High Cholesterol: हार्ट की सेहत हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण बनती जा रही है क्योंकि पिछले कुछ साल से युवा भी इस चपेट में तेजी से आने लगे हैं. हालांकि कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (CVD) दुनियाभर में हो रही समय से पहले मौतों का प्रमुख कारण है, लेकिन भारत में अकेले 2020 में सीवीडी से 47.7 लाख लोगों की मौतें हुईं, जो चिंता का कारण है. वैसे तो दिल की बीमारी के कई कारण है लेकिन इन दिनों हाई कोलेस्ट्रॉल इसकी प्रमुख वजह है. गलत खान-पान और अनहेल्दी लाइफस्टाइल के कारण खून में एलडीएल यानी लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है जो धीरे-धीरे धमनियों में चिपकने लगता है और यह खून को पास होने से रोकने लगता है. इस कारण अचानक किसी दिन धमनियां फट जाती है और हार्ट अटैक या कार्डिएक अरेस्ट आ जाता है. सफदरजंग हॉस्पिटल, दिल्ली में प्रोफेसर डॉ. प्रीति गुप्ता कहती हैं कि यही कारण है कि युवाओं को भी हर साल इसकी जांच करानी चाहिए. अगर हाई कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ तो इसे व्यक्तिगत प्रबंधन से ठीक किया जा सकता है.
हर व्यक्ति की अलग-अलग जरूरत
डॉ. प्रीति गुप्ता ने बताया कि कोलेस्ट्रॉल को सही तरीके से नियंत्रित करने के लिए एक व्यवस्थित तरीका अपनाना जरूरी है. यानी अगर दो व्यक्तियों का कोलेस्ट्रॉल एक ही लेवल पर है तो दोनों व्यक्तियों की कंडीशन देखकर अलग-अलग तरह से इसका मैनेज करना होगा, तभी हम हाई कोलेस्ट्रॉल पर काबू पा सकते हैं. कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया ने भी हाल में कहा है कि हर व्यक्ति के जोखिम के आधार पर एलडीएल का लक्ष्य अलग-अलग होना चाहिए. उदाहरण के लिए यदि किसी को दिल की बीमारी के साथ-साथ डायबिटीज़, मोटापा या अन्य बीमारियां हैं या उनके परिवार में पहले से हाई कोलेस्ट्रॉल का मामला है उनका एलडीएल नॉर्मल से ज्यादा होने पर अलग तरह से इलाज किया जाएगा. इस तरह यदि हम मरीज के इलाज को उनकी व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार बनाए 47% मरीज जल्दी ठीक हो सकते हैं. यह तरीका इलाज को और ज्यादा असरदार बनाता है और हार्ट अटैक या दूसरी दिल की बीमारियों के खतरे को भी कम करता है.
पर्सनलाइज्ड इलाज का अर्थ
डॉ. प्रीति गुप्ता के मुताबिक पर्सनलाइज्ड इलाज का मतलब है कि हर व्यक्ति की खास जरूरतों के अनुसार उपचार किया जाए.अगर किसी का एलडीएल नॉर्मल से ज्यादा है और दिल की बीमारी की पारिवारिक हिस्ट्री है, तो उसे सामान्य कोलेस्ट्रॉल कम करने वाले इलाज से ज्यादा की जरूरत हो सकती है. पर्सनलाइज्ड इलाज में व्यक्ति की अनुवांशिकी,जीवनशैली और जोखिम के अन्य कारकों को ध्यान में रखकर सही एलडीएल लक्ष्य तय किए जाते हैं. इसमें कई बार दवाओं के कॉम्बिनेशन थेरेपी की जरूरत पड़ती है, जो एलडीएल को नियंत्रित करने में प्रभावी साबित होती है. इस इलाज को नियमित रूप से फॉलो करना बहुत जरूरी होता है.
ऐसे सुधार से घटेगा एलडीएल
एलडीएल का लेवल बढ़े नहीं, हमेशा नॉर्मल रहे या बढ़ गया तो उसे कैसे घटाएं, इसके लिए आपको अपने लाइफस्टाइल में कड़ाई से सुधार करना होगा. सबसे पहले हेल्दी खान-पान अपनाइए और रेगुलर एक्सरसाइज कीजिए. हर इंसान के लिए ये बदलाव अलग हो सकते हैं. एयरोबिक एक्सरसाइज यानी वॉकिंग, स्विमिंग, साइक्लिंग, रनिंग सबके लिए फायदेमंद है. समय-समय पर एलडीएल कोलेस्ट्रॉल की जांच कराना और डॉक्टर से मिलना जरूरी है ताकि इलाज सही दिशा में हो और ज़रूरत पड़ने पर बदलाव किए जा सकें. सही दवाइयों और उनकी मात्रा का चयन हर मरीज के लिए अलग होता है. इसके लिए अपने डॉक्टर से खुलकर बात करें. डाइट में हरी पत्तीदार सब्जियां, ताजे फल, सीड्स, ड्राई फ्रूट्स आदि का भरपूर सेवन करें. प्रोसेस्ड फूड, तली-भुनी चीजें, शराब-सिगरेट, जंक फूड आदि का सेवन न करें.
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FIRST PUBLISHED : October 1, 2024, 16:57 IST