सनातनी संस्कृति की पहचान महाकुम्भ मेले में अखाड़ों की गतिविधि से अकबर काल के शब्दों को हटाने के लिए अब अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद खुद से पहल करेगा। परिषद इसी महीने प्रयागराज में बैठक कर अपने यहां आमंत्रित साधु संतों को पत्र भेजेगा, जिसमें स्नान में शाही शब्द और यात्रा के लिए पेशवाई शब्द का विकल्प बताया जाएगा। इसके साथ ही मेलाधिकारी को पत्र भेजकर नोटिफिकेशन में भी बदलाव करने के लिए भी कहा जाएगा।
प्रयागराज महाकुम्भ के पहले अब नए सिरे से तैयारियों को शुरू किया जा रहा है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद इस बार नई तैयारियों में जुटेगा। संगम किनारे लगने वाले कुम्भ और महाकुम्भ के लिए जब अखाड़े मेला क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तो उसे पेशवाई कहा जाता है, जबकि मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी के स्नान को शाही स्नान कहा जाता है। महाकुम्भ 2025 से ठीक पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्रपुरी ने इन शब्दों को बदलने के लिए प्रयास शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि उर्दू के यह दोनों ही शब्द आज भी मुगलकाल की याद दिलाते हैं।
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यह शब्द अकबर के दौर में प्रचलित थे। ऐसे में इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा। शाही की जगह राजसी और पेशवाई की जगह छावनी प्रदेश जैसे शब्दों का इस्तेमाल होगा। इसके लिए निरंजनी अखाड़ा अपने यहां पर आने वाले सभी साधु संतों को पत्र लिखकर निर्देश दे रहा है कि साथ आने वाले सभी अनुयायियों को यही निर्देश दिया जाए। महंत रविंद्रपुरी ने कहा, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक इसी महीने प्रयागराज में होगी और इस बैठक में शाही और पेशवाई शब्द बदलने के लिए प्रस्ताव पास किया जाएगा। उन्होंने नए शब्द को सुझाया, लेकिन यह भी कहा कि परिषद की बैठक में संस्कृत और हिंदी के अच्छे शब्द आए तो उसे भी स्वीकार किया जाएगा। निरंजनी अखाड़ा अपने स्तर पर अपने यहां शब्दों को बदलने के लिए पत्र भी भेजेगा।
पत्रों और व्यवहार में बदले जाएंगे शब्द
मेला प्रशासन स्नान की तारीखों का ऐलान करने के साथ ही जो पत्र जारी करेगा, उसमें भी बदलाव करेगा। इसके लिए भी परिषद की ओर प्राधिकरण को पत्र जारीकियाजाएगा।