सोनभद्र (विकास द्विवेदी)
– धुंधकारी व गौकर्ण की कथा सुन भावविभोर हुए श्रोता
– पहले दिन कलश यात्रा में शामिल हुई सैकड़ों महिलाएं
सोनभद्र। शहर के विकास नगर कालोनी में श्री मद्भागवत कथा महापुराण का आयोजन रविवार से शुरू हुआ।कथा के पहले कलश यात्रा निकाली गई।जिसमें भक्त भजनों की धुन पर नाचते हुए निकले।इस दौरान महिलाएं सिर पर कलश रखकर निकलीं।वहीं भक्त भी जयकारे लगाते हुए चल रहे थे।इसके बाद कलश यात्रा कस्बा के विभिन्न स्थानों से होकर कथा स्थल पर पहुंची।जहां काशी के मर्मज्ञ कथा प्रवक्ता श्री श्री कुणाल जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा प्रारम्भ किया।कथा शाम पांच बजे से रात नौ बजे तक की जा रही है।जिसमें बड़ी संख्या में भक्त शामिल हो रहे हैं।श्रीमद् भागवत कथा के पहले दिन मर्मज्ञ कथा प्रवक्ता श्री श्री कुणाल जी महाराज ने गौकर्ण और धुंधकारी की कथा का रसपान कराया।कथावाचक ने कथा में बताया कि तुंगभद्रा नदी के तट पर आत्मदेव नामक एक व्यक्ति रहता था।उसकी पत्नी का नाम धुंधुली था।वह झगड़ालू किस्म की थी।संतान न होने के कारण पति परेशान रहता था।बुढ़ापे में संतान का मुख देखने को नहीं मिलेगा तो पिंडदान कौन करेगा।कथावाचक ने आगे बताया कि वह आत्मदेव दुखी मन से आत्महत्या के लिए कुआं में कूदने वाला था तभी एक ऋषि ने उसे बचा लिया। ऋषि ने पूछा क्यों आत्महत्या करने जा रहे हो।इसके बाद ऋषि की बात को सुनकर आत्मदेव ने कहा ऋषिवर मेरे एक भी संतान नहीं है।इसके अलावा मैंने गाय पाल रखी है। गाय के भी संतान नहीं है।इस कारण आत्महत्या करने का कदम उठाया।यह सुनकर ऋषि ने अपने थैले से फल निकालकर कहा कि तुम यह फल अपनी पत्नी को खिला देना, इससे एक संतान की प्राप्ति होगी।घर जाकर आत्मदेव ने फल अपनी पत्नी को दिया, लेकिन पत्नी ने सोचा कि अगर गर्भवती वो गई तो 9 महीने तक कहीं आने-जाने का मौका नहीं मिलेगा।अंतत: उसने फल को नहीं खाया।एक दिन उसकी बहन घर आई।उसने सभी किस्सा बहन को सुनाया।बहन ने कहा मैं गर्भवती हूं। प्रसव होने पर बच्चा तुम्हें दे दूंगी।तुम ये फल गाय को खिला दो।आत्मदेव की पत्नी ने अपनी बहन की बात में आकर फल गाय को खिला दिया।कुछ दिन के बाद धुंधुली को उसकी बहन ने बच्चा दे दिया।इसके बाद संतान को देखकर आत्मदेव बड़ा खुश हुआ।बच्चे का नाम एक विद्वान पंडित ने धुंधकारी रख दिया।इसके बाद गाय ने भी एक बच्चे को जन्म दिया जो मनुष्याकार था पर उसके कान गाय के समान थे।उसका नाम गोकर्ण रख दिया।
महाराज ने आगे बताया कि गोकर्ण और धुंधकारी दोनों गुरुकुल गए।गुरुकुल में अपना कार्य खुद करना पड़ता है। इस बीच धुंधकारी नशेड़ी, चोर निकल गया।एक दिन उसने अपनी माता को मार डाला।पिता व्यथित होकर वन चले गए। धुंधकारी वेश्याओं के साथ रहने लगा।वेश्याओं ने एक दिन धुंधकारी को मार डाला।मरने के बाद धुंधकारी भूत-प्रेत बन गया।धुंधकारी का भाई अपने घर में सोया रहता था, तभी प्रेत धुंधकारी ने आवाज लगाई कि भाई मुझे इस योनि से छुड़ाओ।गौकर्ण त्रिकाल संध्या की पूजा करते थे। तभी सूर्यनारायण भगवान से पूछते हैं कि इसके लिए क्या उपाय करना पड़ेगा।सूर्यनारायण ने कहा कि तुम सात गांठ बांस मंगाओ और भागवत का आयोजन करो। हर दिन बांस की गांठ धीरे-धीरे फट जाती है, जो सात दिन फटती है।तब पवित्र होकर धुंधकारी एक दिव्य रूप धारण करके सामने खड़ा हो जाता है।इस मौके पर पं. राहुल पाण्डेय, मुख्य आयोजक अनंत राम वर्मा, मुख्य यजमान मालती देवी, मंजूसा वर्मा, मीनू, विनीता, संगीता, रेनू, मीना सिंह, मोनी वर्मा, पीतांबर प्रताप सिंह, सुरेन्द्र जायसवाल, अरुण प्रताप सिंह, गोपाल सिंह, सालिक राम दूबे, अमिय कुमार वर्मा आदि रही।