कन्नौज. घास-फूस जैसा दिखने वाला यह छोटा सा पौधा कन्नौज के किसानों के लिए सोना साबित हो सकता है. देश के एकमात्र फ्रेगरेंस रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक बताते हैं कि अगर किसान इसकी खेती कन्नौज में करें तो यह उनके लिए बहुत लाभकारी साबित होगा.
इस पौधे का नाम पचौली है, जिसकी खेती इंडोनेशिया सहित अन्य देशों में होती है. भारत में इसकी खेती बहुत कम होती है, लेकिन अब यहां पचौली की डिमांड बढ़ रही है. कन्नौज के इत्र उद्योग के लिए ये खास है. अगरबत्ती और धूपबत्ती उद्योग में इसकी उपयोगिता बढ़ गई है.
कैसे करें खेती, कितना लाभ
किसान पचौली की खेती बहुत ही आसान तरीके से कर सकते हैं. इसे अपनी मुख्य फसल में सहफसली के रूप में उगा सकते हैं. एक बार खेत में लग जाने पर इसका पौधा पांच साल तक चलता है. साधारणता इसकी कटिंग लगाकर आसानी से इसकी खेती की जा सकती है. इसकी खेती के लिए एक एकड़ में लागत करीब 50,000 रुपये है. सारी लागत निकालकर इसमें 80 हजार से एक लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा कमाया जा सकता है.
तेल है कमाल का
पचौली की पत्तियां से निकलने वाला तेल इत्र उद्योग में बहुत काम आता है. पचौली का इत्र भी बनाया जाता है, जिसकी खुशबू बहुत मनमोहक होती है. पचौली की पत्तियों का बुरादा बनने के बाद इसको अगरबत्ती और धूपबत्ती उद्योग में भी प्रयोग किया जाता है, जिससे यह दो तरीके से लाभ देता है.
क्या बोले वैज्ञानिक
लोकल 18 से बात करते हुए सुगंध एवं स्वाद विकास केंद्र (एफएफडीसी) के कृषि वैज्ञानिक पद पर तैनात कमलेश कुमार बताते हैं कि पचौली एक ऐसा पौधा है जो किसानों को मालामाल कर सकता है. किसानों को इसे अपनी सहफसल के रूप में उगाना चाहिए.
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FIRST PUBLISHED : January 2, 2025, 23:46 IST