इटावा: हिंदू मान्यताओं के अनुसार उल्लू को धन की देवी लक्ष्मी की सवारी कहा जाता है. लक्ष्मी उल्लू पर विराजती हैं. भारत की यह मान्यता इस पक्षी के जान की दुश्मन बन गई है. जैसे-जैसे दिवाली नजदीक आ रही है तंत्र साधनाओं का जोर बढ़ रहा है. धनवान लोग और अधिक संपन्न होने के चक्कर में दिवाली के मौके पर होने वाली तंत्र साधनाओं में उल्लूओं की बलि देने मे जुट जाते हैं. उल्लुओं की बलि प्रथा के कारण चंबल के उल्लुओं पर संकट के बादल गहराने लगे हैं. दिवाली में होने वाली इसी बलि प्रथा को रोकने के लिये वन विभाग पूरे चंबल मे सजग है और तस्करों पर निगाह रख रहा है.
आपको बता दें कि चंबल में दुर्लभ उल्लू दिखते रहते हैं. ऐसे में शिकारियों के निशाने पर ये आ जाते हैं. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या उल्लुओं कि बलि से लोगों के पास पैसा आता है. अगर आता भी है तो एक निरीह को मौत के घाट उतार कर संपन्न होना कितना जायज है. राजस्थान, मघ्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के 635 वर्ग किलो मीटर दायरे में फैली केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी परियोजना उल्लुओं के लिए कब्रिस्तान साबित हुई है.
चंबल सेंचुरी क्षेत्र में तस्करों की नजर माता लक्ष्मी की सवारी माने जाने वाले संरक्षित उल्लुओं पर पड़ चुकी है. वन्य जीव विभाग के अधिकारी इन तस्करों से उल्लुओं को बचाने में लगे हुए हैं. यहां के स्थानीय बताते हैं कि दिवाली के अवसर पर कुछ लोग अंधविश्वास और पाखंड के चलते उल्लुओं की बलि देते हैं. यही वजह है कि चंबल घाटी से उल्लुओं की तस्करी की खबरें दबी जुबान से आती रही हैं. खासतौर से दिवाली से पहले उल्लू तस्कर खासा सक्रिय हो जाते हैं.
आमतौर पर आर्थिक रूप से सुदृढ़ लोग ही पूजा में उल्लुओं का प्रयोग करते हैं क्योंकि बलि देने के लिए इस्तेमाल होने वाली उल्लू की खास प्रजाति आसानी से नहीं मिलती. इस वजह से इनकी कीमत लाखों में होती है.
जानकारों की मानें तो दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में बैठे बड़े-बड़े कारोबारी इन तस्करों के जरिये इन संरक्षित जीव की तस्करी में जुट गये हैं. तंत्र विद्या से जुड़े लोगों की मानें तो वह इस पक्षी के जरिये तमाम बड़े-बड़े काम कराने का दावा करते हैं. बंगाल से लेकर काला जादू तक कई तंत्र क्रियाओं में उल्लू का व्यापक प्रयोग किया जाता है.
चंबल सेंचुरी क्षेत्र में यूरेशियन आउल, ग्रेट होंड आउल और ब्राउन फिश आउल संरक्षित घोषित है. इसके अलावा भी कुछ ऐसी प्रजातियां है जिन्हें पकड़ने पर प्रतिबंध है. इटावा में वन्यों के संरक्षण के लिये काम कर रही पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर के महासचिव डा.राजीव चौहान बताते हैं कि चंबल घाटी मे खासी तादात में उल्लुओं की आवाजाही देखी जाती है. तंत्रविधा के अलावा इनका असल इस्तेमाल आयुर्वेदिक पद्वति में भी किया जाना बताया जाता है. यह वाइल्ड लाइफ अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंधित जीव है. इसका शिकार करना अथवा पकड़ना कानूनन अपराध है.
उल्लू के शिकार या तस्करी पर है सजा का नियम
वन विभाग के रिर्काड के अनुसार उल्लू भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनूसूची-1 के तहत संरक्षित है. ये विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है. इनका शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अघिक सजा का प्रावधान है. चंबल सेंचुरी क्षेत्र में यूरेशियन आउल अथवा ग्रेट होंड आउल तथा ब्राउन फिश आउल प्रतिबंधित हैं.
इंटरनेशनल मार्केट में है डिमांड
अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस उल्लू की कई दुर्लभ प्रजातियों की जबरदस्त मांग और कीमत है. इन्हें तस्करी कर दिल्ली और मुंबई से लेकर जापान, अरब और यूरोपीय देशों में भेजा जा रहा है. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत दुर्लभ पक्षियों की सूची में भारतीय उल्लू भी शामिल है. इस कानून के तहत उल्लू का शिकार और कारोबार अवैध है.
सस्ते में खरीद कर बाहर भेजता है गिरोह
ग्रामीणों से सस्ते मूल्य पर उल्लू खरीद कर ये गिरोह इन्हें दिल्ली, मुंबई और गुजरात भेजता है. वहां से इन्हें यूरोप और कुछ अरब देशों को भी भेजा जाता है. पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियां हैं. हालांकि, कई संस्कृतियों के लोकाचार में उल्लू को अशुभ माना जाता है, लेकिन साथ ही संपन्नता और बुद्धि का प्रतीक भी. यूनानी मान्यताओं में उल्लू का संबंध कला और कौशल की देवी एथेना से माना गया है और जापान में भी इसे देवताओं का संदेशवाहक समझा जाता है.
ऐसे उल्लुओं के लिए 1-1 करोड़ देने को तैयार हैं लोग
पुजारी दिनेश तिवारी बताते हैं कि उनके पास कई ऐसे लोग आ चुके हैं जो सफेद और मटमैले रंग के उल्लुओं की मांग कर चुके हैं. इसके एवज में एक-एक करोड़ रुपए देने के लिए तैयार भी हुए हैं. इन रंग के उल्लुओं की मांग करने वालों का मानना है कि अगर उनको उल्लू मिल जाएगा तो वह कई सौ करोड़ रुपये कमा सकते हैं. ऐसे में दिवाली आते ही इटावा में पाए जाने वाले दुर्लभ उल्लुओं की जान पर हमेशा खतरा मंडराता रहता है. तंत्र साधना से जुड़े लोग दीपावली पर इसकी बलि चढ़ाने की दिशा में सक्रिय हो जाते हैं.
जिला प्रभागीय वन अधिकारी अतुलकांत शुक्ला लोकल 18 संवाददाता रजत कुमार को बताया कि इटावा के बीहड़ों में बड़े पैमाने पर उल्लू पाए जाते हैं और इसी दौरान तस्कर उल्लू पक्षी को पकड़ने के लिए सक्रिय हो जाते हैं. तस्कर उल्लू पक्षी को ना पकड़ सकें इसलिए वन विभाग की ओर से विभागीय अधिकारियों कर्मियों को सक्रिय करने के साथ-साथ गुप्तचर को भी व्यापक सतर्क कर दिया गया है.
उन्होंने बताया कि सभी वन क्षेत्राधिकारियों के साथ में वन वाचर और गुप्तचर को सख्त दिशा निर्देश देकर तस्करों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सक्रिय किया गया है. इस संबंध में चंबल सेंचुरी के कर्मियों को सतर्क कर दिया गया है ताकि कोई भी शिकारी बलि चढ़ाने के लिहाज से उल्लुओं को पकड़ने में कामयाब नहीं हो सके.
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FIRST PUBLISHED : October 29, 2024, 21:55 IST