इटावा: महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़े उत्तर प्रदेश के इटावा जिले की पहचान में बुनकर कारोबार का एक बड़ा योगदान माना जाता रहा है, लेकिन यह कारोबार आज मंदी की मार से बंद होने के कगार पर आ खड़ा हुआ है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुयायी बुनकरों का धंधा बड़े पैमाने पर मंदा हो गया है. बुनकरों के धंधे के मंदा होने के पीछे कई बड़े कारण माने जा रहे हैं, जिसके कारण उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बुनकर मुसीबत की जद में फंसते हुए दिखाई दे रहे हैं. बुनकरों पर सबसे बड़ी मार पावर सप्लाई कनेक्शन से पड़ी है.
क्यों टूटी बुनकरों की कमर
खर्चे की बात करें तो कभी मात्र 72 रुपए एक पावर लूम का खर्चा दिया जाता था, जो आज बढ़कर 400 के पार हो गया है. साथ ही, सूत के दामों में बेतहाशा वृद्धि ने बुनकरों की कमर तोड़कर रख दी है. बुनकर अपने कारोबार को समेटने के लिए भी मजबूर हो चले हैं. कपड़े बनाने के लिए लगाई गई मशीनों को भी बुनकर बेचने में जुट गए हैं. ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले इस कारोबार के लिए लगाई गई मशीन अब आउटडेटेड हो चुकी है और नई मशीनों को खरीदने की स्थिति में बुनकर इस समय नहीं हैं. इसलिए बुनकरों पर कई ओर से लगातार वज्रपात हो रहा है.
पहले होता था निर्यात
उत्तर प्रदेश के इटावा में आजादी के पहले से ही बुनकर अपना कारोबार कर रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक, 50 हजार से अधिक लोग इस धंधे से जुड़े हुए हैं. समय के साथ इस कारोबार में आए बदलाव ने बुनकरों के कारोबार को हासिये पर ला दिया है. एक समय सूती वस्त्रों का बड़े पैमाने पर यहां से निर्यात होता था. देश के विदेशी मुद्रा भंडार में खासा योगदान हुआ करता था लेकिन आज इटावा के बुनकरों का धंधा हाशिये पर चला गया है.
खरीद में आयी कमी
सूत के दामों में काफी वृद्धि हो गई, जिससे सूत खरीदकर कपड़ा तैयार करने में बहुत लागत आने लगी. इससे उत्पादित माल की कीमतें बढ़ गईं और बिक्री पर इसका खासा असर पड़ रहा है. इटावा के बुनकर दूसरे शहरों की मंडियों में माल बेचने के लिए ले जाते हैं, लेकिन अब माल की खरीद में बड़ी कमी आई है. बुनकर रियाज बताते हैं कि बुनकरी उनका पुश्तैनी कारोबार है और यह बाप-दादा के जमाने से चला रहा है.
पहले यह कारोबार बहुत अच्छा था, लेकिन अब इस पर ग्रहण लगना शुरू हो गया है. वहीं, बुनकर असलम अंसारी बताते हैं कि एक बड़ी आबादी इस कारोबार से जुड़ी हुई है. सूत की चादर, अंगोछे और दरी आदि बनाने का काम बुनकर किया करते हैं, लेकिन बदली हुई स्थिति मुश्किलें पैदा कर रही है.
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FIRST PUBLISHED : November 4, 2024, 16:43 IST