चोपन (मनोज चौबे)
चोपन। महिलाओं ने पुत्र की लंबी आयु के लिए बुधवार को जीवित्पुत्रिका व्रत (जिउतिया) रख कर विधि विधान से पूजन किया।महिलाओं ने 24 घंटे का निर्जला व्रत रख कर पुत्र की सलामती और स्वस्थ जीवन की कामना की। जीवित्पुत्रिका व्रत हर वर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है।इस व्रत की शुरुआत सप्तमी से नहाय-खाय के साथ हो जाती है।व्रत का पारण नवमी को होता है।इस दौरान महिलाएं गोट बना कर कहानी सुनती हैं।जिउतिया को लेकर बुधवार को सुबह ही महिलाओं ने घर की साफ सफाई कर प्रसाद आदि बनाने में जुट गई।सुबह से पूजा के सामानों की दुकानें सज गई थीं।व्रत के चलते फलों के दाम भी बढ़ गए थे।नगर कैलाश मंदिर, गौरीशंकर मंदिर, हाइडिल कालोनी, मल्लाही टोला व सोन नदी के तट के अलावा ग्रामीण इलाकों में भी विधि विधान के साथ जीउतिया की पूजा हुई।दोपहर बाद महिलाएं प्रसाद का सामान लेकर पूजा स्थल पर पहुंची। जहां पहले से बने गोट के चारों तरफ महिलाएं घेरा बना कर बैठ गईं।जहां जीउतिया की कथा सुनी।इस व्रत का संबंध महाभारत काल से जुड़ा है।महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी।इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया।शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे।अश्वत्थामा ने पांडव समझ कर उन्हें मार डाला।वह सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं।फिर अर्जुन ने उसे बंदी बना कर उसकी और उनकी दिव्य मणि छीन ली।अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने की साजिश रची। उसने ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल कर उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया।ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया।गर्भ में मर कर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा।तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगलमय जीवन के लिए जिउतिया का व्रत महिलाएं करती हैं।आगे चलकर यही बच्चा राजा परीक्षित बना।