गुजरात में एक गोलगप्पे वाले के बेटे ने वो कारनामा किया है जिससे बरसों तक हर वंचित तबके का छात्र प्रेरणा लेता रहेगा। अरावल्ली जिले के आदिवासी इलाके मेघराज के रहने वाले अल्पेश राठौड़ ने 2 साल पहले मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट पास कर कोटे से एमबीबीएस एडमिशन लिया था। लेकिन विवादित जाति प्रमाण पत्र के चलते मेडिकल कॉलेज ने उनका एडमिशन रद्द कर दिया था। न्याय के लिए उन्होंने कड़ी कानूनी लड़ाई लड़ी और बाद में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शीर्ष अदालत ने उन्हें राहत दी। लेकिन अल्पेश किसी भी अनिश्चितता या संदेह की स्थिति में पढ़ाई करने को तैयार नहीं थे। बड़ा डॉक्टर बनने का ख्वाब पूरा करने के लिए उन्होंने फिर से नीट परीक्षा देने की ठानी और पहले से ज्यादा अंक लाकर इस बार गांधीनगर के जीएमईआरएस मेडिकल कॉलेज में जनरल कैटेगरी की सीट हासिल की।
पिता की गोलगप्पे की दुकान में प्लेट साफ करने वाले अल्पेश राठौड़ ने दो साल पहले कड़ी मेहनत के दम पर नीट परीक्षा पास की थी। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक अल्पेश ने नीट यूजी 2022 में उन्होंने 613 अंक हासिल किए थे और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी ) कैटेगरी के तहत वडोदरा के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया था। लेकिन पढ़ाई के लगभग डेढ़ साल बाद उन्हें तब तगड़ा झटका लगा जब राज्य सरकार ने उनके जाति प्रमाण पत्र को अमान्य कर दिया। उनका दाखिला रद्द कर दिया गया। उनका एडमिशन तब रद्द किया गया जब वो एमबीबीएस का सेकेंड ईयर पूरा करने वाले थे।
लेकिन इस झटके से अल्पेश के इरादे टस से मस नहीं हुए। वो अपनी लड़ाई को अदालत में ले गए। गुजरात उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ फैसला सुनाया। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अस्थायी रूप से हस्तक्षेप करते हुए सरकार और मेडिकल कॉलेज को उनकी पढ़ाई बंद करने से रोक दिया। शीर्ष अदालत ने राज्य और कॉलेज अधिकारियों को नोटिस जारी कर उसे डॉक्टरी की पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दी। कोर्ट ने एडमिशन रद्द करने के आदेश पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद भी राठौड़ को लगा कि उनके करियर पर तलवार लटक रही है। डर और अनिश्चितता के साये में जीने के बजाय राठौड़ ने साहसिक फैसला लेते हुए फिर से नीट यूजी परीक्षा देने का फैसला लिया।
कड़ी चुनौतियों के बावजूद उन्होंने फिर से नीट यूजी की तैयारी शुरू की। परीक्षा से कुछ हफ्ते पहले उनके भाई एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गए। तब उनके पास तैयारी के लिए केवल 40 दिन बचे। राठौड़ अडिग रहे। अपने बुलंद हौसलों के दम पर उन्होंने इस बार नीट में 644 अंक प्राप्त किए जिससे उनकी ओपन कैटेगरी में सीट सुरक्षित हो गई।
हालांकि मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई हैं। अल्पेश के पिता जो एक छोटी सी पानीपुरी की दुकान चलाते हैं, उन्हें अब सरकारी मेडिकल कॉलेज में भुगतान की जाने वाली राशि की तुलना में अधिक फीस देनी होगी। साथ ही अपने पहले प्रवेश के लिए जमा किए गए प्रमाणपत्रों को वापस पाने के लिए राठौड़ को अपनी सीट खाली करने के लिए 5 लाख रुपये का भारी जुर्माना देना होगा। ऐसा तब है जब सीट पहले ही सरकार द्वारा रद्द कर दी गई थी। अपना एडमिशन पक्का होने के बाद अल्पेश न सिर्फ उत्तर प्रदेश में रहने वाले अपने परिवार में बल्कि अपने पूरे केंथवा गांव में डॉक्टर बनने वाले पहले शख्स होंगे।
अपनी कामयाबी पर उन्होंने कहा, ‘मैं नहीं चाहता था कि मेरे सिर पर कोई अनिश्चितता मंडराए।’