IAS Story: आईएएस, आईपीएस और आईएफएस ऑफिसर बनने के लिए उम्मीदवारों को यूपीएससी सिविल सेवा की परीक्षा को पास करना होता है. इसे पास करने के बाद उन्हें कैडर अलॉट किया जाता है. बाद में वह अपने कामों की वजह से सुर्खियों में बने रहते हैं. आज एक ऐसे ही IAS ऑफिसर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पंजाब के ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं और बच्चों के लिए उम्मीदों की किरण लेकर आए हैं. हम जिनकी बात कर रहे हैं, उनका नाम जितेन्द्र जोरवाल (IAS Jitendra Jorwal) हैं.
IIT दिल्ली से किया बीटेक
जितेन्द्र जोरवाल रियल लाइफ में जितना अपने कामों को लेकर फेमस हैं, उतना ही वह सोशल मीडिया पर मशहूर है. वह 2014 बैच के आईएएस अधिकारी हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक जितेन्द्र जोरवाल राजस्थान के रहने वाले हैं. उन्होंने आईआईटी दिल्ली से सिविल इंजीनियरिंग में बी.टेक किया है. इसके बाद 3 साल तक आईईएस के जरिए एनएचएआई में काम किया है. उन्होंने जालंधर में अपनी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग की है. सिविल सर्विसेज में जितेन्द्र जोरवाल की पहली पोस्टिंग कथित तौर पर होशायरपुर में हुई थी.
महिलाओं और बच्चों के लिए उम्मीद की किरण
IAS ऑफिसर जितेंद्र जोरवाल (IAS Jitendra Jorwal) पंजाब के संगरूर के डिप्टी कमिश्नर (DC) के रूप में जिले के कई बच्चों और महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. जब वे वर्ष 2022 में संगरूर जिला प्रशासन में डीसी के रूप में शामिल हुए, तो उस समय सरकारी स्कूलों में एक स्वास्थ्य सर्वेक्षण शुरू किया. स्वास्थ्य सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले कई बच्चों को या तो कभी दाखिला नहीं मिला या वे स्कूलों में अपनी शिक्षा जारी रखने में असमर्थ थे.
स्कूल-ऑन-व्हील्स कार्यक्रम किया शुरू
इस समस्या को हल करने के लिए जोरवाल ने स्कूल-ऑन-व्हील्स कार्यक्रम शुरू किया, जिसे ज्ञान किरणन दी चोह (ज्ञान की किरणों को छूना) कहा जाता है, जो स्कूल न जाने वाले बच्चों के लिए है. इस कार्यक्रम ने 5 से 11 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा से परिचित कराया, जिससे उन्हें बस में तीन से चार घंटे बिताने का मौका मिला और वे आनंदपूर्वक सीख पाए. कहानी सुनाने और एक्सपोजर विजिट जैसी गतिविधियों ने बस में बच्चों के समय को भरा, जिससे उन्हें मज़ेदार और तनाव-मुक्त माहौल में सीखने में मदद मिली.
बच्चों के लिए उम्मीद की किरण
इस पहल के हिस्से के रूप में एक पीली स्कूल बस प्रतिदिन झुग्गियों से लगभग 30 बच्चों को उठाती है, उन्हें इधर-उधर घुमाती है और फिर उन्हें वापस घर छोड़ती है. बस में शिक्षण सामग्री, किताबें और एक इंटरैक्टिव, रंगीन इंटीरियर है. बुनियादी शिक्षा देने के लिए एक शिक्षक भी मौजूद है, साथ ही दो आंगनवाड़ी वर्कर भी हैं जो बच्चों की देखभाल में सहायता करते हैं. जोरवाल बताते हैं कि छात्रों को सीधे नियमित स्कूलों में दाखिला देने से सीखने को बढ़ावा नहीं मिलेगा, और स्कूल छोड़ने और फिर से दाखिला लेने का चक्र कभी खत्म नहीं होगा.
इन बच्चों को एक ऐसे माहौल की ज़रूरत थी जहां उन्हें लगे कि वे एजुकेशन सिस्टम से जुड़े हुए हैं और अपनी गति से सीख सकते हैं. इसे हासिल करने के लिए, हमने ‘स्कूल ऑन व्हील्स’ कार्यक्रम शुरू किया.” इसके तुरंत बाद, जिला प्रशासन ने शिक्षा विभाग के साथ मिलकर नामांकन अभियान शुरू किया. नतीजतन, संगरूर से 53 और धुरी ब्लॉक से 24 बच्चों को प्राथमिक स्कूलों में दाखिला मिला. महिला सशक्तिकरण एक और महत्वपूर्ण पहल उद्यमिता और आजीविका (PEHEL) कार्यक्रम के माध्यम से परिवारों के रोजगार को बढ़ावा देने के तहत स्कूल यूनिफ़ॉर्म की सिलाई है.
सरकार प्रत्येक यूनिफ़ॉर्म किट के लिए 600 रुपये का भुगतान करती है, और स्कूल प्रबंधन समितियों को अपनी पसंद के विक्रेताओं से ऐसी यूनिफ़ॉर्म किट खरीदने का अधिकार है. संगरूर जिले में स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) से जुड़ी महिलाओं द्वारा इस तरह की यूनिफॉर्म किट तैयार की जाती हैं. इससे न केवल ग्रामीण महिलाओं को आजीविका के अवसर मिले, बल्कि महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा मिला है.
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Tags: IAS Officer, Iit, UPSC
FIRST PUBLISHED : October 25, 2024, 15:41 IST