लोकनायक जयप्रकाश नारायण को जेपी के नाम से जाना जाता है. गांधी की अगुवाई ने देश को आजादी दिला. लेकिन कांग्रेस को प्रतिपक्ष में बैठने को पहली बार किसी ने मजबूर किया तो वो जेपी ही थे. खास बात ये कि जेपी किसी भी तरह से गांधी विरोधी नहीं बल्कि उनके संजीदा फॉलोअर रहे. उन्होंने जबलपुर सीट पर एक प्रयोग किया था. विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के तौर पर युवा शरद यादव को जमे जमाए नेता सेठ गोविंद दास के विरुद्ध उतारा और सीट कांग्रेस के चंगुल से निकाल ली. फिर संपूर्ण क्रांति का नारा देकर किस तरह से इंदिरा शासन को खत्म किया वो तो इतिहास है. जेपी का जन्म 11 अक्टूबर 19902 को गंगा किनारे के गांव सिताब दियरा में हुआ था. ठीक चालीस साल बाद अमिताभ बच्चन का जन्म हुआ. गंगा किनारे बसे इलाहाबाद में. दोनों का जन्मदिन एक ही है. इसी जेपी के जन्मदिन पर समाजवादी नेता अखिलेश यादव जेपी कनवेंसन सेंटर जा कर उन्हें श्रद्धांजलि देने के नाम पर लखनऊ में आंदोलन छेड़ रखा है.
एक लोकनायक और एक फिल्मी महानायक
दोनों गांधी नेहरू परिवार के बहुत करीबी थे. जेपी जंगे आजादी के दौर से तो अमिताभ अपने पिता हरिवंश राय बच्चन के जरिए. बहराहल, लेखक, कवि रचनाकार पिता के घर पैदा हुए अमिताभ बच्चन ने भी कला का ही रास्ता अख्तियार किया. रेडियो पर किस्मत आजमाने के बाद 1969 में सिफारिशी चिट्ठी के जरिए सात हिंदुस्तान फिल्म से करियर की शुरुआत की. फिल्मी दुनिया में जिन लोगों का बोलबाल था उन्होंने अमिताभ को नकार दिया. बहरहाल तकरीबन चार साल बाद 1973 में फिल्म जंजीर ने पहचान तो दे दी, लेकिन फिर भी उस मुकाम तक नहीं पहुंच सके जो उन्हें फिल्मी इतिहास में दर्ज करा देता. ये मौका उन्हें मिला जंजीर के बाद शोले से. जंजीर के बाद ही 3 अक्टूबर 1973 से शोले की शूटिंग शुरु हुई.
गुजरात से आंदोलन की शुरुआत
कुछ ही दिने बीते थे. 12 दिसबंर 1973 को मोरबी इंजीनियरिंग कॉलेज के हॉस्टल मेस की फीस 20 फीसदी तक बढ़ा दी गई. छात्रों ने विरोध किया. हंगामा हुआ और 40 छात्रों को कॉलेज से सस्पेंड कर दिया गया. ये चिनगारी जल्द ही भड़क गई. दूसरे कॉलेजों और यहां तक कि गुजरात विश्वविद्यालय से भी छात्रों के विरोध की लपटें उठने लगीं. उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल थे. शुरु में साढ़े तीन सौ छात्रों की गिरफ्तारी हुई और मामला और बिगड़ गया. महंगाई की मार झेल रहे लोगों ने भी छात्रों का साथ दिया और आंदोलन राज्य भर में फैल गया. फरवरी की सर्दियां भी विरोध की गर्मी कम न कर सकी. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गुजरात के सीएम से इस्तीफा लेना पड़ा और राज्य विधान सभा भंग कर दी गई. इस आंदोलन में जेपी भी शामिल हुए थे.
संपूर्ण क्रांति का नारा देते जय प्रकाश नारायण.
बिहार में छात्र आंदोलन
ये आग तमाम राज्यों से होते होते बिहार तक जा पहुंची. वहां छात्रों ने अपने यहां की तमाम मांगों को लेकर आंदोलन तेज कर दिया. उस वक्त के छात्र नेताओं में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, सुशील मोदी और आज के दौर में सत्ता में बैठे या बैठ कर उतर चुके तमाम नेता शामिल थे. आंदोलन तेज होने पर कमान जेपी को सौंप दी गई. कभी कांग्रेस समर्थक रहे जेपी इंदिरा गांधी की नीतियों से पहले से ही काफी नाखुश थे. 11 फरवरी 1974 को गुजरात जा कर सत्ता को चुनौती देने वाले जेपी ने 5 जून 1974 को इंदिरा गांधी के विरोध में संपूर्ण क्रांति का नारा दे कर आंदोलन को देशव्यापी बना दिया. तीन साल चले इस आंदोलन में लोगों का इंदिरा गांधी सरकार ने पर्याप्त दमन किया. इमरजेंसी लगाई गई. साल भर के भीतर 25 जून 1975 को इमरजेंसी लगा दी गई. फिर भी लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ और 23 मार्च 1977 को जेपी आंदोलन से बनी जनता पार्टी की सरकार ने शपथ ले ली. मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने.
अमिताभ – जनमन के क्षोभ और गुस्से को प्रकट करता किरदार
इस दौरान आम आदमी का मन बागी हो चुका था. उसके इस गुस्से को सिनेमा के परदे पर अमिताभ बच्चन के चरित्र व्यक्त कर रहे थे. जंजीर, मजबूर, जमीर, दीवार, शोले, हेराफेरी, परिवरिश, खून पसीना, मुक्कदर का सिंकदर, गंगा की सौगंध, त्रिशूल, डान, काला पत्थर, जुर्माना, कालिया, लावारिस, शक्ति, और खुद्दार जैसी फिल्में आई. इसमें भूमिकाएं अलग अलग थी लेकिन हर किरदार विपरीत परिस्थितियों से निकल सिस्टम के विरोध में आवाज उठाता, उसे तोड़ता. ज्यादातर किरदारों का संघर्ष लोगों की दुखती रग पर हाथ रखने में सफल रहे. लिहाजा ये फिल्में खूब चली. एंग्रीयंगमैन फिल्म की सफलता की गारंटी हो गया. उसे वो मुकाम मिल गया जो आने वाले वक्त में शायद ही किसी और फिल्म एक्टर को मिल सके.
पोलिटकल एंग्री यंग मैन बनने की कोशिश
बहरहाल, अब सवाल इस मौके पर आंदोलन कर रहे यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का आता है. अखिलेश यादव ने अपने कार्यकाल में लखनऊ में लोकनायक जय प्रकाश इंटरनेशनल कंवेंसन सेंटर का निर्माण शुरू किया था. योगी सरकार ने इसे रोक दिया. जांच बिठा दी. योगी सरकार का मानना है कि इसके निर्माण में घपला हुआ है. वहां जेपी की मूर्ति भी है. योगी सरकार ने इस पूरे परिसर को लखनऊ विकास प्राधिकरण को सौंप दिया है. अखिलेश का आरोप है कि सरकार इसके जरिए जेपी के नाम पर बनाए जा रहे संस्थान को निजी हाथों में सौंपने की योजना बना रही है. काम बंद होने से वहां साफ सफाई की स्थिति की हवाला देकर सरकार ने अखिलेश को पिछले साल भी वहां नहीं जाने दिया था. अखिलेश बैरीकेटिंग की दीवार फांद कर वहां पहुंच गए थे. जेपी को माला पहनाने. इस बार भी उन्हें नहीं जाने दिया जा रहा है. दीवार फांद कर न जा सकें इसके लिए सरकार ने टिन शेड लगवा कर पूरे पुख्ता इंतजाम कर रखे हैं. युवा अखिलेश इस आंदोलन के जरिए राजनीति के एंग्रीयंग मैन जैसा कुछ कर पाएंगे या नहीं ये आने वाले वक्त के गर्भ में है.
Tags: Akhilesh yadav, Amitabh Bachachan, Emergency 1975
FIRST PUBLISHED : October 11, 2024, 12:58 IST