सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर होटल, ढाबा, फल और खान-पान की दुकानों पर मालिकों का स्पष्ट नाम लिखने के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान पूछा कि क्या कांवड़ियों की अपेक्षा ये है कि उन्हें खाना परोसने वाला, पकाने वाला और उसे उगाने वाला एक खास समुदाय का हो। सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ रूट पर खाने-पीने का सामान बेचने वाली दुकानों पर दुकानदार का नेम प्लेट लगाने के खिलाफ तीन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर दिया है। शुक्रवार 26 जुलाई को नोटिस के जवाब के साथ अगली सुनवाई होगी। सोमवार को सुनवाई के दौरान किसी राज्य के वकील सरकार का पक्ष रखने के लिए कोर्ट में मौजूद नहीं थे।
जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवी भट्टी की बेंच ने एपीसीआर यानी एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और सामाजिक कार्यकर्ता अपूर्वानंद व आकार पटेल की अलग-अलग याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई के बाद दुकानदार का नाम लिखने पर अंतरिम रोक लगाई है। लेकिन दुकानदारों को उनकी दुकान में परोसे जा रहे खानों का बोर्ड लगाना होगा। सुप्रीम कोर्ट में एपीसीआर की तरफ से सीयू सिंह, महुआ मोइत्रा के लिए अभिषेक मनु सिंघवी और अपूर्वानंद व आकार पटेल के लिए हुफेजा अहमदी ने जिरह की।
सुनवाई के दौरान जब सिंघवी ने कोर्ट से कहा कि इस आदेश के कारण सैकड़ों लोगों की नौकरी जा रही है। इसका मकसद सिर्फ एक अल्पसंख्यक समुदाय को नहीं बल्कि दलितों को भी अलग-थलग करना है। सिंघवी ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का बिना नाम लिए कहा कि मुख्यमंत्री के बयान को देखना चाहिए कि वो क्या कह रहे हैं। आदेश के कारण गैर अल्पसंख्यक दुकानदार भी अल्पसंख्यकों को काम पर नहीं रखेंगे। इस पर जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने पूछा कि कांवड़िया क्या चाहते हैं। क्या उनकी अपेक्षा यह है कि उन्हें खाना परोसने वाला, उस खाना को पकाने वाला और उस अनाज या सब्जी को उगाने वाला एक खास समुदाय का हो। इस पर सिंघवी ने कहा कि कोर्ट ने सही संवैधानिक सवाल पकड़ा है।
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