कुंदन कुमार/गया : सरकार द्वारा मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के बाद किसान अब कई तरह की फसलें उगा रहे हैं और बेहतर मुनाफा भी कमा रहे हैं. बिहार के गया जिले में किसान प्रोसो मिलेट चीना की खेती कर रहे हैं. चीना की खेती मात्र 60 दिनों की होती है और प्रति कट्ठा 30 से 40 किलो तक फसल का उत्पादन होता है. बाजार में इसकी कीमत 100 रुपये से लेकर 150 रुपये प्रति किलो तक होती है. जिले के गुरारु प्रखंड क्षेत्र के बाली गांव के रहने वाले किसान ललन कुमार लगभग चार एकड़ में चीना की खेती कर रहे हैं.
बिहार शरीफ से रिश्तेदार के पास से लाए थे बीज
ललन कुमार ने लोकल 18 को बताया कि पिछले वर्ष नवंबर महीने में कृषि विभाग की ओर से शहर के चंदौती बाजार समिति में कृषि मेला लगाया गया था और उस समय के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत किसानों को चीना की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे. वहीं से प्रेरणा लेकर इसकी खेती के लिए बिहार शरीफ से अपने संबंधी के पास से बीज लेकर आए और 20 मार्च को खेतों में लगा दिया. अभी लगभग 40 दिन हुए हैं और इसमें फल आ गए हैं और कुछ दिनों में इसकी हार्वेस्टिंग हो जाएगी.
60 से 70 दिनों में तैयार हो जाता है चीना
गौरतलब है कि चीना असिंचिंत, उंची जमीन, बलुई खेत या उसर टाईप खेत में भी उग जाती है. यह मात्र दो महीने की फसल हैं. पोषक तत्वों एवं फाईबर से भरपूर है. यह कम देखभाल और 60 से 70 दिनों
अच्छी पैदावार देकर जाता है. इसकी खेती अधिकतर खरीफ मौसम में वर्षा आधारित फसल के रूप में की जाती है. यदि सिंचाई की सुविधा हो तो इसे गर्मी के मौसम में भी उगाया जा सकता है. इसमें सूखा सहने की क्षमता होती है.
प्रति 100 ग्राम चीना में 13.11 ग्राम प्रोटीन एवं 11.18 ग्राम फाईबर के अतिरिक्त बड़ी मात्रा में लौह एवं कार्बोहाईड्रेट पाया जाता है. इसलिए इसे पोषक तत्व वाला फसल कहते है. चीना का सेवन बल्डप्रेशर एवं मधुमेह के मरीजों के लिये रामबाण होता है. चीना भिंगोकर, सुखाकर एवं भूनकर खा सकते है. इसे भात, खीर, रोटी आदि बनाकर खाया जाता है. कांस्टिपेशन की शिकायत को भी यह दूर करता है.
चीना की खेती में दो से ढाई हजार आता है खर्च
अनियमित मानसून के कारण गया जिले में गेंहू की हार्वेस्टिंग के बाद प्रायः खेत खाली रह जाता है. ऐसी स्थिति में खरीफ मौसम के पहले मात्र दो महीने में तैयार होने वाली चीना फसल किसानों को काफी लाभ पहुंचाएगा. इसकी खेती में लागत पूंजी बहुत ही कम है. प्रति एकड़ दो से ढाई हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं. मात्र दो से तीन सिंचाई में फसल तैयार हो जाती है. वो भी तब जब बारिश नहीं हो रही हो. बीज की बुआई प्रति कट्ठे 250 ग्राम से 400 ग्राम तक और उर्वरक की जरूरत भी कम पड़ती है. इसकी मांग बहुत बढ़ गई है. इस कारण यह तुलनात्मक रूप से सर्वाधिक लाभ अर्जित करने वाली फसल साबित हो रहा है. इसके उत्पादन से किसानों को 10 गुना से अधिक लाभ मिल रहा है.
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FIRST PUBLISHED : May 1, 2024, 23:50 IST