Tihar Jail: तिहाड़ जेल का नाम आते ही खूंखार कैदियों की शक्ल सामने आने लगती है. आपने सुना होगा कि जेलों में कुछ कैदियों का जबर्दस्त रुतबा होता है. ये अपने धाकड़ रवैये और व्यवहार से अन्य कैदियों के लीडर बन जाते हैं और फिर जेल के माहौल में ढलकर आराम से रहते हैं. लेकिन कुछ कैदी ऐसे भी होते हैं जिनकी जेल में सांसें अटकने लगती हैं. वे इतने गहरे मानसिक तनाव या एंग्जाइटी से घिर जाते हैं कि कई बार अपने जीवन को नुकसान भी पहुंचाने की कोशिश तक कर डालते हैं.
तिहाड़ सहित दिल्ली की कुल 16 जेलों में कैदियों की मानसिक हेल्थ के लिए बने साइकेट्री डिपार्टमेंट के हेड डॉ. विवेक रुस्तगी बताते हैं कि तिहाड़ से लेकर मंडोली और रोहिणी की जेलों में रोजाना करीब 150 नए कैदी आते हैं. इनमें कुछ सजायाफ्ता कैदी होते हैं, कुछ अंडर ट्रायल या रिमांड पर पहली बार आए नए कैदी होते हैं. कुछ ऐसे होते हैं जो कई बार जेल जा चुके होते हैं और आदतन अपराध के चलते फिर आ रहे होते हैं.
जेल में आते ही इन सभी कैदियों की मानसिक हेल्थ की भी जांच की जाती है, इसके अलावा जेलों में रह रहे कैदियों के लिए भी करीब 30 से ज्यादा साइकेट्रिस्ट या साइकोलॉजिस्ट रोजाना काम करते हैं. इस दौरान देखा गया है कि तिहाड़ में सजायाफ्ता कैदी जो लंबे समय से बंद हैं और सजा काट रहे हैं, मानसिक रूप से ठीक रहते हैं. इन्हें चिंता या तनाव जैसी चीजें बहुत कम होती हैं.
जबकि जेलों में सबसे ज्यादा मेंटली परेशान पहली बार आने वाले अंडर ट्रायल या रिमांड पर आए कैदी रहते हैं. जो भी कैदी इस स्थिति में जेल में आता है, देखा जाता है कि उनमें मानसिक इश्यूज अचानक बढ़ जाते हैं. कई बार कुछ कैदी मानसिक परेशानियों के चलते खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी करते हैं.
कैदियों को होती हैं ये परेशानियां
. तनाव
. एंग्जाइटी
. सोने में परेशानियां
. बैरकों में अन्य कैदियों के साथ एडजस्ट करने में दिक्कत
. ड्रग या तंबाकू उत्पादों की लत को छोड़ने में परेशानी
. भीड़भाड़
. सामाजिक सपोर्ट न मिल पाना
. कानूनी पेचीदगियां
. प्राइवेसी खत्म होना
कैदियों के लिए जेल प्रशासन करता है ये काम
तिहाड़ जेल में साइकेट्री डिपार्टमेंट के हेड डॉ. विवेक रुस्तगी कहते हैं कि जेल में कैदियों की हेल्थ को लेकर नियम हैं. जब भी कोई कैदी पहले दिन जेल में आता है, चाहे वह रिमांड पर है, सजायाफ्ता है या अंडरट्रायल कैदी है, उसका सबसे पहले हेल्थ एक्सपर्ट द्वारा चेकअप किया जाता है. इसके बाद साइकेट्री डिपार्टमेंट से साइकेट्रिस्ट उसका मेंटल हेल्थ असेसमेंट करते हैं. काउंसलिंग की जरूरत होती है, तो वो दी जाती है. कैदियों के लिए ओपीडी भी लगती है. अगर कोई एडिक्शन है तो डीएडिक्शन सेवाएं दी जाती हैं. सभी कैदियों के लिए काउंसलर्स ओरिएंटेशन प्रोग्राम करते हैं.
कैदी ही करते हैं कैदी की मदद
डॉ. रुस्तगी बताते हैं कि सिर्फ तिहाड़ ही नहीं बल्कि दिल्ली की कुल 16 जेलों में भी मेंटल हेल्थ के लिए एक व्यवस्था की गई है. इन जेलों में कुछ पुराने और एक्टिव कैदियों को चुना जाता है और उन्हें मुंशी बनाया जाता है. ये मुंशी जेल की बैरकों में रहते हुए नए आने वाले कैदियों यानि मुलाहिजों की हर एक्टिविटी को नोटिस करते हैं और उसे मेंटल हेल्थ के नजरिए से तोलते हैं. अगर उन्हें जरा भी शक होता है तो इसकी जानकारी मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट को देते हैं.
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FIRST PUBLISHED : April 11, 2024, 19:29 IST