गाजीपुर: किसान खेतों में लंबे समय से पराली जलाते आ रहे हैं लेकिन बीते कई सालों में फैक्ट्रियां और वाहन बढ़ने से प्रदूषण काफी ज्यादा बढ़ गया है. इससे अब पराली जलाने पर भी कड़ाई की जा रही है और इसे रोकने के लिए तरह-तरह के नियम बनाये जा रहे हैं. कुछ जगहों पर कहा जा रहा है कि पराली जलाने वाले किसानों को किसान सम्मान निधि नहीं मिलेगी. हालांकि, सरकारी फायदों को छोड़ दें तब भी कृषि विशेषज्ञों का भी कहना है कि खेतों पराली जलाने से किसान को ही नुकसान है.
विशेषज्ञों की मानें तो पराली जलाने से खेत की मिट्टी की क्वालिटी को भारी नुकसान पहुंचाता है. आग लगाने पर मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों का नाश होता है. फसल अवशेष जलने से केवल फास्फोरस ही बचती है जो राख में होती है. इसके अलावा मिट्टी के अन्य आवश्यक न्यूट्रिएंट्स जैसे नाइट्रोजन, पोटेशियम और अन्य सूक्ष्म तत्व वाष्पित हो जाते हैं. इससे मिट्टी की उत्पादकता में कमी आती है और दीर्घकालिक फसल उत्पादन प्रभावित होता है.
काली मिट्टी की विशेषताएं
भारत में काली मिट्टी (रेगुर) अक्सर पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे गाजीपुर जिले में अपने उच्च पोषक तत्वों के लिए जानी जाती है. इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम और आयरन शामिल हैं. ये सभी न्यूट्रिएंट्स फसलों के विकास के लिए जरूरी होते हैं. पराली जलाने से काली मिट्टी की विशेषताएं कमजोर हो जाती हैं. इससे फसलों की वृद्धि और गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. खेतों में आग लगाने से मिट्टी को जो नुकसान होता है उससे फसल की पैदावार कम होती है और किसानों को अच्छी उपज के लिए खेतों में केमिकल का इस्तेमाल करना पड़ता है.
सिलिकॉन का योगदान
मृदा विज्ञान के शोधकर्ता कृष्णानंद यादव के अनुसार, पराली में सिलिकॉन होता है. यह मिट्टी में मिलाने पर फायदेमंद साबित होता है. जब पराली को मिट्टी में मिलाया जाता है तो सिलिकॉन मिट्टी में शामिल हो जाता है. यह सिलिकॉन डीएपी के साथ मिलकर काम करता है. इससे पौधों की वृद्धि में सुधार होता है और किसानों को अधिक मात्रा में खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती.
कृष्णानंद यादव ने बताया कि पराली में मौजूद सिलिकॉन मिट्टी में कई एंजाइमों को सक्रिय कर देता है जो मिट्टी की संरचना को मजबूत बनाते हैं. इससे उसे जलाने की जरूरत नहीं होती.
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FIRST PUBLISHED : November 2, 2024, 21:21 IST