इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति ने ब्रिटिश संसद में की गाय, गंगा और गीता की बात की। उन्होंने उन्होंने भगवान श्रीराम के आदर्श और कृष्ण के कर्मयोग की चर्चा की। बुद्ध, नानक, महावीर और गांधी के भारत की बात की। नालंदा, तक्षशिला जैसे संस्थानों की चर्चा की।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने ‘विकसित भारत 2047’ विषय पर ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ लॉर्ड्स को संबोधित किया। उन्होंने अपनी बात की शुरुआत गाय, गंगा और गीता से की। उन्होंने कहा कि इसके बगैर हमारा परिचय अधूरा है। हम उस देश के वासी हैं जहां हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा बच्चा राम है की तहजीब है।
न्यायमूर्ति ने शेखर कुमार यादव ने भारतीय न्याय व्यवस्था, उसकी गहराई और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को वैश्विक मंच पर मजबूती से पेश किया। उनका संबोधन सिर्फ कानूनी शिक्षा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भारतीय संस्कृति, सभ्यता, और न्याय प्रणाली के उन पहलुओं पर केंद्रित था, जो भारत की समृद्ध विरासत का अभिन्न हिस्सा है। न्यायमूर्ति एसके यादव ने कहा कि कभी भारत सोने की चिड़िया कहा जाता था। हमने शांति और अहिंसा के बल पर यह ख्याति अर्जित की थी।
उन्होंने भगवान श्रीराम के आदर्श और कृष्ण के कर्मयोग की चर्चा की। बुद्ध, नानक, महावीर और गांधी के भारत की बात की। नालंदा, तक्षशिला जैसे संस्थानों की चर्चा की। न्यायमूर्ति ने कहा कि आज हम अमृत काल में है और भारत कई मायनों में बदल चुका है। आज 1,113 विश्वविद्यालय, 43,796 कॉलेजों और 4.33 करोड़ छात्रों के साथ हम तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत में 120 करोड़ लोग मोबाइल इस्तेमाल करते हैं और 80 करोड़ इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश है। यह विज्ञान में हमारी उत्कृष्टता का प्रतीक है। भारतीय योग दुनियाभर में जीवनशैली का हिस्सा बन गया।
ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ लॉर्ड्स को संबोधित कर लौटे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यामूर्ति शेखर कुमार यादव ने रविवार को हिन्दुस्तान से एक अनौपचारिक बातचीत कहा कि वहां के लॉर्ड्स (सांसद) ने उनकी उस बात को भी गौर से सुना जिसमें उन्होंने कहा था कि विदेशी ताकतों ने भारत को लूटा। कहा कि उन लोगों ने कहा कि पहले के लोगों जो कुछ किया उससे हम सहमत नहीं हैं। न्यायमूर्ति ने ‘विकसित भारत 2047’ विषय पर देश की हर उपलब्धि को ब्रिटिश संसद में प्रमुखता से रखा।
बातचीत में कहा कि ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में संबोधन एक ऐतिहासिक क्षण था, जो भारत की न्यायिक प्रतिष्ठा और संस्कृति का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान बढ़ाने वाला था। यह पूरे भारत के लिए गर्व की बात है। न्यायमूर्ति ने भारतीय न्याय व्यवस्था, उसकी गहराई, और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को वैश्विक मंच पर पेश किया।
उनका संबोधन सिर्फ कानूनी शिक्षा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भारतीय संस्कृति, सभ्यता, और न्याय प्रणाली के उन पहलुओं पर केंद्रित था, जो भारत की समृद्ध विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं। यह मंच उन्हें न केवल भारतीय न्यायिक प्रक्रिया की विशिष्टताओं पर प्रकाश डालने का मौका प्रदान करता है, बल्कि भारतीय समाज और उसकी विविधता की गहन समझ को भी प्रस्तुत करने का अवसर देता है I न्यायमूर्ति भगवान राम के आदर्श और श्रीकृष्ण के कर्मयोग की चर्चा की। बुद्ध, नानक, महावीर और गांधी के भारत की बात की। नालंदा, तक्षशिला जैसे संस्थानों की चर्चा की।