एक ओर आदमखोर बन चुके तमाम जंगली जानवर हैं। दूसरी ओर आधुनिक हथियारों से लैस शातिर शिकारी। आदमखोरों से इंसानों को बचाना है। शातिरों से वन्य जीवों की रक्षा करनी है। इस बड़ी लड़ाई के लिए वन विभाग के मौजूदा संसाधन बहुत छोटे पड़ रहे हैं। बूढ़ी बंदूकों से आतंक फैलाने वाले बाघ, तेंदुए, गुलदार और भेड़ियों के साथ ही शिकारियों से मुकाबला कैसे होगा। जनता की अपेक्षा है कि जंगली जानवर की सूचना पर वन विभाग की टीम तत्काल पहुंचे। मगर रेंज स्तर पर न गाड़ियों की व्यवस्था है और न ही डीजल की। कहीं कोई पुरानी गाड़ी है भी तो वहां ड्राइवर या डीजल नहीं है।
तरक्की और विकास की दौड़ में इंसान जंगलों में जा घुसा तो जंगली जानवरों ने इंसानी बस्तियों का रुख कर लिया। कहीं बाढ़ ने हालात बिगाड़े तो कहीं वन्य जीवों के व्यवहार में आए बदलाव ने। हालत यह है कि लोग अपने खेतों में जाने से डर रहे हैं। तमाम जगह रात में चैन से सो भी नहीं पा रहे। बाराबंकी से लेकर बहराइच और बिजनौर तक की पूरी बेल्ट में इन दिनों बाघ, तेंदुआ, भेड़िया और गुलदारों की जंगल से बाहर चहलकदमी से दहशत है। बहराइच के कुछ आदमखोर भेड़ियों वन विभाग को छका रहे हैं। गोला रेंज में एक बाघ कई महीनों से आंखमिचौनी खेल रहा है। बिजनौर में जंगल से सटे गन्ने के खेतों में तेंदुओं और गुलदारों का कब्जा है।
दर्जनों लोग हो चुके आदमखोरों का शिकार
आदमखोर भेड़िए इसी साल करीब दर्जनभर जानें ले चुके हैं। जबकि बिजनौर की नगीना, चांदपुर, धामपुर, नजीबाबाद, अमानगढ़ और बिजनौर रेंज में 2023 से अब तक करीब 45 लोगों को शिकार बना चुके हैं। जिसमें मृतक और घायल दोनों शामिल हैं। बढ़ती घटनाओं का संज्ञान लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सख्ती दिखाई तो वन विभाग का पूरा अमला प्रभावित इलाकों में दौड़ पड़ा। मगर संसाधनों के अभाव में यह दौड़ मानव-वन्य जीव संघर्ष रोकने के लिए नाकाफी है। हमने वन विभाग के फील्ड स्तर के कुछ कर्मचारियों से बात की तो पता चला कि करीब 90 फीसदी रेंज में या तो गाड़ी नहीं है। पुरानी कोई गाड़ी है भी तो ड्राइवर नहीं है और डीजल के लिए भी कोई खास प्रावधान नहीं है।
इंसास और एके-47 के मुकाबिल पुरानी बंदूकें
वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो ने बीते साल 29 जून को बाघों के शिकार को लेकर रेड अलर्ट जारी किया था। इस फेहरिस्त में यूपी का पीलीभीत टाइगर रिजर्व और उसके आसपास का इलाजा भी शामिल था। इसके अलावा वनों का अवैध कटान रोकने की चुनौती भी वन विभाग के जिम्मे है। ऐसे में यदि हथियारों की बात करें तो वन कर्मियों के पास पुरानी दुनाली बंदूकें हैं और कुछ पुरानी राइफलें। दूसरी ओर शातिर शिकारी आधुनिक हथियारों से लैस रहते हैं। उनके पास इंसास और एके-47 जैसे हथियार हैं। नई गाड़ियां हैं। एक वनकर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि एक बार अचानक गुलदार ने हमला बोल दिया तो बंदूक कॉक ही नहीं हुई। बड़ी मुश्किल से खुद को बचाया। इसके अलावा जाल, पिंजड़ों की भी कमी है। फिलहाल रेस्क्यू सेंटर भी नहीं है, जहां पकड़े हुए वन्य जीवों को रखा जा सके।
वन एवं जलवायुपरिवर्तनविभाग, मंत्री पर्यावरण, डा. अरुण कुमार सक्सेना ने कहा कि हमने अभी वन्य जीव प्रभावित इलाकों का दौरा किया है। इस दौरान कुछ जगहों से संसाधनों की कमी की शिकायत भी मिली है। हमने सब नोट कर लिया है। यह सही है कि हमारे लोगों के पास पुराने हथियार हैं। इन सब बातों को गंभीरता से लिया जा रहा है। इन सारी समस्याओं का निदान कराया जाएगा।