अयोध्या गैंगरेप के अभियुक्त सपा नेता मोईद अहमद को लखनऊ हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने सपा नेता की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त राजनीतिक तौर पर काफी ताकतवर है और उसके तथा पीड़िता व उसके परिवार के बीच बड़ा सामाजिक व आर्थिक फर्क है, इसके साथ ही विवेचना के दौरान पीड़िता व उसके परिवार पर सुलह के लिए दबाव भी डाला गया था लिहाजा अभियुक्त के बाहर आने पर ट्रायल के प्रभावित होने का खतरा है। हालांकि न्यायालय ने चार सप्ताह के पश्चात तथा पीड़िता व वादिनी की गवाही होने के बाद, नए सिरे से जमानत याचिका दाखिल करने की छूट दी है। न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया है कि इस दौरान दिन प्रतिदिन सुनवाई कर पीड़िता व वादिनी की गवाही पूरी कर ली जाए।
यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने पारित किया। अभियुक्त की ओर से दलील दी गई थी कि उसे मामले में राजनीतिक कारणों से झूठा फंसाया गया है, वह 71 साल की उम्र का है और पीड़िता के बयानों तथा एफआईआर में घटना के सटीक तिथि व समय का उल्लेख नहीं है। वहीं जमानत याचिका का विरोध करते हुए, अपर महाधिवक्ता वीके शाही ने दलील दी कि वर्तमान अभियुक्त व उसके साथी अभियुक्त राजू ने पीड़िता के साथ दरिन्दगी का वीडियो भी बनाया, जिस मोबाइल फोन से वीडियो बनाया गया है उसे पुलिस ने बरामद कर लिया है।
न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात पारित अपने आदेश में कहा कि फिलहाल वह साक्ष्यों पर कोई टिप्पणी नहीं कर रही है। विवेचना के दौरान सुलह के दबाव की एफआईआर का जिक्र करते हुए न्यायालय ने एसएसपी, अयोध्या को ट्रायल के दौरान पीड़िता व वादिनी को पर्याप्त सुरक्षा देने का भी आदेश दिया, साथ ही निदेशक, एफएसएल को बरामद मोबाइल फोन की फॉरेंसिक जांच रिपोर्ट चार सप्ताह में तैयार रखने का आदेश दिया है।