रतन टाटा नहीं रहे। इस ‘रतन’ को ‘टाटा’ कैसे कहें? भारत के इस महान सपूत को अलविदा कैसे कहें? कैसे यकीन करें कि रतन टाटा अब इस दुनिया में नहीं रहे? रतन टाटा का काम और नाम इतना बड़ा है कि आप अपने आसपास देखेंगे तो हर जगह उनकी उपस्थिति का एहसास होगा। AC टाटा का, TV टाटा का, Tea-coffee टाटा की, कार से लेकर एयरलाइन तक सब टाटा की, होटल और हॉस्पिटल टाटा के, कैंसर का इलाज टाटा का, रिसर्च टाटा की, स्टील हो या टेलिकॉम, हर फील्ड में आपको टाटा की मौजूदगी मिलेगी। इसीलिए रतन टाटा कहीं नहीं जा सकते, वो आपको रोज़ नज़र आएंगे, यहीं मिलेंगे। रतन टाटा सिर्फ एक बिजनेसमैन नहीं थे। वह सिर्फ टाटा ग्रुप के सर्वेसर्वा नहीं थे। रतन टाटा एक संस्थान थे, एक विचार थे। रतन टाटा किसी न किसी रूप में हम सबकी जिंदगी से जुड़ गए थे। उद्योगपतियों के आदर्श थे, युवाओं के लिए प्रेरणा थे, गरीबों के लिए मसीहा थे। रतन टाटा ने टाटा ग्रुप को दुनिया भर में फैलाया। टाटा का नमक तो देश पहले से खा रहा था, लेकिन टाटा की चाय घर-घर की किचन में रतन टाटा ने पहुंचाई। मिडिल क्लास को कार का सपना रतन टाटा ने दिखाया। भारत के ऑटोमोबाइल सेक्टर को इंटरनेशनल रतन टाटा ने बनाया। मिनरल वाटर से लेकर विस्तारा एयर लाइन तक सब रतन टाटा का है।
रतन टाटा शोहरत की बुलंदियों पर थे, अपार दौलत थी, लेकिन हमेशा जमीन से जुडे रहे। इंसानियत का जज्बा ऐसा था कि कोरोना काल में जब अस्पतालों में मरीजों के लिए जगह नहीं थी तो मुंबई में ताज होटल के दरवाजे कोरोना मरीजों के लिए खोल दिए। दिल में दया इतनी कि प्रिंस चार्ल्स का बर्मिंघम पैलेस में आने का न्योता इसलिए नामंजूर कर दिया क्योंकि उनका पेट डॉग बीमार था। वो उसे छोड़कर नहीं जाना चाहते थे। सेवा भाव ऐसा कि टाटा कंपनी के घरों से मजदूरों को निकाला जा रहा था, मजदूरों ने रतन टाटा से अपील की, तो कंपनी के घर मजदूरों के नाम कर दिए। उन्हें घरों का मालिकाना हक दे दिया। सोच इतनी बड़ी कि लैंड रोवर और जगुआर जैसे बड़े अन्तरराष्ट्रीय ब्रैंड्स को खरीद लिया। एयर इंडिया खतरे में पड़ी, तो एयर इंडिया खरीद लिया। रतन टाटा वाकई भारत के सच्चे रत्न थे। उन्होंने जिस कारोबार को छुआ, वो सोना उगलने लगा, खूब पैसा कमाया, लेकिन काफी कुछ दान दे दिया। रतन टाटा के व्यक्तित्व को शब्दों में समेटना नामुमकिन है। उनकी खूबियां गिनाने के लिए अल्फाज़ कम पड़ जाते हैं। रतन टाटा का अन्तिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया लेकिन लोगों के दिलों में रतन टाटा हमेशा बसे रहेंगे।
रतन टाटा को लेकर आज लोग इतने भावुक क्यों हैं? रतन टाटा उद्योगपति थे, बिजनेस चलाते थे, पैसा कमाते थे, तो फिर उनको लेकर आज घर-घर में लोग दुखी क्यों हैं? इसे समझने की ज़रूरत है। रतन टाटा को उनकी जायदाद ने बड़ा नहीं बनाया। उन्हें लोगों का प्यार मिला, उनके बुनियादी गुणों के कारण। ऐसी बातों को लेकर जो आमतौर पर बड़े लोगों में नहीं मिलतीं। रतन टाटा विनम्र थे, कभी अपनी जायदाद का दिखावा नहीं करते थे, कभी अपनी ताकत का प्रदर्शन नहीं करते थे। रतन टाटा दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। आज ऐसे अनेक अनुभव हमें सुनने को मिले। किसी ने अस्पताल बनाने के लिए मदद मांगी, किसी ने इलाज के लिए, किसी ने एडमिशन के लिए। रतन टाटा ने सबकी खुले दिल से मदद की। ऐसी बहुत सारी कहानियां आपको सुनने को मिल जाएंगी। रतन टाटा की सादगी को भी लोगों ने पसंद किया। वो खुद कार ड्राइव करते थे, न कोई तामझाम, न भीड़भाड़। आम लोग देखते थे कि रतन टाटा हमेशा प्रोटोकॉल का पालन करते थे, सिक्योरिटी चेक कराने और लाइन में खड़े होने में उन्हें कोई समस्या नहीं थी।
लेकिन ये सब वो बातें थी जो ऊपर से दिखाई देती थी। इन सबसे ऊपर जो बात थी, अंदर की बात, वो ये कि रतन टाटा दिल के साफ थे। कारोबार को आगे बढ़ाने में उन्होंने ग़लत हथकंडों का सहारा नहीं लिया। अपनी कंपनी को ऊपर उठाने के लिए किसी दूसरी कंपनी को गिराने का काम नहीं किया और रतन टाटा के ये सारे गुण उनकी बातचीत में नज़र आती थी। जब वो नई पीढ़ी के लोगों से बात करते थे तो बहुत सारी छोटी-छोटी बातें बताते थे, लेकिन वो बड़े काम की होती थी। वो नौजवानों से कहते थे कि सिर्फ पैसा कमाने के लिए कारोबार शुरू मत करो। बिजनेस शुरू करो अपनी अलग पहचान बनाने के लिए। रतन टाटा की ऐसी बातें लोगों के दिलों में उतर जाती थी। इसीलिए मैंने कहा कि रतन टाटा जैसे लोग मरा नहीं करते। वो अपने कर्म से, विचार से, अपनी सादगी से, अपने व्यक्तिव से हमेशा लोगों के दिलों पर राज करते हैं। हमेशा जिंदा रहते हैं। रतन टाटा को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके जीवन से कुछ सीखें और अपने जीवन में उतारें। (रजत शर्मा)
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