उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता और उसके परिवार को मिली सीआरपीएफ की सुरक्षा वापस लेने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इजाजत मांगी है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों से मंगलवार को जवाब मांगा।
उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता और उसके परिवार को मिली सीआरपीएफ की सुरक्षा वापस लेने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इजाजत मांगी है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों से मंगलवार को जवाब मांगा। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का निष्कासित नेता कुलदीप सिंह सेंगर 2017 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव इलाके में एक नाबालिग लड़की के अपहरण और उससे दुष्कर्म करने के जुर्म में उम्रकैद की सजा काट रहा है।
इस सनसनीखेज दुष्कर्म मामले और पीड़िता तथा अन्य की जान को खतरा होने पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त 2019 को निर्देश दिया था कि दुष्कर्म पीड़िता, उसकी मां, परिवार के अन्य सदस्यों और उनके वकील को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) द्वारा सुरक्षा उपलब्ध करायी जाए।
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने केंद्र की याचिका की प्रति पीड़िता तथा उसके परिवार के सदस्यों को देने के लिए कहा। पीठ ने यह भी कहा कि चूंकि शायद ही किसी खतरे की आशंका है तो वह इस मामले को बंद करना चाहेगी।
केंद्र के वकील ने कहा कि पीड़िता तथा उसके परिवार के सदस्यों पर खतरे के आकलन के अनुसार सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील रुचिरा गोयल ने कहा कि उच्चतम नयायालय के आदेश के बाद मुकदमे समेत सब कुछ दिल्ली की अदालत को सौंपा जा चुका है।
पीठ ने गोयल से पूछा कि पीड़िता अभी कहां रहती है। इस पर उन्होंने बताया कि लड़की और उसका परिवार दिल्ली में रहता है। उच्चतम न्यायालय ने 14 मई को केंद्र से कहा था कि वह उन्नाव बलात्कार पीड़िता, उसके परिवार के सदस्यों और उसके वकीलों को 2019 के उसके आदेश के तहत प्रदान की गई सीआरपीएफ सुरक्षा वापस लेने के लिए अलग से एक याचिका दायर करे।
केंद्र सरकार ने कहा था कि पीड़िता और अन्य को दिल्ली या उत्तर प्रदेश पुलिस सुरक्षा प्रदान कर सकती है और सीआरपीएफ को इस जिम्मेदारी से हटने की अनुमति दी जाए। शीर्ष अदालत ने उन्नाव बलात्कार घटना के संबंध में दर्ज सभी पांच मामलों को 2019 में उत्तर प्रदेश की लखनऊ अदालत से दिल्ली की एक अदालत में स्थानांतरित कर दिया था और इसकी सुनवाई दैनिक आधार पर करने एवं इसे 45 दिन में पूरा करने के निर्देश दिए थे।
शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को भी निर्देश दिया था कि वह अंतरिम मुआवजे के रूप में पीड़िता को 25 लाख रुपये दे। अदालत ने कहा था कि सीबीआई को उस दुर्घटना की जांच सात दिन के भीतर पूरी करनी होगी जिसमें पीड़िता और उसका वकील गंभीर रूप से घायल हो गए थे तथा उसके दो रिश्तेदारों की मौत हो गयी थी।
पीड़िता के पिता को शस्त्र कानून के तहत एक मामले में सेंगर के कहने पर गिरफ्तार किया गया था और नौ अप्रैल 2018 को उसकी हिरासत में मौत हो गयी थी। सेंगर ने अधीनस्थ अदालत के दिसंबर 2019 के उस फैसले को रद्द किए जाने का अनुरोध किया है, जिसके तहत उसे शेष जीवन के लिए कारावास की सजा सुनाई गई है। उसकी अपील दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है।
सेंगर को 13 मार्च 2020 को पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत के मामले में 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनायी गयी थी। उस पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। अदालत ने इस मामले में सेंगर के भाई अतुल सिंह सेंगर और पांच अन्य को भी 10 साल की जेल की सजा सुनायी थी।