Side Effects of Working Too Much: नौकरी में सफलता पाने के लिए ज्यादा से ज्यादा काम करने का ट्रेंड बन गया है. हर कोई खुद को मेहनती साबित करना चाहता है, लेकिन ऐसा करना जानलेवा साबित हो रहा है. पिछले दिनों कोच्चि की रहने वाली चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) की मौत हद से ज्यादा वर्कलोड की वजह से हो गई. अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल की उम्र महज 26 साल थी और उनकी EY कंपनी में पहली नौकरी थी. सिर्फ 4 महीने की नौकरी में अन्ना सेबेस्टियन पर काम का इतना बोझ पड़ गया कि उनकी जान चली गई. अन्ना सेबेस्टियन की मां ने एक लेटर लिखकर टॉक्सिक वर्क कल्चर को लेकर कई खुलासे किए, जिसके बाद वर्कलोड को लेकर चर्चाएं हो रही हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में ओवरवर्क का ट्रेंड बेहद कॉमन है.
TOI की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल मैककिंसे के 30 देशों के एक सर्वे में पता चला था कि भारत में वर्कलोड के कारण 60% लोग अत्यधिक थका हुआ और चिंतित महसूस करते हैं. इससे पहले 2019 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि मुंबई दुनिया का सबसे अधिक मेहनत करने वाला शहर था. इस मामले में राजधानी दिल्ली चौथे नंबर पर है. इस लिस्ट में दूसरे और तीसरे नंबर पर हनोई और मैक्सिको सिटी थी. साल 2018 के एक सर्वे में पाया गया था कि भारतीयों ने दुनिया में सबसे अधिक छुट्टियों से वंचित महसूस किया. आसान भाषा में कहें, तो भारतीयों को सबसे कम छुट्टियां मिलीं.
सप्ताह में 55 घंटे से ज्यादा काम बढ़ाता है मौत का खतरा !
साल 2021 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) और इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) ने लंबे समय तक काम करने के प्रभाव पर एक स्टडी की थी. इसमें कहा गया कि सप्ताह में 35 से 40 घंटे काम करने वालों की तुलना में 55 घंटे या उससे अधिक काम करने से मौत का खतरा कई गुना बढ़ सकता है. इतना ही नहीं, इस स्टडी में पता चला है कि लंबे समय तक काम करने के कारण हेल्थ कॉम्प्लिकेशन से मरने वाले लोगों की सबसे ज्यादा संख्या भारत में थी. बात सिर्फ जनसंख्या की नहीं है, क्योंकि चीन में जनसंख्या ज्यादा होने के बावजूद हालात भारत से बेहतर थे.
एक साल में वर्कलोड से 2 लाख लोगों की मौत !
अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल की EY कंपनी में पहली नौकरी थी और माना जा रहा है कि सिर्फ 4 महीने में ही अत्यधिक वर्कलोड के कारण उसकी मौत हो गई. भारत में लाखों लोगों का यही हाल है. हालिया आंकड़ों के अनुसार एक साल में 2 लाख भारतीयों ने ओवरवर्क के कारण अपनी जान गंवाई है. ILO के डाटा से पता चलता है कि आधे से ज्यादा रोजगार वाले भारतीय (51.4%) प्रति सप्ताह 49 घंटे या उससे ज्यादा काम करते हैं. इस मामलों में भूटान (61.3%) के बाद भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है. मध्यम और कम आय वाले कई देश वर्क कल्चर के मामले में भारत से बेहतर हैं.
भारत के साप्ताहिक एवरेज वर्क आवर (170 देशों में 13वें नंबर पर हैं. सबसे ज्यादा वर्किंग आवर के मामले में भारत की कंडीशन कांगो और बांग्लादेश जैसे देशों से भी खराब है. संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और कतर जैसी हाई इनकम कंट्रीज को छोड़ दें, तो बाकी संपन्न देशों में वर्किंग आवर भारत से काफी कम हैं. भारत की उच्च दबाव वाला वर्किंग कल्चर चीन से भी खराब है. चीन में लोग औसतन 46 घंटे प्रति सप्ताह काम करते हैं. चीन के ‘996’ वर्क कल्चर का मतलब है सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक सप्ताह में छह दिन काम करना. इस वर्क कल्चर का महिमामंडन चीन के टेक टाइकून जैक मा ने किया था.
इन्फॉर्मेशन और कम्युनिकेशन सेक्टर में दबाव सबसे ज्यादा
भारत के इन्फॉर्मेशन और कम्युनिकेशन सेक्टर में ओवरवर्क का दबाव सबसे ज्यादा है. ILO के आंकड़ों से पता चलता है कि इस सेक्टर के कर्मचारी सप्ताह में 57.5 घंटे काम करते हैं, जो इंटरनेशनल स्टैंडर्ड से लगभग 9 घंटे ज्यादा है. करीब 20 सेक्टर्स में से 16 क्षेत्रों में कर्मचारी सप्ताह में 50 घंटे या उससे ज़्यादा काम करते हैं. भारत में प्रोफेशनल्स, वैज्ञानिक और टेक्निकल सेक्टर में भी सप्ताह में 55 घंटे काम करने की मांग की जाती है. भारत में सप्ताह में सबसे कम 48 घंटे का काम एग्रीकल्चर और कंस्ट्रक्शन जैसे क्षेत्रों में होता है.
जूनियर एंप्लायीज पर सीनियर्स से ज्यादा लोड
ILO के आंकड़ों से पता चलता है कि यंग कर्मचारी अपने सीनियर कलीग्स की तुलना में ज्यादा घंटे काम करते हैं. 20 से 30 साल की उम्र तक भारतीय कर्मचारी सप्ताह में लगभग 58 घंटे काम करते हैं. मिड 30 तक वे लगभग 57 घंटे काम करते हैं. ज्यादा गिरावट तब आती है जब औसत कर्मचारी 50 के आसपास पहुंच जाते हैं, तब वे सप्ताह में 53 घंटे काम करते हैं. हालांकि यह भी इंटरनेशनल स्टैंडर्ड यानी 48 घंटे से काफी ज्यादा है.
क्या ज्यादा घंटों तक काम करने से GDP बढ़ रही?
अब सवाल है कि ज्यादा घंटे तक काम करने से हमारी जीडीपी में कितना योगदान करते हैं? एक्सपर्ट्स की मानें तो भारत में काम का एक घंटा जीडीपी में 8 डॉलर (करीब 650 रुपये) का योगदान होता है. ऐसे में लंबे समय तक काम करने से तभी पैसा कमाया जा सकता है जब लोग प्रोडक्टिव हों. लंबे समय तक काम करने से प्रोडक्टिविटी कम हो जाती है. भारत की $8 से कम लेबर प्रोडक्टिविटी केवल छोटी, कम आय और निम्न-मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर है.
भारत भी एक निम्न-मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था है, लेकिन इस आकार की अर्थव्यवस्था के लिए $8 प्रति घंटा काफी कम है. आउटसोर्सिंग प्रतिस्पर्धी वियतनाम $9.8 प्रति घंटा, फिलीपींस $10.5 प्रति घंटा, इंडोनेशिया $13.5 प्रति घंटा कमाता है. दूसरा ओवरवर्क हब चीन $15.4 कमाता है, जो उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाओं की उत्पादकता के करीब भी नहीं है.
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FIRST PUBLISHED : September 26, 2024, 10:28 IST