Rani Ki Sarai Village: शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव है, जिसका नाम ‘रानी की सराय.’ इस नाम के पीछे की कहानी आजमगढ़ के नामकरण और इसे बसाने वाले राजा से जुड़ी है. जहांगीर के शासनकाल में आजमगढ़ जिले की मेंहनगर तहसील राजा अभिमन्यु सिंह की रियासत थी. अभिमन्यु सिंह ने अपने भतीजे हरिवंश सिंह को अपनी रियासत का वारिस बनाया था.
रानी की सराय गांव की कहानी
आजमगढ़ के शिब्ली कॉलेज की हिस्ट्री टीचर ने बताया कि राजा हरिवंश सिंह ने एक मुस्लिम लड़की से विवाह कर इस्लाम कबूल कर लिया था. लेकिन उनकी पहली पत्नी ज्योति सिंह को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई. उन्होंने अपने स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं किया और नाराज होकर रियासत छोड़कर अपने बच्चों के साथ चली गईं.
रानी ने जिस जगह पर अपना नया ठिकाना बनाया, आज उसे ‘रानी की सराय’ के नाम से जाना जाता है. कुछ समय बाद रानी के बेटे विक्रमजीत सिंह ने भी इस्लाम धर्म कबूल कर लिया. विक्रमजीत सिंह के दो बेटे हुए – आजम शाह और अजमत शाह. आजम शाह ने बाद में आजमगढ़ शहर को बसाया. अजमत शाह के नाम पर अजमतगढ़ आज भी आजमगढ़ में मौजूद है.
कौन थे अभिमन्यु सिंह?
जहांगीर के शासनकाल में अभिमन्यु सिंह एक जांबाज सिपाही थे. उस समय जौनपुर रियासत में विद्रोह का दौर चल रहा था, जिससे जहांगीर की परेशानी बढ़ रही थी. ऐसे में जौनपुर के विद्रोह को खत्म करने का जिम्मा अभिमन्यु सिंह ने उठाया. उन्होंने तीन बार जौनपुर में विद्रोह को खत्म किया. उनके इस कारनामे से खुश होकर जहांगीर ने उन्हें 1500 घुड़सवार, 92 हजार रुपए और 22 बांदाओं का मालिक बना दिया.
इस्लाम धर्म कबूल किया
जहांगीर द्वारा मिली इस सौगात के बाद अभिमन्यु सिंह ने भी इस्लाम कबूल कर लिया और अपना नाम बदलकर दौलत इब्राहिम खान रख लिया. इस्लाम कबूल करने के बाद इब्राहिम खान ने मेंहनगर को अपनी राजधानी बनाई और यहां पर अपना साम्राज्य स्थापित किया. इब्राहिम खान (अभिमन्यु सिंह) की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपने भतीजे हरिवंश सिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाया.
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FIRST PUBLISHED : November 9, 2024, 10:16 IST