Last Updated:
Human story Bareilly : डेढ़ दशक से सुबह-शाम जरूरतमंदों की सेवा में तत्पर हैं. जिला अस्पताल में भी 38 साल से दे रहे सेवाएं.
गिजाल सिद्दीकी.
बरेली. इंसान लावारिस हो तो उसका कोई नहीं होता. लावारिस लाशों का कौन होगा. ये कहानी अंतिम संस्कार की है लेकिन अंतिम संस्कार कराने वाले के संस्कार ऐसे हैं कि उसकी तारीफ किए बिना आप भी नहीं रह पाएंगे. हम बात कर रहे हैं बरेली जिले के रहने वाले गिजाल सिद्दीकी की. गिजाल को लावारिस लाशों का मसीहा कहा जाता है.
सुबह-शाम सेवा
जिन लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने के लिए कोई नहीं होता, गिजाल उनको मिट्टी देते हैं. वे लाशों का अंतिम संस्कार मृतक के धर्म के अनुसार करते हैं. हिंदू की लाश को हिंदू रीति रिवाज से और मुस्लिम की मुस्लिम पद्धति से. गिजाल यहीं नहीं रुकते. वे करीब 14 साल से सुबह-शाम जरूरतमंद मरीजों की सेवा में जुटे हैं. मरीजों के इलाज से लेकर उनके खाने और फिर घर भेजने तक का इंतजाम करते हैं. वे बरेली जिला अस्पताल में पिछले 38 साल से अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
दो वक्त गरीबों की मदद
गिजाल सिद्दीकी बड़ा बाजार की दुकान पर काम करते हैं. परिवार चलाने भर की पगार मिल जाती है. इसके साथ वे अपना व्यापार भी करते हैं. इन्हीं पैसों और कुछ समाजसेवियों की आर्थिक सहायता से वे मरीजों के काम आते हैं. वे अक्सर बरेली के जिला अस्पताल में दोनों वक्त गरीबों की मदद करते दिखाई देते हैं.
गिजाल सिद्दीकी ने लोकल 18 को अपनी इस अनूठी यात्रा के बारे में विस्तार से बताया. वे कहते हैं कि 14 साल पहले इसी जिला अस्पताल के गेट पर एक बच्चा अपने बाप के इलाज के लिए पैसे मांग रहा था. उसके हाथ में पर्चा था, बच्चा रो रहा था. बुलाकर पर्चा देखा तो पता चला कि एक्सीडेंट में घायल उसका पिता इमरजेंसी में तड़प रहा था. उस दिन से शुरू हुआ लोगों की मदद करने का सिलसिला आज भी जारी है.
ऐसे कौंधा विचार
लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि बहुत पहले उन्होंने एक ऑटो वाले को नदी में लावारिस लाश फेंकते हुए देखा तभी से उनका बेचौन मन लावारिस लाशों में लगने लगा. लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार का विचार उनके मन में तभी कौंधा था. उस दिन शुरू हुआ ये काम आगे चलकर उनकी पहचान बन गया. आज वे लावारिस लाशों के मसीहा के रूप में जाने जाते हैं.
गिजाल हर दिन सुबह आठ बजे अस्पताल पहुंचते हैं. उनके साथ एक थैले में मरीजों के लिए ब्रेड, दूध और फल होते हैं. मरीजों की जरूरत के अनुसार पैसे भी देते हैं और फिर 10 बजे अपनी दुकान पर आ जाते हैं. ये क्रम कई दशक से नहीं टूटा.
Bareilly,Uttar Pradesh
January 16, 2025, 23:57 IST