संजय यादव/ बाराबंकी: अफीम वो फसल है, जिसे काला सोना भी कहा जाता है. यह देश ही नहीं विदेशों मे भी इसकी काफ़ी मांग है. क्योंकि अफीम का प्रयोग कई तरह की दवा बनाने में किया जाता है. देश में अफीम की लाइसेंसी खेती भी की जाती है. जिसका लाइसेंस सरकार देती है. मसलन अफीम का लाइसेंसी खेती का मतलब है कि देश में अफीम का सीमित उत्पादन और किसानों को उत्पादन का बेहतर भाव सीधे तौर पर दिया जाता है. जिससे किसानों के लिए अफीम की खेती बेहद ही फायदेमंद साबित होती है. इस खेती के चोरी होने की भी आशंका बनी रहती है. यही नहीं कई बार किसान चोरी के डर से अफीम के फलों को तोड़कर घर रखते हैं, तो घर पर ही लूट की घटना सामने आई है. ऐसे में किसान अपनी जान जोखिम में डालकर इसकी खेती करते हैं.
वहीं अफीम एक ऐसी फसल है, जिसकी बाजार में क़ीमत बहुत अधिक होने क़े कारण अफीम चोरी के मामले सामने आते रहते हैं. अफीम चुराने वाले खेतों से अफीम के पूरे फल ही तोड़ ले जाते हैं. इस वजह से किसान को भारी नुकसान हो जाता है. नौबत यहां तक भी आ जाती है कि किसान पर उसके लाइसेंस निरस्त होने का खतरा मंडराने लगता है. यही वजह है की किसान जंगली जानवरों द्वारा नुकसान पहुंचाए जाने से इतना चिंतित नहीं है, जितना अफीम चोरों से है. कई वारदातें ऐसी हुई हैं, जिनमें यह सामने आया है कि अफीम किसानों ने अफीम खेतों से लाकर अपने घर में रखा, लेकिन किसानों पर ही हमला करके सीधे-सीधे अफीम लूट ली गई. अफीम की चोरी और अफीम की लूट किसानों के लिए बड़ी चिंता का विषय है. यही वजह भी है कि किसान अपनी जान पर खेलकर अफीम की फसल को उगा रहे हैं. क्योंकि अन्य फसलों में इतना मुनाफा नहीं मिलता, जितना अफीम की फसल में मिलता है.
जिला कृषि अधिकारी राजित राम ने बताया जनपद बाराबंकी में किसान अफीम की खेती बड़े पैमाने पर करते आए हैं. आज भी यहां पर इसकी खेती की जा रही है. इस खेती में नुकसान की संभावना ज्यादा रहती है. इसमें नीलगाय, चोर वह पशु पक्षियों और रोगों का खतरा ज्यादा रहता है. इसलिए अफीम की खेती के दौरान किसानों को अच्छे कीटनाशकों और खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. इसके अलावा जानवरों से सुरक्षा के लिए भी उचित इंतजाम करने चाहिए. जिससे अफीम किसानों को नुकसान न उठाना पड़े और वह अपना लक्ष्य आसानी से हासिल कर सकें.
FIRST PUBLISHED : November 20, 2024, 14:56 IST