बहराइच: ढोलक तो आप ने बहुत देखा होगा, लेकिन क्या आपने कभी ढोलक को बनाते हुए देखा है. इसको बनाने में बड़ी कारीगरी होती है, बहराइच जिले में कई परिवार ऐसे हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी ढोल बनाने के काम से अपना रोजगार चला रहे हैं. ढोल बनना और फिर खुद ही जिले में घूम-घूम कर बजा-बजाकर बेचना इनका पेशा है.
बहराइच में बनने वाले इस अनोखे ढोलक को घर के सभी सदस्य मिलकर करते है. ढोलक, ढोल या ढोलकी भारतीय वाद्य यंत्र है. ढोल भारत के बहुत पुराने ताल वाद्य यंत्रों में से है. उत्तर भारत में इसका अधिकतर प्रयोग किया जाता है. ये हाथ या छडी से बजाए जाने वाले छोटे नगाड़े हैं, जो मुख्य रूप से लोक संगीत या भक्ति संगीत को ताल देने के काम आते हैं.
जानें कहां होता है ढोलक का प्रयोग
वैसे तो ढोलक का प्रयोग बहुत सारी जगह पार्टी, फंक्शन त्योहारों पर किया जाता है. साथ ही विशेष रूप से भजन, कीर्तन में प्रयोग किया जाता है और होली के गीतों में ढोलक का जमकर प्रयोग होता है. ढोलक और ढोलकी को अधिकतर हाथ से बजाया जाता है. जबकि ढोल को अलग-अलग तरह की छड़ियों से बजाकर ताल दिया जाता है.
जानें कैसे बनता है ढोल
ढोलक को आम, बीजा, शीशम, सागौन या नीम की लकड़ी से बनाया जाता है. जहां लकड़ी को पोल करके दोनों मुखों पर बकरे की खाल वाली डोरियों से कसी रहती है. डोरी में छल्ले रहते हैं, जो ढोलक का स्वर मिलाने में काम आते हैं. चमड़े अथवा सूत की रस्सी के द्वारा इसको खींचकर कसा जाता है.
जानें कहां-कहां बजाते हैं ढोलक
यह गायन और नृत्य के साथ बजायी जाती है. यह एक प्रमुख ताल वाद्य है. प्राचीन काल में ढोल का प्रयोग पूजा प्रार्थना और नृत्य गान में ही नहीं किया जाता है. इसका प्रयोग दुश्मनों पर प्रहार करने, खूंखार जानवरों को भगाने, समय व चेतावनी देने के साधन के रूप में भी उस का प्रयोग किया जाता था. सामाजिक विकास के चलते ढोल का प्रयोग दायरा और विस्तृत हो गया है. जातीय संगीत मंडली, विभिन्न प्रकार के नृत्यगान, नौका प्रतियोगिता, जश्न मनाने और श्रम प्रतियोगिता में ताल व उत्साहपूर्ण वातावरण बनाने के लिये ढोल का सहारा लिया जाता है. ढोल की संरचना बहुत सरल है. आवाज निकालने के लिये ढोल के ऊपरी व निचली दोनों तरफ जानवर की खाल लगाई जाती है. इसका खोल लकड़ी का होता है.
यहां तैयार होती है ढोलक
वैसे तो बहराइच जिले में आपको कई जगह ढोलक बनाने वाले कारीगर मिल जाएंगे, लेकिन एक स्थान ऐसा भी है. जहां कई परिवार एक साथ मिलकर ढोल बनाने का काम करते हैं. यह स्थान प्रसिद्ध सैय्यद सलार मसूद गाजी की दरगाह है. जहां के मैदान पर आपको बहराइच जिले के नानपारा तहसील क्षेत्र के बहुत सारे लोग तंबू ,कनात लगाकर ढोलक बनते दिख जाएंगे. फिर यहीं से बनाकर गांव शहर में घूम-घूम कर इसको बजाकर बेचते हैं.
FIRST PUBLISHED : November 14, 2024, 13:06 IST