नई दिल्ली: भारत में जूते खरीदने के लिए अब तक जो साइज हम दुकानदार को बताते रहे हैं वह यूके द्वारा निर्धारित साइज है। जूतों के बाजार में अभी तक साइज के लिए कोई भारतीय मानक प्रणाली नहीं थी। लेकिन अब देश में स्थानीय मानक प्रणाली से जूतों का साइज तय किया जाएगा। इस सिस्टम का नाम ‘भा’ रखा गया है। जल्द ही इसे बाजार में लागू किया जाएगा। हम इस लेख में इस बात पर विचार करेंगे कि आखिर देश जूतों की साइज को लेकर भारतीय प्रणाली की जरूरत क्यों महूसस हुई और रिसर्च में क्या पाया गया।
शुरुआत में यह माना जाता था कि भारतीयों के लिए कम से कम पांच फुटवियर साइज सिस्टम की जरूरत होगी। सर्वेक्षण से पहले यह माना जाता था कि पूर्वोत्तर भारत के लोगों के पैरों का आकार शेष भारत की तुलना में औसतन छोटा होता है।
3D फुट स्कैनिंग मशीनों से लिए गए नाप
भारतीय जूतों के साइज को लेकर दिसंबर 2021 से मार्च 2022 के बीच एक सर्वे किया गया। यह सर्वे 5 भौगोलिक इलाकों में 79 जगहों पर हुआ। सर्वे में करीब 1,01,880 लोगों ने हिस्सा लिया। इस दौरान 3D फुट स्कैनिंग मशीनों के जरिए भारतीय लोगों के पांव के नाप लिए गए और पैर के आकार, संरचना को समझने की कोशिश की गई। सर्वे में यह पता चला कि एक औसत भारतीय महिला के पैर के आकार में वृद्धि 11 साल की उम्र में चरम पर होती है जबकि एक भारतीय पुरुष के पैर के आकार में वृद्धि लगभग 15 या 16 साल में होती है।
भारतीय लोगों के पैर यूरोपीय या अमेरिकियों की तुलना में अधिक चौड़े पाए गए। अमेरिकी और यूके साइज प्रणालियों के तहत जूतों के साइज संकीर्ण होते हैं। इससे भारतीय लोगों के पांव में जूते बहुत फिट नहीं आते हैं। कई भारतीय खराब फिटिंग वाले या बड़े आकार के जूते पहनते हैं। इससे उन्हें असुविधा भी होती है और चोट लगने के साथ-साथ पैरों के स्वास्थ्य से समझौता भी करना पड़ता है।
पुरुषों के लिए जूतों के फीतों को कहीं ज्यादा टाइट किया गया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जूते ढीले ढाले न हों। इससे पहनने वाले के लिए रक्त का सामान्य प्रवाह भी प्रभावित हुआ। ‘भा’ का उद्देश्य इस तरह की सभी दिक्कतों से छुटकारा दिलाना है। अमेरिका 10 और यूके के 7 साइज सिस्टम की जगह भा नेअलग-अलग उम्र वर्ग और जेंडर समूहों के लिए अलग-अलग साइज का प्रस्ताव दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि भारतीय साइज सिस्टम आने से जूते और आरामदायक बनेंगेष
भारतीय प्रणाली की आवश्यकता क्यों महसूस की गई?
देश आजाद होने से पहले अंग्रेजों ने भारत में जूते के यूके साइज की शुरुआत की। इस मानक के मुताबिक एक औसत भारतीय महिला 4 से 6 साइज के जूते पहनती है और एक पुरुष औसतन 5 से 11 साइज के जूते पहनता है। चूंकि भारतीयों के पैरों की संरचना, आकार, डायमेंशन पर कोई डेटा मौजूद नहीं था, इसलिए भारतीय सिस्टम विकसित करना मुश्किल था और इसे कभी शुरू नहीं किया गया था। चूंकि भारतीयों के पैरों की संरचना, आकार, आयाम पर कोई डेटा मौजूद नहीं था, इसलिए भारतीय प्रणाली विकसित करना मुश्किल था और इसे कभी शुरू नहीं किया गया था।
भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है और एक भारतीय के पास अब औसतन 1.5 फुटवियर हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े बाजारों और जूतों के निर्माताओं में से एक है। जानकारी के मुताबिक ऑनलाइन ऑर्डर किए गए करीब 50 प्रतिशत जूते ग्राहकों द्वारा वापस कर दिए गए थे। वजह जूतों की सही फिटिंग का नहीं होना था। भारतीय साइड प्राणाली ‘भा’ के साथ उपयोगकर्ताओं और फुटवियर निर्माताओं दोनों को लाभ हो सकता है।
‘भा’ ने आठ फुटवियर साइज का प्रस्ताव दिया है
- शिशु (0 से 1 वर्ष)
- शिशु (1 से 3 वर्ष)
- छोटे बच्चे (4 से 6 वर्ष)
- बच्चे (7 से 11 वर्ष)
- लड़कियाँ (12 से 13 वर्ष)
- लड़के (12 से 14 वर्ष)
- महिलाएं (14 वर्ष और अधिक)
- पुरुष (15 वर्ष और अधिक)