सियासी शतरंज में शह- मात के खेल में कब कौन किसे पटखनी दे दे कुछ नहीं कहा जा सकता। सपा में भी यही सब चल रहा है। मुरादाबाद में 24 घंटे के हाईवोल्टेज ड्रामे के बाद आखिरकार वही हुआ जो आजम चाहते थे लेकिन, रामपुर में अखिलेश ने आजम के सियासी चक्रव्यूह को चकनाचूर कर दिया। उन्होंने आजम की मर्जी के खिलाफ कदम आगे बढ़ाते हुए मौलाना मोहिब्बुल्ला नदवी को सपा प्रत्याशी घोषित किया है। दरअसल, रामपुर ही नहीं आसपास के जनपदों की तमाम सीटों पर आजम खां ही प्रत्याशी का फैसला लेते रहे हैं। रामपुर में कौन प्रत्याशी होगा, इसका तो ऐलान भी लखनऊ के बजाय आजम खां के रामपुर कार्यालय से होता रहा है। इस बार वह जेल में बंद हैं। लेकिन, उनके लोग यहां सक्रिय हैं। आजम के एक इशारे पर वह कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। सूत्रों की मानें तो आजम खां रुचि वीरा को बिजनौर, यूसुफ मलिक को मुरादाबाद से लड़ाना चाहते थे और रामपुर में उनकी मर्जी थी कि अखिलेश उनकी परंपरागत सीट पर चुनाव लड़ें। इस बीच जब बिजनौर से रुचि वीरा का टिकट नहीं हुआ तो आजम खिन्न हो गए। चंद रोज पहले जेल में आजम से मिलने गए अखिलेश के समक्ष भी यह सब बातें खुलकर हुईं। अखिलेश ने रामपुर से चुनाव लड़ने का मन भी बनाया। रामपुर के सपा नेताओं को लखनऊ बुलाया और मन टटोला लेकिन, टिकट का ऐलान नहीं किया। मुरादाबाद में एसटी हसन का सपा ने टिकट कर दिया। साथ ही रामपुर से अपने परिवार के तेज प्रताप यादव का नाम चला दिया। यानी न रामपुर में आजम की दाल गली और न ही मुरादाबाद में, जिस पर आजम ने इशारा दिया और यहां उनके समर्थकों ने बहिष्कार का ऐलान कर दिया।
जिसके बाद अखिलेश ने मुरादाबाद में तो आजम की इच्छापूर्ति कर दी लेकिन, रामपुर में अपनी मर्जी का प्रत्याशी उतार दिया। हालांकि, आजम के चहेते आसिम राजा भी सपा से नामांकन कर चुके हैं, उनका कहना है कि 30 तक का वक्त हमारे पास है, देखिए क्या होता है? इस सबके बीच सियासी जानकारों की मानें तो रामपुर में अखिलेश ने आजम का सियासी चक्रव्यूह रौंद दिया है।
….तब सपा से निकाल दिए थे आजम
2009 के चुनाव में आजम नहीं चाहते थे कि जयाप्रदा का टिकट सपा से हो लेकिन, आजम के सियासी विरोधी रहे अमर सिंह के आगे आजम की नहीं चली और जयाप्रदा का टिकट हो गया, जिस पर आजम ने बगावत कर दी तो अमर सिंह ने नेताजी पर दवाब बनाकर आजम को पार्टी से ही बेदखल करा दिया था।
हर चुनाव में बागी तेवर अपनाते रहे हैं आजम
यह पहला मौका नहीं है जब आजम बागी तेवर अपनाए हुए हैं। यह आजम का मिजाज रहा है, कमोवेश हर चुनाव में ही वह दवाब बनाने के लिए नाराज हो जाते हैं। मालूम हो कि 2004 में आजम खां ही जयाप्रदा को रामपुर लाए थे लेकिन, जब वह जीत गईं तो 2009 के चुनाव में उन्हें दोबारा टिकट हो गया, जिस पर आजम ने बागी तेवर अपनाए और खुलकर जयाप्रदा का विरोध किया था। 2019 के चुनाव में फिर बागी हुए और विरोध स्वरूप बहिष्कार तक कर दिया, हालांकि बाद में खुद चुनाव लड़े और जीते भी।
चौबीस घंटे भी नहीं चला सपाइयों का चुनाव बहिष्कार
सपाइयों का चुनाव बहिष्कार का ऐलान 24 घंटे भी नहीं टिक सका। मंगलवार की शाम पांच बजे प्रेस कांफ्रेंस कर जिलाध्यक्ष अजय सागर और निवर्तमान नगर अध्यक्ष ने चुनाव में सपा कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए चुनाव के बहिष्कार का ऐलान किया था लेकिन, बुधवार को आसिम राजा स्वयं नामांकन पत्र लेने पहुंचे और मीडिया के सवाल पर हंसकर बोले-यह सियासत है।
सीतापुर की जेल में आजम ने बुना तानाबाना
बेटे के दो जन्म प्रमाण पत्र प्रकरण में सजायाफ्ता आजम खां सीतापुर की जेल में बंद हैं। लेकिन, सियासत के मझे खिलाड़ी हैं लिहाजा, जेल से ही ऐसा तानाबाना बुन दिया कि अखिलेश यादव ही उसमें उलझ से गए। रामपुर ही नहीं आसपास के सीटों पर आजम ही प्रत्याशी का फैसला लेते रहे हैं।