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मनोज कुमार का 87 वर्ष की आयु में निधन, फिल्म इंडस्ट्री में शोक. उनके भाई मनीष गोस्वामी ने बताया कि मनोज का सिनेमा के प्रति जुनून बरकरार था. उन्होंने बताया कि जुलाई में मनोज 88 साल के हो जाते. उनकी दिल की धड़कने…और पढ़ें
मनोज कुमार आखिरी दिनों बहुत कम बोलने लगे थे.
हाइलाइट्स
- मनोज कुमार का 87 वर्ष की आयु में निधन
- मनोज कुमार का सिनेमा के प्रति जुनून बरकरार था
- मनोज कुमार ने हिंदी सिनेमा में देशभक्ति की कहानियों की शुरुआत की
मुंबई. मनोज कुमार का 4 अप्रैल को 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया. फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर है. उनके निधन ने भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत कर दिया. अब उनके करीबी, इंडस्ट्री से जुड़े लोग और फैंस अंतिम दिनों और उनकी यादों को शेयर कर रहे हैं. मनोज कुमार के चचेरे भाई और प्रोड्यूसर मनीष गोस्वामी ने दिवंगत एक्टर के आखिरी दिनों के बारे में बात की. उन्होंने बताया कि जुलाई में मनोज 88 साल के हो जाते. उनकी दिल की धड़कनें कम पंप करती थी. बहुत काम बात करते थे.
मीनष गोस्वामी ने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा, “वो इस जुलाई में 88 साल के हो जाते. लेकिन उम्र से संबंधित समस्याओं के कारण, दिल धीरे-धीरे कम पंप करने लगा. वो कभी-कभी बात करते थे, लेकिन अंतिम तीन दिनों में, वो कम बोलने लगे थे.” स्वास्थ्य में गिरावट के बावजूद, मनोज कुमार का सिनेमा के प्रति जुनून बरकरार रहा.
मनीष गोस्वामी ने बताया कि भले ही उनका शरीर कमजोर हो गया था, उनके मन में आइडियाज आते रहते थे. वो फिल्म से संबंधित चर्चाएं करते थे. उनका सिनेमा के प्रति प्रेम बेमिसाल था. मनीष ने कहा. “उन्होंने एक बार हमसे कहा था, ‘खाना छोड़ना ठीक है-लेकिन फिल्म देखना छोड़ना? ये तो सोचा भी नहीं जा सकता.’”
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मनोज कुमार को था फिल्में बनाने का जुनून
मनीष गोस्वामी ने गर्व से ‘शहीद’, ‘उपकार’ और ‘पूरब और पश्चिम’ जैसी फिल्मों के जरिए मनोज कुमार को बॉलीवुड के डीएनए में देशभक्ति को शामिल करने का क्रेडिट दिया. मनीष ने कहा, “उन्होंने हिंदी सिनेमा में देशभक्ति की कहानियों की शुरुआत की. उन्होंने न केवल एक्टिंग की बल्कि कई फिल्मों को लिखा, निर्देशित और यहां तक कि खुद फाइनेंस किया, केवल अपने जुनून के कारण.”
आज की फिल्मों को भी सपोर्ट करते थे मनोज कुमार
मनीष गोस्वामी ने आधुनिक सिनेमा पर मनोज कुमार के विचारों पर भी बात की. मनीष ने कहा, “उन्होंने कभी बदलते समय का विरोध नहीं किया. वो मानते थे कि हर पीढ़ी की अपनी भाषा और अपनी कहानी कहने का तरीका होता है. लेकिन उन्हें लगता था कि वह गहराई और विश्वास, जो कभी सिनेमा को परिभाषित करता था, आज की कई फिल्मों में गायब है.”