Dhanvantari Ki Katha: दीपों का महाउत्सव दीपावली आने में चंद दिन शेष हैं. दीपाली का त्योहार 5 दिन पहले से शुरू हो जाता है. इसकी शुरुआत धनतेरस से होती है. धनतेरस का त्योहार हर साल कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. इस बार धनतेरस 29 अक्टूबर 2024 को पड़ रही है. इस दिन भगवान धन्वंतरी और माता लक्ष्मी के साथ धन के देवता कुबेर की पूजा का विधान है. शास्त्रों के अनुसार, इस तिथि को समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इस वजह से इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी तिथि के नाम से भी जाना जाता है. भगवान धन्वंतरि को देवताओं का वैद्य भी कहा जाता है. ऐसे में इनकी पूजा करने से जातक ताउम्र निरोगी रह सकता है. इनकी कहानी बेहद रोचक है. इन कहानी के बारे में News18 को बता रहे हैं प्रतापविहार गाजियाबाद के ज्योतिर्विद एवं वास्तु विशेषज्ञ राकेश चतुर्वेदी-
धनतेरस पर्व धन्वंतरि जयंती कैसे
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को ही सबसे बड़ा धन माना गया है. इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है और इन्होंने ही संसार में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया था. भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के कारण इस दिन को वैद्य समाज धन्वंतरि जयंती के रूप में मनाता है.
धनतेरस पर्व की कहानी
धर्म शास्त्रों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. ऐसा चमत्कार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ था. बता दें कि, भगवान धन्वंतरि को विष्णु भगवान का अंश माना जाता है. धन्वंतरि के बाद माता लक्ष्मी दो दिन बाद समुद्र से निकली थीं. इसलिए उस दिन दिवाली का पर्व मनाया जाता है. इनकी पूजा-अर्चना करने से आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है.
धनतेरस की पौराणिक कथा
एकबार मृत्यु के देवता यमराज ने यमदूतों से प्रश्न किया कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में तुमको कभी किसी पर दया आती है. यमदूतों ने कहा कि नहीं महाराज, हम तो केवल आपके दिए हुए निर्देषों का पालन करते हैं. फिर यमराज ने कहा कि बेझिझक होकर बताओ कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में दया आई है. तब एक यमदूत ने कहा कि एकबार ऐसी घटना हुई है, जिसको देखकर हृदय पसीज गया. एक दिन हंस नाम का राजा शिकार पर गया था और वह जंगल के रास्ते में भटक गया था और भटकते-भटकते दूसरे राजा की सीमा पर चला गया. वहां एक हेमा नाम का शासक था, उसने पड़ोस के राजा का आदर-सत्कार किया. उसी दिन राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म भी दिया.
ज्योतिषाचार्यों की भविष्यवाणी पर राजा का फरमान
ज्योतिषों ने ग्रह-नक्षत्र के आधार पर बताया कि इस बालक की विवाह के चार बाद ही मृत्यु हो जाएगी. तब राजा ने आदेश दिया कि इस बालक को यमुना तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा जाए और स्त्रियों की परछाईं भी वहां तक नहीं पहुंचनी चाहिए. लेकिन विधि के विधान को कुछ और ही मंजूर था. संयोगवश राजा हंस की पुत्री यमुना तट पर चली गई और वहां राजा के पुत्र को देखा. दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया. विवाह के चार दिन बाद ही राजा के पुत्र की मृत्यु हो गई.
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…जब यमदूतों का पसीज गया था हृदय
यमदूत ने कहा कि उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हृदय पसीज गया था. सारी बातें सुनकर यमराज ने कहा कि क्या करें, यह तो विधि का विधान है और मर्यादा में रहते हुए यह काम करना पड़ेगा. यमदूतों ने पूछा कि ऐसा कोई उपाय है, जिससे अकाल मृत्यु से बचा जा सके. तब यमराज ने कहा कि धनतेरस के दिन विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना और दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती. इसी घटना की वजह से धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दीपदान किया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : October 23, 2024, 11:52 IST