सोनिया मिश्रा/ चमोली. भारत में अनेक प्रकार के पेड़ पौधे और जड़ी बूटियां पाई जाती हैं, जिनका आयुर्वेद में तो महत्व है ही, धार्मिक आचार-विचार में भी इन्हें अहम माना जाता है. इन्हीं पौधों में से एक है तिमूर, जिसे ‘पहाड़ी नीम’ के नाम से भी जाना-पहचाना जाता है. यह खास तौर पर उत्तराखण्ड के पहाड़ी जिलों में पाया जाता है, जिसमें चमोली भी शामिल है. इस पौधे की न सिर्फ पत्ती बल्कि टहनी, बीज, फल सबकुछ फायदेमंद है. यही कारण है कि सदियों से ग्रामीण इसका इस्तेमाल करते आए हैं.
चमोली जिले के महाविद्यालय कर्णप्रयाग में वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर वीपी भट्ट बताते हैं कि तिमूर के पौधे का वानस्पतिक नाम जेनथोजायलम अर्मेटम है. कई औषधीय गुणों से युक्त होने के कारण इसका प्रयोग छोटी-बड़ी बीमारियों के इलाज में किया जाता है. प्रो. भट्ट ने लोकल18 को बताया कि इसका प्रयोग दांतों को मजबूत बनाने से लेकर ब्लड प्रेशर और शुगर की बीमारियों में भी औषधि के तौर पर किया जाता है.
धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण है तिमूर
रुद्रप्रयाग जिले के आयुर्वेदिक अस्पताल में तैनात फार्मासिस्ट और स्थानीय विषयों के जानकार एसएस राणा बताते हैं कि तिमूर औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ ही धार्मिक महत्व भी रखता है. इससे जुड़ी मान्यताएं हैं कि इसे घर की दहलीज पर रखने से नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ता है. घर को बुरी नजर नहीं लगती है. यज्ञोपवीत संस्कार (जनेऊ) के समय बटुक के हाथ में इस तिमूर के डंडे को दिया जाता है. साथ ही इसकी लकड़ी बेहद पवित्र मानी जाती है, इसलिए साधु-संतों के पास भी तिमूर की लकड़ी देखी जाती है.
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FIRST PUBLISHED : April 11, 2024, 19:26 IST
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