बिहार सरकार ने स्वीकार किया है कि अप्रैल 2016 में शराबबंदी के बाद से राज्य में अवैध शराब पीने से 150 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। मद्यनिषेध एवं आबकारी विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी। हालांकि, अधिकारी ने बताया कि पिछले 8 सालों में राज्य के विभिन्न हिस्सों से ‘संदिग्ध जहरीली शराब से मौतों’ की संख्या 266 है।
2016 में की गई शराबबंदी
अप्रैल 2016 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने बिहार में शराब की बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, राज्य में शराब तस्करों के खिलाफ चल रहे अभियान के बावजूद शराबबंदी वाले बिहार में शराब की तस्करी जारी है।
जहरीली शराब पीने से 156 की मौत
मद्य निषेध एवं आबकारी विभाग के सचिव विनोद सिंह गुंजियाल ने कहा, ‘राज्य में 2016 से अब तक विभिन्न जिलों में कुल 156 ‘पुष्ट जहरीली शराब से मौतें’ हुई हैं। पिछले 8 सालों में राज्य में ‘संदेहास्पद जहरीली शराब से मौतों’ के रिपोर्ट किये गए 266 मामलों में से 156 की पुष्टि हुई है।’
इन जिलों में हुईं सबसे अधिक मौतें
उन्होंने कहा कि राज्य में सबसे अधिक जहरीली शराब से मौतों की रिपोर्ट जिन जिलों में हुई हैं। उनमें सारण, गया, भोजपुर, बक्सर और गोपालगंज शामिल हैं। सचिव गुंजियाल ने कहा, ‘अगस्त 2024 तक विभाग द्वारा निषेध कानूनों के उल्लंघन से संबंधित कुल 8.43 लाख मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें राज्य के बाहर के 234 लोगों सहित कुल 12.7 लाख लोगों को अब तक गिरफ्तार किया गया है। संबंधित अधिकारियों ने अब तक 3.46 करोड़ लीटर शराब जब्त की है, जिसमें देशी शराब भी शामिल है।’
मांझी ने खड़े किए थे शराबबंदी पर सवाल
बिहार के मद्य निषेध और आबकारी विभाग के मंत्री रत्नेश सदा ने केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की हाल की टिप्पणी पर सवालों को खारिज कर दिया कि शराबबंदी से संबंधित उल्लंघनों में केवल दलितों को निशाना बनाया जा रहा है। सदा ने कहा, ‘मैं उनकी (मांझी) टिप्पणियों पर क्या कह सकता हूं? जीतन राम मांझी एक वरिष्ठ नेता हैं। उन्हें ऐसी टिप्पणियां करने से बचना चाहिए।
बता दें की पूर्व सीएम मांझी ने हाल ही में कहा था कि शराबबंदी व्यवस्था ने मुख्य रूप से गरीब, कमजोर वर्गों, विशेषकर दलितों को निशाना बनाया है, जबकि पूरे राज्य में शराब घर-घर पहुंचाई जा रही है।
भाषा के इनपुट के साथ