इस वक्त उत्तर प्रदेश के संभल में जबरदस्त तनाव है। जामा मस्जिद के सर्वे के विरोध में रविवार को जो हिंसा हुई, उसमें 4 नौजवानों की मौत हो चुकी है। पुलिस ने 25 लोगों को गिरफ्तार किया है। एक हज़ार से ज्यादा अज्ञात लोगों के खिलाफ 7 मुकदमे दर्ज किए गए हैं। संभल के सांसद ज़िया उर रहमान बर्क और संभल के विधायक इक़बाल महमूद के बेटे सोहेल इक़बाल समेत कुल 15 लोगों के खिलाफ नामज़द FIR दर्ज हुई है। 24 पुलिसवाले घायल हुए हैं।
संभल में 4 लोगों की मौत दुखद है, दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा लगता है इस मामले में हर स्तर पर, हर मोड़ पर शरारत हुई। पहले तो सर्वे का ऑर्डर जल्दबाजी में आया। फिर सर्वे भी जल्दबाज़ी में शुरू हुआ। फिर सर्वे को लेकर अफवाह फैलाई गई। मस्जिद में जहां सिर्फ फोटोग्राफी हो रही थी, वहां खुदाई की बात फैलाई गई। अफवाह की वजह से पत्थर और हथियार लेकर भीड़ इकट्ठा हुई। इलाके के लोग कहते हैं कि ये नकाबपोश बाहर से आए थे। कुछ लोगों ने इस भीड़ को भड़काया। भीड़ ने पुलिस को घेरकर हमला किया और पुलिस का दावा है कि उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए एक्शन लिया।
अगर प्रशासन ने सावधानी बरती होती, तो इतनी भीड़ इकट्ठी नहीं होती और भीड़ को मज़हब के नाम पर भड़काया न गया होता, तो वो पुलिस पर हमला न करती। सर्वे का काम शांति से हो सकता था। उस पर जंग अदालत में लड़ी जा सकती थी, पर जो हुआ वो बिलकुल उसका उल्टा था। अब जांच हो जाएगी। दंगा करने वालों की पहचान हो जाएगी। भड़काने वालों को पकड़ा जा सकता है। उन पर केस भी चलाया जा सकता है लेकिन जिन 4 नौजवानों की मौत हुई, उन्हें वापस नहीं लाया जा सकता। ये इस मामले का सबसे शॉकिंग पहलू है।
अब दोनों तरफ के लोग एक दूसरे पर साजिश के इल्जाम लगा रहे हैं। इन्हें कितने भी सबूत दिखा दिए जाएं, कितने भी बयान सुनवा दिए जाएं, कोई नहीं मानेगा। दोनों पक्ष अपनी बात पर अड़े रहेंगे। दोनों एक दूसरे को दोषी ठहराएंगे। मेरा तो ये कहना है कि मंदिर, मस्जिद के नाम पर रोज़-रोज़ के ये झगड़े बंद होने चाहिए। टकराव से कभी किसी का भला नहीं हुआ। जब भी रास्ता निकला है तो आपसी बातचीत से निकला है।
बरसों पहले डॉ हरिवंशराय बच्चन ने लिखा था, “बैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद…।” धार्मिक स्थलों के विवाद से किसी का उपकार नहीं होता। RSS प्रमुख मोहन भागवत ने थोड़े दिन पहले कहा था ‘हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग ढूंढना उचित नहीं है।’ हमारा कानून भी यही कहता है कि जो धार्मिक स्थल बन चुके हैं, उनको लेकर नये सिरे से विवाद उठाने की जरूरत नहीं।
जब मज़हब के नाम पर लोग लड़ते हैं, एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं, तो नेताओं को अपनी लीडरी चमकाने का मौका मिलता है। संभल में जो कुछ हुआ, उसका नुकसान आम जनता को हुआ और राजनीतिक दलों ने उसका पूरा पूरा फायदा उठाया। (रजत शर्मा)
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