्ताह 2025 का चौथा दिन है. यह सप्ताह काला मोतिया के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए आयोजित एक वैश्विक पहल है. इसका आयोजन विश्व ग्लूकोमा एसोसिएशन द्वारा किया जाता है. इस सप्ताह के जरिए, ग्लूकोमा के बारे में जानकारी देकर और आंखों की जांच कराने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. एक्सपर्ट की माने तो, काला मोतिया का जल्द पता लगाने के लिए 40 से अधिक उम्र वालों को हर 3 साल के अंतराल में आंखों और ऑप्टिक तंत्रिका की जांच करवानी चाहिए.
आंखों की अनदेखी से देश में काला मोतिया के मरीजों की संख्या बढ़कर 1.20 करोड़ पहुंच गई है. ऐसे में जरूरी है कि आंखों का ठीक से ख्याल रखते हुए प्रॉपर जांच कराएं. अब सवाल है कि आखिर काला मोतिया है क्या? क्या ग्लूकोमा की रिकवरी संभव है? क्या हैं काला मोतिया के लक्षण? ग्लूकोमा का रिस्क कम कैसे करें? इस बारे में News18 को बता रहे हैं राजकीय मेडिकल कॉलेज कन्नौज के नेत्र रोग विशेषज्ञ आलोक रंजन-
ग्लूकोमा 2025 के लिए थीम
साल 2025 के लिए यह थीम ‘भविष्य को स्पष्ट रूप से देखें’ पर केन्द्रित है, जो दृष्टि हानि को रोकने के लिए प्रारम्भिक पहचान, नियमित नेत्र देखभाल और सामुदायिक शिक्षा के महत्व पर जोर देता है.
काला मोतिया की रिकवरी संभव नहीं
काला मोतिया या ग्लूकोमा से बचने के लिए आंखों की जांच जरूर करानी चाहिए. अगर परिवार का कोई सदस्य काला मोतिया से पीड़ित है तो ऐसे परिवार के सदस्यों में इसका खतरा 10 गुना तक बढ़ जाता है. बता दें कि, कैमरों की तरह काम करने वाली आंखों को मस्तिष्क से जोड़ने वाली नसों (ऑप्टिक नर्व) में ग्लूकोमा के कारण कमी आ गई तो इसकी रिकवरी करना संभव नहीं है. इस बीमारी के शरीर में कोई शुरुआती लक्षण दिखाई नहीं देते. इसलिए नियमित जांच न कराने से अक्सर एक आंख की रोशनी जा सकती है.
आंखों की रुटीन जांच जरूरी
एक्सपर्ट के मुताबिक, 40 साल के ऊपर वालों को 2 से 3 साल के अंतराल में और 60 साल से ऊपर वालों को प्रत्येक साल आंखों की जांच करानी चाहिए. इसके अलावा, बच्चों की आंखों की भी समय-समय पर जांच कराते रहना चाहिए, खासतौर उनकी जिन्हें कभी आंख में चोट लगी हो. ऐसा करने से अंधापन का शिकार होने से बचा जा सकते हैं. एक खास बात, आंखों में एलर्जी होने पर खुद से या अप्रशिक्षित से दवा न लें.
बीपी-शुगर एहतियात बरतें
यदि किसी को उच्च रक्तचाप, मधुमेह, थाइरॉयड की बीमारी है तो उन्हें आंखों का ज्यादा ध्यान देना चाहिए. क्योंकि, इस स्थिति में रिस्क बढ़ जाता है. इसके अलावा, जो लोग खांसी के लिए इन्हेलर, नाक में एलर्जी के कारण नेजल स्प्रे या त्वचा के संक्रमण के लिए कोई क्रीम या एंटी एजिंग के लिए दवा या इंजेक्शन लेते हैं, इनमें भी स्टेरॉयड होने की वजह से रिस्क बढ़ जाता है.
तनाव से बढ़ सकती बीमारी की गंभीरता
तनाव आंखों की बीमारी को अधिक बढ़ावा देती है. ऐसा होने से शरीर में कॉर्टिसोल हार्मोन बढ़ जाता है. इसकी वजह से आंख का प्रेशर बढ़ जाता है. इससे कालामोतिया होने की संभावना बढ़ जाती है. एक्सपर्ट के मुताबिक, आंख में सामान्य दबाव की मात्रा 10 से 21 मिमी एचजी होता है. तनाव की वजह से यह कार्टिसोल हार्मोन बढ़ने के साथ-साथ यह दबाव भी बढ़ जाता है, जो आंखों की रोशनी के लिए बेहद खतरनाक है.
योग से काला मोतिया रिस्क होगा कम
एक्सपर्ट के मुताबिक, अगर लोग भ्रामरी या अनुलोम-विलोम प्रतिदिन करते हैं तो इससे कॉर्टिसोल हार्मोन का संतुलन बनता है और काले मोतिया का रिस्क कम हो जाता है. उन्होंने बताया कि अगर काला मोतिया हो गया है तो ऐसे लोगों को शीर्षासन या ऐसे आसन नहीं करने चाहिए, जिनमें सिर को ह्रदय के स्तर से नीचे ले जाना पड़ता है.
ग्लूकोमा के लक्षण
- दृष्टि में धीरे-धीरे कमी आना
- आंखों में लालिमा
- अचानक दृष्टि का जाना
- तेज दर्द
- धुंधली दृष्टि
- तेज रोशनी के चारों तरफ इंद्रधनुष रंग के गोले नजर आना
- चश्मा के नंबर में लगातार बदलाव होना
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March 12, 2025, 10:05 IST