इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर अभियोजन गवाहों को पेश करने और ट्रायल पूरा करने में दिलचस्पी नहीं ले रहा है तो किसी व्यक्ति को अनिश्चितकाल तक के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता है। कोर्ट ने गंभीर अपराधों में भी अभियोजन द्वारा समय से गवाहों और साक्ष्य न प्रस्तुत करने पर नाराजगी जताते हुए डीजीपी यूपी से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। उनसे पूछा है कि गंभीर अपराधों में अभियोजन गवाहों को क्यों नहीं समय से पेश करता है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग का प्रमुख होने के नाते उन्होंने इस दिशा में क्या कदम उठाए हैं। क्या किसी मामले में उन्होंने दोषी पुलिस अधिकारी या व्यक्ति की जिम्मेदारी तय की है।
एटा के मनोज की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने संबंधित पीठासीन अधिकारी से भी रिपोर्ट मांगी है । जिसमें उन्होंने यह बताने के लिए कहा है कि मुकदमे के ट्रायल में अब तक हुई प्रक्रिया की जानकारी दी जाए। साथ ही यह भी बताया जाए की ट्रायल क्यों नहीं पूरा हो सका और इसके लिए कौन जिम्मेदार है।
याची मनोज के अधिवक्ता का कहना था कि यह उसकी चौथी जमानत अर्जी है। इससे पूर्व उसकी तीन जमानत अर्जियां खारिज हो चुकी हैं। याची वर्ष 2017 से जेल में बंद है। अधिवक्ता का कहना था कि पिछले साढ़े सात सालों में अभियोजन ने मात्र तीन गवाह पेश किए हैं और निकट भविष्य में मुकदमे का ट्रायल पूरा होने की कोई उम्मीद नहीं है। जो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी गाइडलाइन का उल्लंघन है। इस पर कोर्ट का कहना था कि यह लगातार देखने में आ रहा है कि गंभीर मामलों में भी अभियोजन गवाहों को समय से पेश नहीं करता है। जिससे कि तमाम मुकदमों का ट्रायल लंबित है। अगर अभियोजन गवाहों को पेश करने और ट्रायल पूरा करने में दिलचस्पी नहीं ले रहा है तो किसी व्यक्ति को अनिश्चितकाल के लिए जेल में नहीं रख सकते हैं। कोर्ट ने जमानत अर्जी पर कोई आदेश पारित करने से पूर्व डीजीपी और पीठासीन अधिकारी कोई जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।