प्रयागराज से सटी फूलपुर सीट पर भाजपा और बसपा के दांव से चुनाव बेहद रोचक हो गया है। भाजपा ने मौजूद सांसद का टिकट काट दिया है। पहले माना जा रहा था कि सांसद केशरी देवी का टिकट कटा तो उनके बेटे दीपक पटेल को मिल सकता है लेकिन भाजपा ने प्रवीण पटेल को उतारकर सभी को चौंका दिया है। प्रवीण पटेल ने बसपा से राजनीति की शुरुआत की थी। 2017 में बसपा से भाजपा में शामिल हुए थे। सपा ने अमरनाथ मौर्य को उतारा है। अमरनाथ भी लंबे समय तक बसपा में रहे हैं। बसपा ने अपने वरिष्ठ नेता जगन्नाथ पाल को उतारा है। ऐसे में यहां पर मुकाबला बसपा पृष्ठभूमि के प्रत्याशियों के बीच है।
प्रवीण अपने पिता महेंद्र प्रताप पटेल की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। महेंद्र प्रताप झूंसी विधानसभा क्षेत्र से 1984, 1989 व 1991 में विधायक चुने गए थे। ये जनता पार्टी व कांग्रेस से जुड़े रहे। प्रवीण पटेल ने बसपा से राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। वर्ष 2007 में बसपा के टिकट पर फूलपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। बसपा से ही 2012 का विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। फिर वर्ष 2017 से पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने 2017 व 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें फूलपुर से प्रत्याशी बनाया और दोनों में उन्हें जीत मिली। अब फूलपुर संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनाए गए हैं।
वहीं सपा से उतारे गए प्रत्याशी अमरनाथ मौर्या पार्टी में प्रदेश सचिव भी हैं। अमरनाथ मौर्या भी प्रवीण पटेल की तरह बसपा में रह चुके हैं। 2002 में शहर पश्चिम से बसपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। हालांकि पराजय का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा वह बसपा में कई पदों पर भी रह चुके हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के समय स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ अमरनाथ मौर्य ने सपा ज्वाइन की थी। 2022 में विधानसभा चुनाव में शहर पश्चिम से सपा ने उन्हें टिकट भी दिया था, लेकिन नामांकन के अंतिम दिन रिचा सिंह को टिकट दे दिया, जिस कारण अमरनाथ मौर्या चुनावी दंगल से बाहर हो गए थे।
बसपा से प्रत्याशी घोषित जगन्नाथ पाल 1996 में तत्कालीन बसपा सुप्रीमो कांशीराम के चुनाव में मतगणना एजेंट के रूप में कार्य कर चुके हैं। जगन्नाथ पाल भूतपूर्व सैनिक होने के साथ विकास इंटर कॉलेज एवं यूनिक पब्लिक स्कूल के प्रबंधक भी हैं। सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में वह लंबे समय से हैं। ग्राम पंचायत अमरसापुर, बहादुरपुर के दस वर्ष तक प्रधान भी रहे। शुरू से बसपा का झंडा लेकर चल रहे हैं। यही वजह है कि पार्टी उन्हें विधानसभा सीट झूंसी के महासचिव, जिला उपाध्यक्ष, जिला प्रभारी, लोकसभा प्रभारी फूलपुर की जिम्मेदारी पूर्व में दे चुकी है। मुख्य मंडल जोन प्रभारी के साथ प्रयागराज व मीरजापुर मंडल के कोऑर्डिनेटर का दायित्व भी निभा चुके हैं। वर्तमान में प्रयागराज के मंडल प्रभारी का दायित्व निभा रहे हैं।
जातीय समीकरण
फूलपुर लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो कुल मतदाताओं की संख्या 20.47 लाख से अधिक है। इनमें सबसे अधिक तीन लाख से ज्यादा कुर्मी मतदाता हैं। यादव मतदाताओं की संख्या भी दो लाख से अधिक है। पिछड़ी जाति के अन्य मतदाताओं की संख्या तीन लाख से अधिक है। करीब ढाई लाख मुस्लिम व ढाई लाख से अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता भी हैं। अगड़ी जातियों में ब्राह्मण वोटरों की संख्या करीब दो लाख है। शहर की दोनों विधानसभा क्षेत्रों शहर उत्तरी एवं पश्चिमी में कायस्थ मतदाताओं की संख्या भी दो लाख से अधिक है।
फूलपुर सीट पर पिछड़ों की निर्णायक भूमिका रहती है। इनमें भी कुर्मी मतदाताओं की बड़ी भूमिका होती है। 1977 में कमला बहुगुणा जीती थीं। इसके बाद 12 चुनाव हुए और 11 बार पिछड़ी जाति के उम्मीदवार विजयी रहे। अगड़ी जाति से कपिल मुनि करवरिया की ही जीत हुई है। इनके अलावा 2004 में अतीक अहमद की जीत हुई थी तो 2014 में केशव प्रसाद मौर्य जीते थे। शेष नौ चुनावों में भी कुर्मी उम्मीदवार ही संसद पहुंचने में सफल रहे। इस जातीय समीकरण को देखते हुए भाजपा ने प्रवीण पटेल को उम्मीदवार बनाया है। वहीं, सपा ने यादव व मुस्लिम मतदाताओं के साथ अन्य पिछड़ी जातियों के ध्रुवीकरण को ध्यान में रखते हुए अमर नाथ मौर्य को प्रत्याशी बनाया है।
आजादी के बाद हुए दूसरे चुनाव में ही बदला नाम
आजादी के बाद हुए लोकसभा के दूसरे चुनाव में प्रयागराज जिले की संसदीय सीटों का नाम बदल दिया गया था। इलाहाबाद ईस्ट कम जौनपुर वेस्ट सीट को फूलपुर और इलाहाबाद वेस्ट सीट को इलाहाबाद नाम मिला। फूलपुर से चुनाव लड़े पंडित जवाहर लाल नेहरू और उनकी जन्मभूमि का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला लाल बहादुर शास्त्री को। इलाहाबाद सीट से शास्त्री और फूलपुर सीट से पंडित नेहरू और मसुरियादीन दोनों जीते थे। इस चुनाव में लाल बहादुर शास्त्री की अपेक्षा पंडित नेहरू को ज्यादा वोट मिले थे लेकिन उनका मत प्रतिशत लाल बहादुर शास्त्री की तुलना में काफी कम था। शास्त्री को 58.41 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि नेहरू 36.87 प्रतिशत मत ही पाए थे।
आल इंडिया भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार रहे भूलई सिंह को सिर्फ 9.38 फीसदी यानी 20054 वोट ही मिले थे। निर्दल उम्मीदवार मुबारक मजदूर को एक भी वोट नहीं मिला था।वहीं फूलपुर सीट के 798642 मतदाताओं में से 616862 ने मतदान में हिस्सा लिया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू को 36.87 प्रतिशत यानी कुल 227448 वोट मिले थे।
एक सीट से दो प्रत्याशियों (एक सामान्य और दूसरा अनुसूचित जाति का) को विजयी घोषित करने का नियम इस चुनाव में भी लागू रहा। इस चुनाव में पंडित नेहरू के साथ मसुरियादीन विजयी होकर लोकसभा पहुंचे थे। मसुरियादीन को 198430 यानी 32.17 प्रतिशत वोट मिले थे।
इस चुनाव में इन दोनों सीटों की स्थिति से स्पष्ट है कि दोनों सीटों से जीत भले ही कांग्रेस के तीन प्रत्याशियों की हुई थी पर कांग्रेस के विरोधियों की संख्या भी कम नहीं थी। दोनों सीटों पर विपक्षी दल के उम्मीदवारों ने भी काफी वोट बटोरे थे।
मोदी लहर में बीजेपी जीती, उपचुनाव में सपा विजयी
फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में पाचं विधानसभा सीटें फाफामऊ, सोरांव, फूलपुर, इलाहाबादा पश्चिम और इलाहाबाद उत्तर शामिल हैं। इनमें सोरांव में सपा का कब्जा है। अन्य चार सीटों पर भाजपा के विधायक हैं। मोदी लहर में 2014 में इस सीट पर भाजपा के केशव प्रसाद मौर्य ने जीत हासिल की थी। 2017 में योगी सरकार में केशव प्रसाद के डिप्टी सीएम बनने पर हुए उपचुनाव में यह सीट सपा ने भाजपा से छीन ली थी।
पिछले चुनाव में भाजपा ने दोबारा इस पर कब्जा किया था। 2014 में बीजेपी के केशव प्रसाद ने 5,03,564 वोट हासिल कर सपा के धर्म राज सिंह पटेल को हराया था। धर्म राज पटेल को 1,95,256 और तीसरे नंबर पर रहे बसपा के कपिल मुनि करवरिया को 1,63,710 वोट मिले थे। कांग्रेस ने क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को उस समय उतारा था। कैफ केवल 58,127 वोट ही हासिल कर सके थे।
केशव मौर्य के डिप्टी सीएम बनने पर 2018 में हुए उपचुनाव में सपा के नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल ने 3,42,922 वोट हासिल कर बीजेपी प्रत्याशी और वाराणसी के पूर्व मेयर कौशलेंद्र सिंह पटेल को हराया था। कौशलेंद्र को 2,83,462 वोट मिले थे। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की केशरी देवी पटेल ने सपा के पंधारी यादव को हराया था। केशरी देवी पटेल को 544701 और पंधारी को 372733 वोट मिले थे। कांग्रेस के पंकज पटेल 32761 वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर थे।
अब तक बने सांसद
1952 जवाहर लाल नेहरू और मसुरिया दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1957 जवाहर लाल नेहरू और मसुरिया दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1962 जवाहर लाल नेहरू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1964 विजया लक्ष्मी पंडित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1967 विजया लक्ष्मी पंडित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1969 जनेश्वर मिश्र संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1971 विश्वनाथ प्रताप सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1977 कमला बहुगुणा जनता पार्टी
1980 बीडी सिंह जनता पार्टी (सेक्युलर)
1984 राम पूजन पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1989 राम पूजन पटेल जनता दल
1991 राम पूजन पटेल जनता दल
1996 जंग बहादुर पटेल समाजवादी पार्टी
1998 जंग बहादुर पटेल समाजवादी पार्टी
1999 धर्मराज पटेल समाजवादी पार्टी
2004 अतीक अहमद समाजवादी पार्टी
2009 कपिल मुनि करवरिया बहुजन समाज पार्टी
2014 केशव प्रसाद मौर्य भारतीय जनता पार्टी
2018 नागेन्द्र प्रताप पटेल समाजवादी पार्टी
2019 केशरी देवी पटेल भारतीय जनता पार्टी