सभी अनुभव बहुत जल्द ही प्राप्त हो जाने के कारण आज युवा अपने आपको कहीं खोया हुआ सा महसूस करते हैं. वे अपने भीतर इस बात के प्रति अनिश्चितता महसूस करते हैं कि आखिर उन्हें कहाँ जाना है. वे अपने माता-पिता के दिखाए मार्ग पर नहीं चलना चाहते क्योंकि वे उन्हें खुश नहीं देखते. उन्होंने देखा है कि धन और प्रसिद्धि के बावजूद भी उनके माता-पिता का जीवन इतना खुशहाल नहीं है. इसलिए खुशी की खोज स्वाभाविक है. आज युवा बहुत कम उम्र में खुशी की खोज में निकल पड़ते हैं. हालांकि यदि उन्हें जीवन में सही दिशा या मार्गदर्शन नहीं दिया जाता है, तो उनमें आक्रामकता और अवसाद पनप सकता है.
नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रित करना न तो हमें स्कूल में सिखाया जाता है और न ही घर पर. हम दाँतों की स्वच्छता तो सीखते हैं लेकिन मन की स्वच्छता कोई नहीं सिखाता. केवल बात करने या सलाह देने से तनाव दूर नहीं होता, हमें तनाव से छुटकारा पाने और मन को शांत करने के लिए कुछ तकनीकों और विधियों को सीखने की जरूरत है. यहीं पर ध्यान और श्वास लेने की तकनीक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.
ये ऐसे उपकरण हैं जो आपके मन को शांत करने में सहयोग करते हैं और आपको भीतर से खुशी अनुभव कराते हैं. अध्यात्म का लक्ष्य ऐसी खुशी प्राप्त करना है जिसे आपसे कोई छीन न सके. सुख दो प्रकार का होता है पहला है कुछ लेने या प्राप्त करने का सुख; जैसे एक बच्चे को कोई वस्तु लेने में आनंद आता है. कुछ पाने की चाह एक अपरिपक्व सुख है. देने का आनंद लेने के आनंद से कहीं अधिक संतुष्टिदायक है.
क्या आपने देखा है कि जब हम कुछ भी बाँटते हैं तब हमें कितनी खुशी होती है? उदाहरण के लिए, जब आप कोई अच्छी फिल्म देखते हैं तो आप हर किसी को इसके बारे में बताना चाहते हैं. यहाँ तक कि उन्हें यह सलाह भी देना चाहते हैं कि उन्हें इसे अवश्य देखना चाहिए. फिल्म निर्माता आपको ऐसा करने के लिए कोई कमीशन नहीं दे रहा है! आपको बस यही लगता है कि आपके प्रियजनों को भी वैसा ही अनुभव होना चाहिए जैसा आपने किया. यह एक परिपक्व आनंद है जो देने से आता है.
लेने की मानसिकता से आगे बढ़कर देने की मानसिकता तक पहुँचने से मन शुद्ध होता है और अत्यधिक प्रसन्नता मिलती है. जिन दिनों आप दुखी और निराश महसूस करें, अपने कमरे से बाहर निकलें और लोगों से पूछें, “मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?” आपके द्वारा की गई सेवा आपके भीतर एक क्रांति लाएगी. जब आप स्वयं को दूसरों का सहयोग करने में व्यस्त रखते हैं, तो आपको अनुभव होता है कि ईश्वर आपकी बहुत अच्छी तरह से देखभाल कर रहे हैं. तब आपका जीवन प्रेम एवं कृतज्ञता से भर जाता है.
क्या है सेवा
हमारे पास जो कुछ है उसे बाँटने और बदले में कुछ भी अपेक्षा किए बिना दूसरों की सहायता करने की इच्छा को सेवा कहा जाता है. सेवा हमें दूसरों से जोड़ती है. ध्यान और सेवा आपके मन और कार्यों को शुद्ध करती है और आपको आनंद के प्रसाद से भर देती है. हालाँकि, ये एक बार करने की बात नहीं हैं बल्कि बार-बार दोहराए जाने की बात है. सेवा को अपना स्वभाव बना लें. नियमित रूप से कुछ मिनटों तक ध्यान और प्राणायाम करने से हम अपने मस्तिष्क से नकारात्मक भावनाओं को दूर कर सकते हैं और मानसिक रोग तथा अवसाद से मुक्त हो सकते हैं.
हमारे ध्यान के अभ्यास के बावजूद, यदि हम अपने भीतर असहजता महसूस करते हैं, तो हमें दूसरों को आनंद और विश्राम पहुँचाने के लिए कुछ करना चाहिए. हम कई तरीकों से दूसरों की सेवा कर सकते हैं. हम जिस भी संभव उपाय से सेवा करें, चाहे अपना समय देकर, धन का दान करके या केवल सकारात्मक विषयों के बारे में बताकर; हर उपाय हमारी चेतना को बदल सकता है. जब सेवा आपके जीवन का उद्देश्य बन जाती है, तो यह भय को मिटा देती है और जीवन पर ध्यान केंद्रित करती है. आप दीर्घकालिक आनंद का अनुभव करते हैं और आपके मन को शांति मिलती है. सेवा का सर्वोत्तम रूप किसी की मनःस्थिति को ऊपर उठाना है. आइए अपने आप से पूछें, “हम अपने आस-पास के लोगों और संपूर्ण विश्व के लिए कैसे उपयोगी बन सकते हैं?”
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।