बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुक्रवार को पटना में आंखों के अस्पताल का उद्घाटन किया। नीतीश कुमार ने ये भी बताया कि उन्होंने बिहार में कितने बड़े बड़े हॉस्पिटल बनाए। हेल्थ सर्विसेज को कितना बेहतर किया है। वहीं इसके उलट बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से सरकारी स्वास्थ्य सिस्टम की पोल खोल देने वाली तस्वीरें सामने आई हैं। मुजफ्फरपुर की इन तस्वीरों को देखकर हर कोई चौंक जाएंगा। बिहार में सरकारी सिस्टम कैसे काम करता है? ये तस्वीरें उसका सबूत हैं।
खंडहर में तब्दील हुई बिल्डिंग
मुजफ्फरपुर में 15 साल पहले एक हॉस्पिटल बनाया गया, लेकिन आज तक शुरू नहीं हो पाया। हॉस्पिटल की बिल्डिंग के आसपास बड़ी बड़ी घास उग आई है। बिल्डिंग पूरी तरह खंडहर में तब्दील हो चुकी है, क्योंकि बिहार की सरकार को पता ही नहीं है कि ऐसा कोई हॉस्पिटल बिहार में हैं।
करीब दो एकड़ सरकारी जमीन पर बना अस्पताल
ये तस्वीरें मुजफ्फरपुर के पारू ब्लॉक के सरैया गांव में बने उसी सरकारी अस्पताल की हैं। हॉस्पिटल बिल्डिंग में इमरजेंसी है। वार्ड्स हैं, लैब हैं, डॉक्टर्स के लिए हॉस्टल हैं, लेकिन हेल्थ डिपार्टमेंट के रिकॉर्ड में ये हॉस्पिटल गायब है। करीब दो एकड़ सरकारी जमीन पर ये अस्पताल किसने बनवाया? कब बनवाया? इसमें कितनी लागत आई? इसे किस फंड से बनवाया गया? कितना पैसा लगा?
खंडहर बना अस्तपाल
कोई सरकारी रिकॉर्ड मौजूद नहीं
इसके बारे में न कोई सरकारी रिकॉर्ड मौजूद है और न हॉस्पिटल के बारे में अफसरों को कुछ पता है। जब इंडिया टीवी की टीम इस गांव में पहुंची तो उन्होंने देखा कि अस्पताल की बिल्डिंग खंडहर बन चुकी है। आसपास झाड़ उग आई है। अस्पताल के अंदर सबकुछ टूटा-फूटा पड़ा है। इस बिल्डिंग के दरवाजे, खिड़की, चौखट, ग्रिल, बिजली की वायरिंग, वॉशरूम की फिटिंग्स, सबकुछ गायब हैं। दीवारें टूट चुकी हैं। छत का प्लास्टर गिर रहा है। टाइल्स को कुछ लोग उखाड़ ले गए हैं।
क्यों नहीं किया गया शुरू?
इंडिया टीवी की टीम ने जब ये पता लगाने की कोशिश की कि अगर ये अस्पताल बना, तो शुरू क्यों नहीं हुआ? आसपास के लोगों से बात की गई। गांव के मुखिया से पूछा गया तो सबने यही कहा कि वो खुद हैरान हैं कि जब इतना बड़ा सरकारी अस्पताल बनाया गया तो उसे शुरू क्यों नहीं किया गया?
अस्पताल के बारे में बताते हुए गांव के मुखिया
2008-2009 में बना अस्पताल
गांव के मुखिया आमोद शर्मा ने बताया कि ये अस्पताल 2008 या 2009 में बना था। इसी गांव की रहने वाली एक महिला IAS अधिकारी थीं। हेल्थ डिपार्टमेंट में बड़ी अफसर थीं। वो चाहती थीं कि इस गांव में एक अस्पताल बने। उनकी कोशिशों से हॉस्पिटल तो बन गया, लेकिन शुरू नहीं हुआ। इसके बाद गांव के लोगों ने तमाम कोशिश की। लोकल MLA और MP से भी मिले, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया गया।
जांच करेंगे तो जानकारी आएगी सामने- अधिकारी
गांव के लोग पिछले कई साल से कोशिश कर रहे हैं कि ये अस्पताल शुरू हो जाए। इसके लिए उन्होंने अधिकारियों से लेकर नेताओं तक के खूब चक्कर काटे, लेकिन कुछ नहीं हुआ। इंडिया टीवी की टीम ने डीएम सुब्रत सेन से बात की तो उन्होंने अधिकारियों की टीम मौके पर भेजी। हॉस्पिटल के बारे में जानकारी ली। डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट मैनेजर ने कहा कि अस्पताल की बिल्डिंग तो सरकारी जमीन पर बनी है। लेकिन हेल्थ डिपार्टमेंट को इसके बारे में कुछ पता नहीं है। जांच करेंगे तो फैक्ट्स सामने आएंगे।
हेल्थ डिपार्टमेंट को इसका हैंडओवर नहीं दिया
इसके बाद डीएम साहब ने कहा कि ये अस्पताल बनकर तो तैयार हुआ, लेकिन स्टेट बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन ने हेल्थ डिपार्टमेंट को इसका हैंडओवर नहीं दिया। ये बात सिविल सर्जन की शुरुआती रिपोर्ट में सामने आई है। इसीलिए इस हॉस्पिटल का सरकारी रिकॉर्ड में कोई जिक्र नहीं है। डीएम सुब्रत सेन ने कहा कि वो इस मामले की जांच करवा रहे हैं। डिटेल्ड रिपोर्ट आने के बाद इस पर कार्रवाई होगी।
क्या बोले स्वास्थ्य मंत्री अशोक चौधरी?
जब इस पूरे मामले पर बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी से सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि हो सकता है कि बिल्डिंग बनी हो, लेकिन completion certificate न मिला हो। इसकी वजह से इसे हेल्थ डिपार्टमेंट को हैंडओवर न किया गया हो, लेकिन जो कुछ भी है, उसे पता लगाया जाएगा।