बसपा के एजेंडे पर अब उसका अपना कोर वोट बैंक है। बसपा इन्हें अपने साथ बांधे रखने के लिए अब सर्वजन हिताय के बजाय बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय की राह पर चलेगी। इनके हितों के लिए काम होगा। देशभर में कहीं भी दलितों के प्रति उत्पीड़न की घटना होने पर पार्टी के लोग वहां पहुंचेंगे भी क्षमता भर मदद भी करेंगे। बसपा सुप्रीमो मायावती का मानना है कि इसके सहारे वह अपना खोया जनाधार फिर पा सकती हैं। विधानसभा उपचुनाव में भले ही इसका सीधे तौर पर फायदा न मिल सके, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसका फायदा जरूर मिलेगा।
बसपा सुप्रीमो मायावती नए सिरे से राजनीतिक जमीन तैयार करने में लगी हुई हैं। इसीलिए गांव-गांव जाकर बसपाई समाज के लोगों को समझा रहे हैं कि हक पाने के लिए ‘बहनजी’ को मजबूत करें। बसपा मजबूत रहेगी तो आरक्षण रहेगा। इसके लिए सत्ता में भागीदारी जरूरी है और यह तभी संभव है, जब समाज के लोग एकजुट होकर बसपा के साथ डटे रहेंगे। बिखराव हमेशा नुकसान पहुंचाता है बसपाई यह भी समाज के लोगों को समझा रहे हैं। बसपा का यह अभियान कितना सफल रहा, इसे विधानसभा उपचुनाव में टेस्ट किया जाएगा। इसके बाद खामियों को वर्ष 2027 तक पूरी तरह से दूर करने का प्रयास करने की योजना पर काम चल रहा है।
छिटक रहे हैं अपने
बसपा का मूल आधार दलित वोट बैंक है। कांशीराम ने दलित समाज के लोगों को अपने साथ जोड़कर बसपा को उत्तर प्रदेश में राजनीतिक पहचान दी। इस पहचान का यह फायदा हुआ कि बसपा गठबंधन ही नहीं अपने दम पर वर्ष 2007 में सरकार बनाने में सफल रही। खराब परिस्थितियों में भी 19 से 20 फीसदी वोट बैंक बचाए रखने वाली बसपा का जनाधार खिसक रहा है। इसकी पुष्टि इस साल हुए लोकसभा चुनाव में उसे मिले 9.39 प्रतिशत वोट से होती है। मायावती पार्टी से छिटक रहे दलित वोट बैंक को लेकर काफी चिंतित हैं। इसे अपने साथ बांधे रखने के लिए सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का नारा देने वाली बसपा अब कांशीराम के दौर वाली बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की बात करने लगी हैं।